मेटा के सीईओ मार्क जुकरबर्ग द्वारा कोविड-19 के बाद भारत में सत्ता परिवर्तन को लेकर दिए गए बयान पर विवाद खड़ा हो गया है। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव और संसदीय समिति के अध्यक्ष निशिकांत दुबे ने इस बयान को “भारत विरोधी” करार देते हुए कड़ी आपत्ति जताई है। संसदीय समिति ने मेटा से स्पष्टीकरण और माफी मांगने के लिए कंपनी के सीईओ या प्रतिनिधियों को तलब करने की बात कही है।
जुकरबर्ग के बयान पर क्या हुआ विवाद?
मार्क जुकरबर्ग ने कथित तौर पर कहा था कि कोविड-19 महामारी के बाद भारत समेत कई देशों में सत्ता परिवर्तन हुआ है, जिससे सरकारों पर जनता का भरोसा कम हुआ है। इस बयान पर भारत में संसदीय समिति और सरकार ने कड़ी आपत्ति जताई है। निशिकांत दुबे ने इस बयान को भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों और जनता के मताधिकार का “अपमान” बताया।
समिति की कड़ी प्रतिक्रिया
संसदीय समिति के अध्यक्ष निशिकांत दुबे ने मेटा को तलब करने का ऐलान किया है। उन्होंने कहा,
“यह बयान न केवल भारतीय लोकतंत्र की छवि को धूमिल करता है, बल्कि गलत जानकारी फैलाने का प्रयास भी है। मेटा को संसद और देश की जनता से माफी मांगनी होगी।”
मंत्री अश्विनी वैष्णव का पलटवार
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने जुकरबर्ग के बयान को “तथ्यात्मक रूप से गलत” बताते हुए कहा कि,
“भारत में कोविड-19 के बाद कोई सत्ता परिवर्तन नहीं हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने महामारी के दौरान अपने दायित्वों को मजबूती से निभाया है।”
वैष्णव ने जुकरबर्ग के दावे को पूरी तरह खारिज करते हुए इसे भ्रामक जानकारी का उदाहरण बताया।
भारतीय लोकतंत्र का सम्मान अनिवार्य
निशिकांत दुबे ने सोशल मीडिया पर अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि,
“भारत के लोकतंत्र के खिलाफ इस तरह की गलत जानकारी उसकी छवि को नुकसान पहुंचाती है। मेटा को जवाबदेह बनाना हमारी जिम्मेदारी है।”
इस विवाद ने भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली की मजबूती और उसकी अंतरराष्ट्रीय छवि को लेकर नए सवाल खड़े कर दिए हैं।
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