त्रिपुरा में क्षेत्रीय दलों के पनपने के लिए माकपा जिम्मेदार

पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यसभा सदस्य बिप्लब कुमार देब ने त्रिपुरा में क्षेत्रीय दलों के पनपने के लिए पूर्वोत्तर के इस राज्य में लंबे समय तक शासन करने वाली मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) जिम्मेदार ठहराया है।सिपाहीजला जिले की धनपुर विधानसभा सीट पर पांच सितंबर को उपचुनाव के तहत होने वाले मतदान से पहले देब ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के उम्मीदवार के पक्ष में आयोजित एक रैली को संबोधित करते हुए यह बात कही।

 

देब ने कहा, ”लंबे समय तक माकपा द्वारा किए गए शोषण और उत्पीड़न के कारण ही त्रिपुरा उपजाति जुबा समिति (टीयूजेएस), इंडिजिनस नेशनलिस्ट पार्टी ऑफ ट्विप्रा (आईएनपीटी) और इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) जैसे क्षेत्रीय दल बने। वे मानते है कि स्थानीय मतदाता उनके सुरक्षित वोट बैंक हैं, लेकिन आजकल स्थिति पूरी तरह से बदल गई है।”देब ने आरोप लगाया कि जब 1998 में राज्य में पड़ोसी राज्य मिजोरम से बड़े पैमाने पर रियांग शरणार्थी आए तो उस समम माकपा के माणिक सरकार मुख्यमंत्री थे, लेकिन उन्होंने उनकी समस्या को दूर करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया।

 

उन्होंने कहा, ”लेकिन जब 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा-आईपीएफटी की गठबंधन सरकार सत्ता में आई तो चीजें ब्रू शरणार्थियों के पक्ष में जाने लगीं। इस 23 साल पुराने शरणार्थी मुद्दे को सुलझाने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा आगे आए।”देब ने आरोप लगाया कि कई वर्षों तक राज्य पर शासन करने वाले माणिक सरकार ने ब्रू शरणार्थियों की युवा पीढ़ी के भविष्य को नष्ट करने की कोशिश की थी।

उन्होंने कहा, ”लेकिन भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने शरणार्थियों की समस्याओं को दूर करने की दिशा में काम किया और ब्रू शरणार्थियों को त्रिपुरा में स्थायी रूप से बसने की अनुमति देने वाला एक ऐतिहासिक समझौता किया। इस पर टिपरा मोथा के प्रमुख प्रद्योत किशोर माणिक्य और आईपीएफटी अध्यक्ष एनसी देबबर्मा ने भी हस्ताक्षर किए थे।”देब ने दावा किया कि स्थानीय लोगों के हितों की अनदेखी करने के लिए जनजातीय लोगों ने माकपा को सबक सिखाया। माकपा 2023 के विधानसभा चुनाव में एक भी अनुसूचित जनजाति (एसटी) आरक्षित सीट पर जीत नहीं दर्ज सकी थी। उन्होंने कहा, ”माकपा खुद को मूल निवासियों का रक्षक बताती है, लेकिन त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद (टीटीएएडीसी) के चुनाव में खाता भी नहीं खोल सकी।”

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