‘जी-20 की भारत की अध्यक्षता विभाजन को पाटने और सहयोग को गहरा करने का प्रयास’

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत की अध्यक्षता में हो रहे जी-20 शिखर सम्मेलन को एक ‘जन आंदोलन’ का स्वरूप करार दिया और कहा कि उसके नेतृत्व में हो रहे इस आयोजन में विभाजन को पाटने, बाधाओं को दूर करने और सहयोग को गहरा करने का प्रयास है तथा इसके पीछे एक ऐसी दुनिया के निर्माण की भावना है जहां एकता हर मतभेद से ऊपर हो और जहां साझा लक्ष्य अलगाव की सोच को खत्म कर दे। कई समाचार पत्रों में प्रकाशित एक लेख में प्रधानमंत्री ने बृहस्पतिवार को कहा, ‘‘जी-20 अध्यक्ष के रूप में हमने वैश्विक पटल को बड़ा बनाने का संकल्प लिया था, जिसमें यह सुनिश्चित किया गया कि हर आवाज सुनी जाए और हर देश अपना योगदान दे। मुझे विश्वास है कि हमने कार्यों और स्पष्ट परिणामों के साथ अपने संकल्प पूरे किये है।’’

 

उन्होंने कहा कि इसी सोच के साथ भारत ने ‘वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट’ का भी आयोजन किया था जिसमें 125 देश भागीदार बने। उन्होंने कहा, ‘‘यह भारत की अध्यक्षता के तहत की गई सबसे महत्वपूर्ण पहलों में से एक रही। यह ग्लोबल साउथ के देशों से उनके विचार, उनके अनुभव जानने का एक महत्वपूर्ण प्रयास था।’’ ‘ग्लोबल साउथ’ शब्द का इस्तेमाल आम तौर पर आर्थिक रूप से कम विकसित देशों को संदर्भित करने के लिए किया जाता है। प्रधानमंत्री ने कहा कि इसके अलावा भारत की अध्यक्षता के तहत न केवल अफ्रीकी देशों की अबतक की सबसे बड़ी भागीदारी देखी गई है बल्कि जी-20 के एक स्थायी सदस्य के रूप में अफ्रीकी संघ को शामिल करने पर भी जोर दिया गया है।

 

उन्होंने कहा, ‘‘हमारी दुनिया परस्पर जुड़ी हुई है, इसका मतलब यह है कि विभिन्न क्षेत्रों में हमारी चुनौतियां भी आपस में जुड़ी हुई हैं। यह 2030 एजेंडा के मध्य काल का वर्ष है और कई लोग चिंता जता रहे हैं कि सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के मुद्दे पर प्रगति पटरी से उतर गई है।’’ मोदी ने कहा कि भारत में प्राचीन काल से प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाकर आगे बढ़ना एक आदर्श रहा है और देश आधुनिक समय में भी ‘क्लाइमेट एक्शन’ में अपना योगदान दे रहा है। उन्होंने कहा कि ग्लोबल साउथ के कई देश विकास के विभिन्न चरणों में हैं और इस दौरान क्लाइमेट एक्शन यानी जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को रोकने के लिए कार्रवाई का ध्यान रखा जाना चाहिए।

 

उन्होंने कहा, ‘‘क्लाइमेट एक्शन की आकांक्षा के साथ हमें ये भी देखना होगा कि क्लाइमेट फाइनेंस अर्थात वित्त पोषण और ट्रांसफर ऑफ टेक्नॉलजी यानी प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण का भी ख्याल रखा जाए।’’ जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने के लिए पाबंदियों वाले रवैये को बदलने पर जोर देते हुए प्रधानमंत्री ने ‘क्या नहीं किया जाना चाहिए’ से हटकर ‘क्या किया जा सकता है’ वाली सोच को अपनाने की वकालत की। उन्होंने कहा, ‘‘हमें एक रचनात्मक कार्यसंस्कृति पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। एक टिकाऊ और सुदृढ़ ब्लू इकॉनमी के लिए चेन्नई एचएलपी हमारे महासागरों को स्वस्थ रखने में जुटी है। ग्रीन हाइड्रोजन इनोवेशन सेंटर के साथ, हमारी अध्यक्षता में स्वच्छ एवं ग्रीन हाइड्रोजन से संबंधित एक ग्लोबल इकोसिस्टम तैयार होगा।’’

 

वर्ष 2015 में भारत की पहल पर शुरु किए गए अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन का उल्लेख करते हुए मोदी ने कहा कि ‘ग्लोबल बायोफ्यूल्स अलायंस’ के माध्यम से भारत दुनिया को ‘एनर्जी ट्रांजिशन’ के योग्य बनाने में सहयोग करेगा। उन्होंने कहा, ‘‘इससे चक्रीय अर्थव्यवस्था का फायदा ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचेगा।’’ प्रधानमंत्री ने कहा कि क्लाइमेट एक्शन को लोकतांत्रिक स्वरूप देना, इस आंदोलन को गति प्रदान करने का सबसे अच्छा तरीका है। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार लोग अपने स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर रोजमर्रा के निर्णय लेते हैं, उसी प्रकार वे इस धरती की सेहत पर होने वाले असर को ध्यान में रखकर अपनी जीवनशैली तय कर सकते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘जैसे योग वैश्विक जन आंदोलन बन गया है, उसी तरह हम पर्यावरण के अनुकूल जीवनशैली (लाइफ) को भी प्रोत्साहित कर रहे हैं।’’

प्रधानमंत्री ने जलवायु परिवर्तन के कारण खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने को एक बड़ी चुनौती बताया और कहा कि इससे निपटने में मोटा अनाज या श्रीअन्न से बड़ी मदद मिल सकती है। प्रौद्योगिकी को परिवर्तनकारी करार देते हुए मोदी ने इसे समावेशी बनाने की जरूरत पर बल दिया और कहा कि अतीत में तकनीकी प्रगति का लाभ समाज के सभी वर्गों को समान रूप से नहीं मिला। उन्होंने कहा, ‘‘पिछले कुछ वर्षों में भारत ने दिखाया है कि कैसे प्रौद्योगिकी का लाभ उठाकर असमानताओं को कम किया जा सकता है।’’ इस क्रम में उन्होंने लोगों को बैंकिंग सुविधा और डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (डीपीआई) जैसी पहलों से जोड़ने के भारत के प्रयासों का उल्लेख किया।

 

उन्होंने कहा, ‘‘डीपीआई का उपयोग करके हमने जो परिणाम प्राप्त किए हैं, उन्हें पूरी दुनिया देख रही है, उसके महत्व को स्वीकार कर रही है। अब, जी-20 के माध्यम से हम विकासशील देशों को डीपीआई अपनाने, तैयार करने और उसका विस्तार करने में मदद करेंगे, ताकि वह समावेशी विकास की ताकत हासिल कर सकें।’’ प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत के लिए जी-20 की अध्यक्षता केवल एक उच्च स्तरीय कूटनीतिक प्रयास नहीं है बल्कि लोकतंत्र की जननी और विविधता के मॉडल के रूप में देश ने इस अनुभव के दरवाजे दुनिया के लिए खोल दिये हैं। उन्होंने कहा, ‘‘आज किसी काम को बड़े स्तर पर करने की बात आती है तो सहज ही भारत का नाम आ जाता है। जी-20 की अध्यक्षता भी इसका अपवाद नहीं है। यह भारत में एक जन आंदोलन बन गया है।’’

 

मोदी ने कहा कि जी-20 की अध्यक्षता का भारत का कार्यकाल खत्म होने तक भारत के 60 शहरों में 200 से अधिक बैठकें आयोजित की जा चुकी होंगी और इस दौरान 125 देशों के लगभग 100,000 प्रतिनिधियों की मेजबानी की जा चुकी होगी। उन्होंने कहा कि किसी भी देश ने इसकी अध्यक्षता करते हुए कभी भी इतने विशाल और विविध भौगोलिक विस्तार को इस तरह से शामिल नहीं किया, जितना भारत ने किया है। उन्होंने कहा, ‘‘हमारी जी-20 अध्यक्षता विभाजन को पाटने, बाधाओं को दूर करने और सहयोग को गहरा करने का प्रयास करती है। हमारी भावना एक ऐसी दुनिया के निर्माण की है, जहां एकता हर मतभेद से ऊपर हो, जहां साझा लक्ष्य अलगाव की सोच को खत्म कर दे।’’

 

प्रधानमंत्री ने कहा कि कोविड वैश्विक महामारी के बाद विश्व व्यवस्था में तीन प्रमुख बदलाव हुए जिनमें दुनिया के जीडीपी-केंद्रित दृष्टिकोण से हटकर मानव-केंद्रित दृष्टिकोण की ओर बढ़ना, दुनिया द्वारा वैश्विक आपूर्ति श्रृंख्ला में सुदृढ़ता और विश्वसनीयता के महत्व को पहचानना और वैश्विक संस्थानों में सुधार के माध्यम से बहुपक्षवाद को बढ़ावा देने का सामूहिक आह्वान शामिल हैं। उन्होंने कहा, ‘‘जी-20 की हमारी अध्यक्षता ने इन बदलावों में उत्प्रेरक की भूमिका निभाई है।’’

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