बाबा रामदेव और पतंजलि का माफीनामा नामंजूर, 30 को पेश होने का आदेश

पतंजलि आयुर्वेद द्वारा अपनी दवाओं के लिए ‘भ्रामक दावों’ पर अदालत की अवमानना को लेकर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को सुनवाई हुई. पतंजलि की ओर से पेश वकील ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि पतंजलि ने 67 अखबारों में माफीनामा दिया है, जिससे कंपनी को 10 लाख रुपये का नुकसान हुआ है. सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर रामदेव की माफी को स्वीकार नहीं किया और कहा कि मामले की सुनवाई 30 अप्रैल को होगी. सुप्रीम कोर्ट ने बाबा रामदेव को आदेश दिया कि बालकृष्ण को पेश होना होगा.

सुप्रीम कोर्ट में एलोपैथी दवाओं के खिलाफ विज्ञापनों और पतंजलि आयुर्वेद द्वारा अपनी दवाओं के ‘भ्रामक दावों’ पर कोर्ट की अवमानना ​​को लेकर मंगलवार को सुनवाई हुई. जब जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच ने इस मामले की सुनवाई की तो योग गुरु रामदेव और पतंजलि आयुर्वेद के एमडी आचार्य बालकृष्ण कोर्ट रूम में मौजूद थे.योगगुरु रामदेव की मौजूदगी में पतंजलि की ओर से पेश वकील ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि पतंजलि ने 67 अखबारों में माफीनामा दिया है, जिससे कंपनी को 10 लाख रुपये का नुकसान हुआ है. सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर रामदेव की माफी को स्वीकार नहीं किया और कहा कि मामले की सुनवाई 30 अप्रैल को होगी और अगली सुनवाई में रामदेव और बालकृष्ण को पेश होना होगा.

बता दे की कोर्ट ने यह भी कहा किआखिर मंगलवार को सुनवाई थी,तो कल माफीनामा दाखिल क्यों किया गया है, यह तो पहले ही कर दिया जाना चाहिए था. इस पर पतंजलि की ओर से पेश हुए सीनियर वकील मुकुल रोहतगी की तरफ से कहा गया कि हमने 67 अखबारों में हमने माफीनामा दिया है. इस पर हमने 10 लाख रुपए खर्च किए हैं. इसके बाद विज्ञापन पर अदालत ने पूछा कि ये उतने ही साइज का माफीनामा है, जितना बड़ा आप विज्ञापन देते हैं? अदालत ने पूछा क्या आप हमेशा इतने साइज का ही विज्ञापन देते है? जब पतंजलि के वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि कंपनी ने विज्ञापन पर लाखों खर्च किए हैं, तो अदालत ने जवाब दिया कि इसकी हमें कोई चिंता नहीं है.

इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने कहा कि वह इस मामले की याचिका में कंजूमर एक्ट को भी शामिल कर सकते हैं. ऐसे में सूचना प्रसारण मंत्रालय का क्या? हमनें देखा है कि पतंजलि मामले में टीवी पर दिखाया जा रहा है कि कोर्ट क्या कह रहा है. ठीक उसी समय एक हिस्से में पतंजलि का विज्ञापन चल रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा कि आयुष मंत्रालय ने नियम 170 (राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण की मंजूरी के बिना आयुर्वेदिक, सिद्ध और यूनानी दवाओं के विज्ञापन पर रोक) को वापस लेने का फैसला क्यों किया? क्या आपके पास यह कहने का अधिकार है कि मौजूदा नियम का पालन न करें? क्या यह मनमाना नहीं है? क्या आपको प्रकाशित होने वाली चीडों की बजाय राजस्व की अधिक चिंता नहीं है?

कोर्ट ने आगे बताया की कि पतंजलि की तरफ से कहा कि उनकी तरफ से माफीनामा प्रकाशित किया गया है. हालांकि ये बात रिकॉर्ड पर नहीं है. इसके बाद मुकुल रोहतगी ने कहा कि आज ही वो इसे रिकॉर्ड पर डालेंगे. इस पर बेंच ने कहा कि मामला केवल पतंजलि तक ही नहीं है, बल्कि दूसरे कंपनियों के भ्रामक विज्ञापनों को लेकर भी चिंता है. सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि को साफ तौर पर कहा कि माफीनामे का नया विज्ञापन भी पतंजलि को प्रकाशित करना होगा और उसे भी रिकॉर्ड पर लाना होगा.

जस्टिस कोहली ने कहा कि आपको यह बताना होगा कि एडवरटाइजिंग काउंसिल ने ऐसे विज्ञापनों के खिलाफ क्या किया और सदस्यों ने भी ऐसे उत्पादों का समर्थन किया. आपके सदस्य दवाइयां लिख रहे हैं. जिस तरह का कवरेज हमने देखा है. अब हम सभी को देख रहे हैं. हम बच्चों, शिशुओं, महिलाओं को देख रहे हैं और किसी को भी धोखा नहीं दिया जा सकता है और केन्द्र सरकार को इस पर जागना चाहिए. केवल इस अदालत के समक्ष प्रतिवादियों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि अन्य एफएमसीजी भी जनता को भ्रमित करने वाले भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित कर रहे हैं, विशेष रूप से शिशुओं, स्कूल जाने वाले बच्चों और वरिष्ठ नागरिकों के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहे हैं… जो उनके उत्पादों का उपभोग कर रहे हैं.

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