चुनावी बॉन्ड एक प्रकार का वचन पत्र है जोकि या बॉन्ड काले धन के लिए एक सुविधाजनक माध्यम बनाने की संभावनाएँ हैं। चुनावी बांड ऐसा माध्यम है जिसका उपयोग किसी भी राजनीतिक दल को राशि दान करने के लिए किया जाता है। चुनावी बांड एसबीआई के माध्यम से ही खरीदे जाते हैं, इसकी खरीदारी भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं द्वारा ही की जाती है। सरकार का रुझान यह जानने में रहता है कि दानकर्ता कौन है। यह बॉन्ड किसी भी नागरिक की तरफ से या कॉरपोरेट कंपनियों की तरफ से अपनी पसंद के मुताबिक किसी भी राजनीतिक दल को दान करने का एक माध्यम है।
प्रधानमंत्री मोदी ने तमिलनाडु के एक टीवी चैनल पर नजर आए जहा पर उन्होंने बताया कि चुनावी बॉन्ड योजना के खारिज होने से उनको किसी प्रकार का झटका नही लगा है। चुनावी बॉन्ड योजना को लेकर प्रधानमंत्री मोदी कई तथ्य रखे उन्होंने कहा की 2014 से पहले चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों को मिले पैसे का कोई हिसाब नहीं मिलता था। पीएम मोदी ने अपनी बात रखते यह भी कहा की जो लोग इसे लेकर आज खुश हो रहे है या फिर नाच रहे हैं वो जरूर पछताने वाले हैं।साथ ही मैं ये भी पूछना चाहता हूं कि उन सभी लोगो से कि 2014 से पहले के जो भी चुनाव हुए है, उनमें राशि तो अक्षय खर्च हुई है यह ऐप कोई भी अन्य एजेंसी नही है जो ये बताए को खर्च हुआ धन और कहां से आता है और कहां जाता है। हमने यह चुनावी बॉन्ड बनाया है जिसकी वजह से हम ये पता कर पा रहे है की बॉन्ड किसने द्वारा लिया गया है ,किसे दिया गया है।
चुनावी बॉन्ड की शुरुआत 2017 में हुई थी। चुनावी बॉन्ड को वित्तीय बिल 2017 के साथ पेश किया गया था। 29 जनवरी, 2018 में एनडीए सरकार के द्वारा चुनावी बॉन्ड योजना को अधिसूचित किया गया था।इस बॉन्ड के जरिए से कोई भी भारतीय नागरिक, कॉरपोरेट संस्थाओं द्वारा चुनावी बॉन्ड खरीदा जा सकता है। राजनीतिक दल को इसे उस खाते में भुनाना होगा जो भारत के चुनाव आयोग के साथ पंजीकृत है और फिर ये राजनीतिक पार्टियां इस बॉन्ड को बैंक में भुनाकर धन राशि हासिल कर सकती है। केवाईसी वेरिफाइड ग्राहक को ही बैंक चुनावी बॉन्ड बेचती है। बॉन्ड पर जिस वयक्ति या कंपनी द्वारा चंदा दिया जाता है उनके नाम का जिक्र वहा पर नहीं होता है।