नेपाल और चीन बीआरआई कार्यान्वयन समझौते पर करेंगे हस्ताक्षर,विदेशमंत्री श्रेष्ठ का बीजिंग दौरा तय

नेपाल में वामपंथी दलों की बहुमत वाली सरकार चीन के साथ बड़ा समझौता करने जा रही है। सरकार ने बेल्ट ऐंड रोड इनिसिएटिव (बीआरआई) कार्यान्वयन समझौते पर हस्ताक्षर को मंजूरी दे दी है। इस समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए विदेशमंत्री नारायणकाजी श्रेष्ठ का बीजिंग दौरा तय हो गया है। श्रेष्ठ 24 मार्च को बीजिंग दौरे पर रवाना होंगे।

विदेश सचिव सेवा लम्साल ने विदेशमंत्री के चीन दौरे की पुष्टि की है। बीजिंग में विदेशमंत्री अपने समकक्ष से मुलाकात करेंगे। लम्साल ने कहा कि इस दौरे का मुख्य मुद्दा बीआरआई के कार्यान्वयन को लेकर ही है। सन् 2017 में ही नेपाल की तत्कालीन राष्ट्रपति विद्या देवी भण्डारी ने बीआरआई पर हस्ताक्षर किया था। बावजूद इसके सात वर्ष बाद भी अब तक एक भी काम नहीं हो पाया है। चीन इसके लिए लगातार नेपाल पर दबाव बना रहा था।

प्रधानमंत्री के विदेश मामलों के सलाहकार रूपक सापकोटा ने बताया कि बीआरआई की सुनिश्चितता के लिए इंप्लीमेंटेशन एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए जाने की तैयारी है। इस समझौते के ड्राफ्ट का एक्सचेंज काठमांडू स्थित चीनी दूतावास के मार्फत हुआ है। सबकुछ ठीक रहा तो संभवत: 25 मार्च को बीजिंग में नेपाल और चीन के विदेश मंत्री इस कार्यान्वयन समझौते पर हस्ताक्षर करेंगे।

बीआरआई के जरिए चीन के ऋण जाल में नेपाल के फंसने के डर को लेकर सापकोटा ने स्पष्ट जवाब नहीं दिया। उन्होंने बस इतना संकेत दिया कि जो एग्रीमेंट का ड्राफ्ट एक्सचेंज किया गया है उसमें नेपाल की तरफ से ना तो किसी भी परियोजना का उल्लेख किया गया है और ना ही ऋण के ब्याज को लेकर कुछ भी लिखा हुआ है।

विपक्षी दल नेपाली कांग्रेस ने इसका विरोध किया है। प्रचण्ड की पिछली सरकार में वित्तमंत्री रहे नेपाली कांग्रेस के नेता प्रकाश शरण महत ने कहा कि यह नेपाल को पाकिस्तान, श्रीलंका की तरह ऋण के जाल में फंसाने जैसी चाल है। महत ने बताया कि नेपाल में किसी भी देश और इंटरनेशनल डोनर एजेंसी के तरफ से जो लोन हम लेते हैं उसका ब्याज प्रतिशत एक प्रतिशत से कम होता है। लेकिन बीआरआई में 4-5 प्रतिशत का ब्याज नेपाल के हित में नहीं है।

नेपाल में बीआरआई समझौते पर हस्ताक्षर के सात वर्ष बाद एक भी परियोजना पर काम शुरू नहीं हुआ है लेकिन पोखरा विमानस्थल के निर्माण के बीच चीन के तरफ से आधिकारिक रूप से उसे बीआरआई का फ्लैगशिप प्रोजेक्ट बताया गया था। उस समय नेपाल सरकार ने इसका विरोध भी किया था।