दिल्ली उच्च न्यायालय ने पिछले साल अक्टूबर में अपने पति को खोने वाली एक महिला को 29 सप्ताह के गर्भ को गिराने की अनुमति देने वाला अपना पूर्व में दिया आदेश मंगलवार को वापस ले लिया।
न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा, ”आदेश वापस लिया जाता है।”न्यायमूर्ति प्रसाद ने यह फैसला तब दिया है जब केंद्र ने इस आधार पर गर्भपात की अनुमति देने वाले चार जनवरी के आदेश को वापस लेने का अनुरोध करते हुए एक याचिका दायर की है कि बच्चे के जीवित रहने की उचित संभावना है और अदालत को अजन्मे बच्चे के जीवन के अधिकार की रक्षा पर विचार करना चाहिए।
केंद्र सरकार ने अपनी याचिका में कहा कि मौजूदा मामले में ”गर्भपात तब तक नहीं हो सकता जब तक कि चिकित्सक भ्रूण हत्या न कर दें, जिसमें नाकाम रहने पर जटिलताओं के साथ समय पूर्व प्रसव होगा।”अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में महिला की जांच की गयी है। उसने भी दावा किया है कि यह सलाह दी जाती है कि मां और बच्चे के स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए इस गर्भावस्था को दो-तीन सप्ताह और जारी रखा जाए।
एम्स ने कहा कि गर्भावस्था का चिकित्सीय समापन (एमटीपी) अधिनियम के अनुसार प्रमुख असामान्याताओं वाले भ्रूण के लिए 24 सप्ताह से अधिक समय बाद गर्भपात का प्रावधान है और ”इस मामले में भ्रूण हत्या न तो उचित है और न ही नैतिक है क्योंकि भ्रूण बिल्कुल सामान्य है।”
दिल्ली उच्च न्यायालय ने चार जनवरी को अवसाद ग्रस्त एक विधवा को 29 सप्ताह का गर्भ गिराने की अनुमति दी और कहा कि गर्भावस्था जारी रखना उसके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है।अदालत ने अपनी टिप्पणी में कहा था कि प्रजनन के विकल्प के अधिकार में प्रजनन न करने का अधिकार भी शामिल है।
उच्च न्यायालय ने कहा कि महिला की वैवाहिक स्थिति में बदलाव आया है। उसके पति की मृत्यु 19 अक्टूबर 2023 को हो गई थी और उसे अपने गर्भवती होने की जानकारी 31 अक्टूबर 2023 को हुई।न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा था कि महिला को गर्भ गिराने की अनुमति दी जानी चाहिए क्योंकि इसे जारी रखने से उसकी मानसिक स्थिति खराब हो सकती है क्योंकि उसमें आत्महत्या की प्रवृत्ति दिखाई दी है।
महिला का विवाह फरवरी 2023 में हुआ था और अक्टूबर में उसने अपने पति को खो दिया, इसके बाद वह अपने मायके आ गई और वहां उसे पता चला कि उसे 20 सप्ताह का गर्भ है।महिला ने दिसंबर माह में यह निर्णय लिया कि वह गर्भावस्था जारी नहीं रखेगी क्योंकि वह अपने पति की मौत से गहरे सदमे में है। उसके बाद उसने चिकित्सकों से संपर्क किया। गर्भावस्था की अवधि 24 सप्ताह से अधिक हो जाने के कारण उसे गर्भपात की अनुमति नहीं दी गई।
इसके बाद, महिला ने अदालत का रुख किया और चिकित्सकीय गर्भपात की अनुमति दिए जाने का अनुरोध किया।महिला की मानसिक स्थिति का पता लगाने के लिए एक चिकित्सकीय बोर्ड का गठन किया गया। एम्स ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि महिला अवसादग्रस्त पाई गई है।