विश्व में ऋण संकट आगे और गहरा सकता है, आईएमएफ के संसाधन बढ़ाना बहुत जरूरी : जॉर्जिएवा

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की प्रबंध निदेशिका क्रिस्तालिना जार्जिएवा ने इस समय बड़ी संख्या में गरीब और उभरते देशों के कर्ज में फंसे होने की समस्या का उल्लेख करते हुए शुक्रवार को आगाह किया कि आगे दुनिया को और भी गंभीर ऋण-संकट का सामना करना पड़ सकता है। उन्होंने कहा कि इस स्थिति से निपटने के लिए इस बहुपक्षीय संगठन की वित्तीय स्थिति को तत्काल मजबूत किए जाने की जरूरत है।

आईएमफ की प्रमुख ने इस समय मुद्रास्फीति के खिलाफ लड़ाई को सर्वोच्च प्राथमिकता बताते हुए अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए अगले 50 वर्ष का एक खाका भी रखा जिसमें निवेश और अंतराष्ट्रीय सहयोग- इन दो स्तंभों को मजबूत करने की एक रचना प्रस्तुत की है। उन्होंने यहां अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष और विश्व बैंकी शरद कालीन वार्षिक बैठक के पूर्ण अधिवेशन में कहा कि आज से 50 वर्ष पहले दुनिया में महंगाई और अनिश्चितता के कारण जो चुनौतियां थीं,

वही चुनौतियां आज भी दिखती है पर आज दुनिया उस समय की तुलना में तकनीकी विकास और आर्थिक विस्तार की दृष्टि से बहुत अलग है। इस सम्मेलन में भारत का नेतृत्व वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण कर रही हैं और रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास भी बैठक में भाग ले रहे हैं। उन्होंने ऋण संकट के विषय में कहा कि आईएमएफ की खुद की माली हालत को तत्काल मजबूत करने की दिशा में कदम उठाना जरूरी हो गया है।

सुश्री जार्जिएवा ने कहा, ‘इस समय कम आय वाले कम आय वाले आधे से अधिक देश (50 प्रतिशत से अधिक) ऋण संकट में हैं या बड़े खतरे में हैं; उभरती अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों में लगभग पांचवां हिस्सा (20 प्रतिशत) ‘डिफ़ॉल्ट-जैसी’ परिस्थितियों का सामना कर रहा है।’ उन्होंने कहा कि वैश्विक स्तर पर तय किया गया कॉमन फ्रेमवर्क (साझी व्यवस्था) धीरे-धीरे ही सही, संकटग्रस्त देशों के ऋण पुनर्गठन पर काम करना शुरू कर दियाहै।

उन्होंने कहा कि हाल में भारत की जी20 की अध्यक्षता में सरकारों के ऋण पर वैश्विकगोलमेज सम्मेलन-आईएमएफ और विश्व बैंक द्वारा स्थापित-इस नई व्यवस्था से आशाजनक संकेत मिल रहे है ओर कर्ज की वसूली के पुनर्निर्धारण (पुनर्गठन) को लेकर संबंधित लेनदारों और देनदारों के बीच सहमति बनाने का काम शुरू किया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि कोविड19 से प्रभावित ‘पिछले तीन वर्षों के दौरान ‘बिना बीमाकृत लोगों (कर्ज में फंसे गरीब देशों) के बीमाकर्ता’ के रूप में हमारी भूमिका प्रमुख रही है। आईएमएफ ने महामारी की शुरुआत के बाद से लगभग 1000 अरब डालर का कर्ज और कर्ज के लिए नकद धन की सुविधाएं दी हैं । इसमें 56 देशों को 650 अरब डॉलर के एसडीआर (कोष से धन निकासी का विशेष अधिकार) का आवंटन और 56 कम आय वाले देशों सहित 96 देशों को 320 अरब डॉलर की ऋण सहायता शामिल है।

सुश्री जॉर्जिएवा ने कहा, ‘फंड ने हाल के झटकों का चुस्त और अभूतपूर्व तरीके से जवाब दिया है। लेकिन चूंकि देशों को भविष्य में बड़े और अधिक जटिल संकटों का सामना करना पड़ सकता है-वैश्विक वित्तीय सुरक्षा के ताने बाने के केंद्र में अपनी भूमिका निभाते रहने के लिए-आईएमएफ को दो मोर्चों पर-स्थायी कोटा संसाधनों में वृद्धि और गरीबी निवारण एवं आर्थिक-वृद्धि न्यास (पीआरजीटी) के तहत सब्सिडी की भरपाई के माध्यम से तत्काल मजबूत करने की आवश्यकता है।’ पीआरजीटी के माध्यम से संगठन गरीब देशों को शून्य ब्याज पर ऋण प्रदान करता है।

आईएमएफ प्रमुख ने कहा कि देशों को अपनी सदस्यता और वैश्विक अर्थव्यवस्था में गतिशील परिवर्तनों का बेहतर प्रतिनिधित्व करने के लिए अपनी शासन संरचना को अनुकूलित करने की दिशा में काम करना जारी रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि आईएमएफ की ताकत मूल रूप से उस भरोसे पर आधारित है जो हमारे 190 सदस्य हम पर रखते हैं।संगठन के कार्यकारी बोर्ड में अफ्रीका के लिए तीसरा अध्यक्ष जोड़ने की संभावना सही दिशा में एक स्वागत योग्य कदम बताया है।

उन्होंने वैश्विक अर्थव्यवस्था के बारे में कहा कि इस समय मध्यम अवधि की विकास संभावनाओं का माहौल कमजोर है ऐसे में सही नीतियां और सुधारों की आवश्यता है। उन्होंने इस संबंध में कीमत स्थिरता को यह कहते हुए जरूरी बताया कि ‘यह विकास के लिए एक आवश्यक शर्त है और इससे लोगों, विशेषकर गरीबों की रक्षा होती।

इसी तरह वित्तीय स्थिरता की सुरक्षा, और विवेकपूर्ण राजकोषीय नीति पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण बन गयी है क्योंकि इस समय सरकारों काकर्ज़ और राकोषीय घाटा महामारी-पूर्व के स्तर से काफ़ी ऊपर हैं। उन्होंने कहा, ‘राजकोषीय घाटे को सीमित करने का समय आ गया है।’ सुश्री जॉर्जिएवा ने कहा कि प्रशासन में सुधार पर ध्यान दिया और भ्रष्टाचार से लड़ने में मदद की जानी चाहिए। आईएमएफ प्रमुख ने कहा कि विनियमन-व्यवसाय को उदार बना कर और सुधारों का सही पैकेज लागू कर के वैश्विक स्तर पर चार वर्षों में उत्पादन स्तर को 8 प्रतिशत तक बढ़ा सकता है।

उन्होंने कहा कि सभी में से सबसे अधिक प्रतिफल मानव संसाधन के विकास पर निवेश से आता है: विशेष रूप से युवा लोगों को तैयार करने के लिए शिक्षा पर निवेश है। उन्होंने यह भी कहा कि निवेश के लिए पैसे की जरूरत होती है और पैसा जुटाने के लिए कोई जादू की छड़ी नहीं है। पर उन्होंने कहा, ‘अच्छी खबर यह है कि घरेलू संसाधन जुटाने में काफी संभावनाएं हैं।

हमारे शोध से पता चलता है कि अकेले कर सुधार उभरते बाजारों के लिए राजस्व में सकल घरेलू उत्पाद का 5 प्रतिशत और कम आय वाले देशों के लिए 9 प्रतिशत तक जोड़ सकते हैं। आईएमएफ इस क्षेत्र में अपने काम को प्राथमिकता दे रहा है।’ उन्होंने कहा कि उभरते और विकासशील देशों का समर्थन करने में उन्नत अर्थव्यवस्थाओं की साझा जिम्मेदारी है। उन्होंने इसको सबके हित का काम बताया।

सुश्री जॉर्जिएवा ने कहा कि ‘1973 में नैरोबी में, उस समय के हमारे मेजबान राष्ट्रपति केन्याटा ने ‘मुद्रास्फीति और अस्थिरता की बीमारी जिसने दुनिया को त्रस्त कर दिया था’ का इलाज खोजने की आवश्यकता के बारे में बात की थी। ये सभी चुनौतियाँ आज भी एक जैसी हैं। फिर भी, कई अन्य मायनों में, हमारी आधुनिक दुनिया बहुत अलग है।’ तब से जनसंख्या 4 से 8 अरब हो गई है, प्रति व्यक्ति वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद दोगुना से अधिक हो गया है, इस संगठन की 125 से बढ़कर आज 190 हो गई है।

उन्होंने कहा, ‘तो इस कठिन अनिश्चितता के इस क्षण में, ऐसे कौन से कार्य हैं जो हमें अगले 50 वर्षों के लिए एक बेहतर कहानी लिखने में मदद करेंगे और जिनसे हमें पछतावा नहीं होगा’ उन्होंने कहा कि ऐसे कार्यों को उन्होंने दो समूहों-मजबूत आर्थिक नींव में निवेश; और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में निवेश के रूप में वर्गीक़त किया है। उन्होंने कहा कि इन कार्यों को ‘करक्कश के सिद्धांत-समूह’ में शामिल किया गया है, जिसकी हमने विश्व बैंक और मोरक्को सरकार के साथ इस सप्ताह की शुरुआत में घोषणा की थी।

उन्होंने भविष्य का एक चित्र प्रस्तुत करते हुए कहा, ‘2073 में, नवीकरणीय ऊर्जा और एआई-संचालित उद्योगों द्वारा संचालित एक स्थायी वैश्विक अर्थव्यवस्था पनप सकती है। अंतरिक्ष अन्वेषण से आर्थिक मोर्चे खुल सकते हैं, जबकि बढ़ी हुई वैश्विक कनेक्टिविटी काम की गतिशीलता को नया आकार देती है।

पारंपरिक वित्तीय प्रणालियों की जगह डिजिटल मुद्राएँ मुख्यधारा बन सकती हैं। आर्थिक समावेशिता की दिशा में प्रयासों के साथ क्रांतिकारी स्वास्थ्य देखभाल और सांस्कृतिक मेलजोल नए युग को परिभाषित कर सकता है।’ उन्होंने कहा, ‘ऐसी सोच, ऐसा दृष्टिकोण तकनीकी प्रगति, पर्यावरणीय चेतना और एक जुड़े हुए, न्यायसंगत विश्व को गले लगाता है। याद रखें, यह सब काल्पनिक है। वास्तविकता हमें आश्चर्यचकित करने का एक तरीका है।’