तेलंगाना के कई ग्रामीण परिवारों के लोगों में मोटापा की समस्या तेजी से बढ़ रही हैं क्योंकि प्रोटीन और सूक्ष्म पोषक तत्वों से भरपूर सीमित विकल्पों की तुलना में वे कार्बोहाइड्रेट की अधिक मात्रा वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करते हैं। अर्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के लिए अंतरराष्ट्रीय फसल अनुसंधान संस्थान (आईसीआरआईएसएटी) की ओर से हाल में किए गए एक अध्ययन में यह जानकारी सामने आई है।
अंतरराष्ट्रीय निकाय ‘आईसीआरआईएसएटी’ ने नीति आयोग की बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) बेसलाइन रिपोर्ट-2021 का हवाला देते हुए कहा कि यह अध्ययन तेलंगाना में किया गया क्योंकि राज्य में हर सात में से एक व्यक्ति बहुआयामी रूप से गरीब है, जो चार में से एक के राष्ट्रीय औसत से कम है। आईसीआरआईएसएटी ने कहा, ‘‘अर्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के लिए अंतरराष्ट्रीय फसल अनुसंधान संस्थान (आईसीआरआईएसएटी) का एक नया अध्ययन ग्रामीण इलाकों में मोटापे और कुपोषण की समस्या के बढ़ने के अप्रत्याशित कारणों पर प्रकाश डालकर भारत के ग्रामीण स्वास्थ्य संकट के बारे में हमारी समझ को नया आकार दे रहा है।’’
इस अध्ययन में प्रोटीन तक पहुंच की कमी और पारंपरिक खाद्य प्रणालियों तथा पोषण-संवेदनशील खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाओं के महत्व पर भी प्रकाश डाला गया है। अध्ययन में कहा गया है कि लोग अधिक मीठा डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ भी खा रहे हैं क्योंकि वे दुकानों में आसानी से उपलब्ध हैं और फलों तथा सब्जियों की तुलना में वे जल्दी खराब नहीं होते हैं। जो लोग ग्रामीण इलाकों से शहरों में आते हैं वे भी अपने आहार में बदलाव करते हैं क्योंकि वे बड़े पैमाने पर डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों के विज्ञापन से आकर्षित हो जाते हैं।
आईसीआरआईएसएटी की महानिदेशक डॉ. जैकलीन ह्यूजेस ने अध्ययन की सराहना करते हुए कहा कि जैसे-जैसे नीति निर्माता इस पोषण संबंधी चुनौती से निपटते हैं, सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को लेकर निष्क्रियता में कमी आएगी। डॉ. जैकलीन ह्यूजेस ने कहा, ‘‘बाजरा जैसे पौष्टिक उत्पादों को उपभोक्ताओं के लिए अधिक आकर्षक बनाकर विरासत को स्वास्थ्य के साथ जोड़ने के लिए खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के साथ मिलकर काम करने की आवश्यकता है।’’