आपमें से बहुत ही कम लोग होंगे जो समय-समय पर अपनी और अपने बच्चे की सेहत की जांच कराते होंगे या उसकी सेहत के बारे में सोचते होंगे। जब तक कि वह बीमार न पड़ जाए. अगर हम बच्चों के स्वास्थ्य की बात करें तो आपमें से ज्यादातर माता-पिता केवल पोषण या बाल रोग विशेषज्ञों और मोटापे तथा हृदय संबंधी बीमारियों के बारे में ही सोचते हैं। किडनी या गुर्दे के विकारों को इतना महत्व नहीं दिया जाता है। लेकिन शरीर को स्वस्थ बनाए रखने के लिए किडनी की कार्यप्रणाली का सही होना बहुत महत्वपूर्ण है। इसलिए हर माता-पिता के लिए यह जरूरी है कि वह अपने बच्चे की किडनी पर नजर रखते हुए उसे खिलाएं-पिलाएं और उसका ध्यान रखें। क्योंकि बच्चों में किडनी रोगों का खतरा लगातार बढ़ रहा है, दुनिया भर में लाखों कम उम्र के छोटे बच्चे गुर्दे से जुड़ी बीमारियों से प्रभावित हो रहे हैं, इसलिए किडनी रोगों के बारे में जानकारी और जागरूकता जरूरी है।
गुर्दे के कार्य- स्वस्थ जीवन जीने के लिए गुर्दे के कार्य और भूमिका को समझना आवश्यक है। स्वस्थ जीवन को बनाए रखने के लिए गुर्दे के कार्य और भूमिका को समझना आवश्यक है। गुर्दे यानि कि किडनी खुन से अतिरिक्त पानी और अपशिष्ट को छान लेते हैं, जो कि मूत्र के रूप में शरीर से बाहर निकलता है।इसके अतिरिक्त, गुर्दे ऐसे हार्मोन स्रावित करते हैं जो रक्त बनाने और हड्डियों को मजबूत बनाने में मदद करते हैं। इसलिए जब आपकी किडनी प्रभावित होती है, तो वे शरीर से अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकालने में असमर्थ हो जाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप हृदय रोग का खतरा भी बढ़ जाता है और किडनी खराब हो जाती है।
बच्चों में लक्षण
- यहां कुछ संकेत दिए गए हैं, जिनसे माता-पिता को सतर्क हो सकते हैं और अंदाजा लगा सकते हैं कि उनके बच्चे के स्वास्थ्य में गड़बड़ी है-
- बच्चे की खराब विकास दर और वजन बढ़ने में कठिनाई आना।
- लगातार शरीर में दर्द, पेशाब में जलन या पेशाब अधिक समय लगना।
- सुबह उठते समय चेहरे व पैरों का सूजना।
- पेशाब का रंग बदलना या पेशाब करने की जगह पर चींटियों का दिखना।
- पेट में दर्द होना।
माता-पिता की भूमिका
- बच्चों में गुर्दे या किडनी की बीमारियों के बारे में जानकारी और महत्व के बारे में माता-पिता को जागरूक होना बहुत महत्वपूर्ण है। आइए जानते हैं कि माता-पिता की इसमें क्या भूमिका होनी चाहिए।
- माता-पिता के लिए बच्चों में स्वस्थ जीवनशैली के लिए शुरुआती पहचान जरूरी है। यदि बच्चों के स्वास्थ्य पर पहले से ध्यान दिया जाए, तो किडनी की क्षति जैसे किडनी की चोटें, पुरानी बीमारियां और किडनी के विकारों से बचा जा सकता है।
- इसके अलावा गर्भावस्था की के दौरान माँ की इसमें महत्वपूर्ण भूमिका होती है। क्योंकि एक स्वस्थ माँ से एक होने वाले बच्चे की किडनी भी स्वस्थ व अच्छी होती हैं। एक पौष्टिक माँ से उसके बच्चें के स्वास्थ्य पर इसके असर की संभावना कम हो जाती है।
- इसीलिए एक गर्भवती महिला को अपनी अच्छी तरह से देखभाल करनी होती है क्योंकि आपको व आपके पेट में पल रहे भ्रूण को प्रोटीन, आयरन और विटामिन से भरपूर आहार की आवश्यकता होती है। यदि बच्चा आनुवांशिक बीमारी के साथ पैदा हुआ है, तो उसका कुछ नहीं किया जा सकता है।
समय से पहले प्रसव या उच्च रक्तचाप और मधुमेह से पीड़ित बच्चों में किडनी रोग और हृदय रोग का खतरा अधिक होता है।
सावधानियां
हाल में हुए एक अध्ययन के अनुसार, भारत में गुर्दे की बीमारी की दर बढ़ रही है, जिसमें कि प्रत्येक 100 में से 17 लोग ग1र्दे की बीमारी से पीडि़त हैं। इन यदि माता-पिता बच्चे को स्वस्थ और उसकी किडनियों को सुरक्षित रखने के लिए इन सावधानियों और सुझावों को ध्यान में रखें, जिससे कि गुर्दे की बीमारी के जोखिमों को कम किया जा सकता।
स्वस्थ आहार- माता-पिता को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके बच्चे अच्छे पौष्टिक भोजन के साथ-साथ स्वस्थ और फिट भोजन भी खाएं और अपने बच्चों को मोटापे से दूर रखने का प्रयास करें। इसके लिए आप बच्चों को स्कूली खेलों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करके शुरुआत कर सकते हैं। इसके अलावा, आपको बच्चे को वसा, कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन के मिश्रण से युक्त संतुलित आहार देना चाहिए और चीनी और नमक के स्तर को संतुलित बनाए रखना चाहिए। प्रोसेस्ड फूड और जंक फूड और पेय पदार्थों से दूरी बनाए रखें।
तरल पदार्थों का सेवन- स्वस्थ रहने के लिए बच्चों को तरल पदार्थ, विशेषकर जितना संभव हो उतना पानी का सेवन करना महत्वपूर्ण है। लेकिन, यदि बच्चे निर्जलित हैं, तो उन्हें अधिक बार पेशाब नहीं करना चाहिए, क्योंकि पानी शरीर द्वारा अवशोषित हो जाता है।
धूम्रपान न करना- यह अभिभावकों की जिम्मेदारी है कि वह अपने बच्चों को धूम्रपान से दूर रखें। कई लोग अपने बच्चों के सामने ही धूम्रपान करते हैं, जिससे बच्चे के अंदर भी इच्छा होती है कि वह भी ऐसा करे।
दवाएं और ड्रग्स- एस्पिरिन और अन्य प्रतिबंधित ड्रग्स का उपयोग सीधे गुर्दे या लिवर को प्रभावित कर सकता है। यह शरीर को डिहाईड्रेट करता है और गुर्दे की विफलता की ओर ले जाता है।
स्लैश सोडियम- बहुत अधिक सोडियम हाई ब्लड प्रेशर का कारण बनता है। इसलिए नमक का सेवन कम मात्रा में करना ही बेहतर होता है। इसलिए दिन में 1.5 से 2.3 ग्राम नमक का सेवन ही करें।
पोटैशियम- पोटैशियम पानी के स्तर को संतुलित करने और सोडियम के प्रभाव को कम करने में मदद करता है, जिससे हाई ब्लड प्रेशर को कम किया जा सकता है। इसलिए बच्चों को पोटेशियम युक्त भोजन (आलू, पालक, बीन्स और कम वसा वाले डेयरी उत्पाद) का सेवन करवाया जा सकता है।
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