27 सितंबर 1946 के दिन ब्रिटिश इंडिया के लाहौर (अब पाकिस्तान का हिस्सा) में जन्मे रवि चोपड़ा उन सितारों में शुमार हैं, जो भारत-पाकिस्तान के बंटवारे में बर्बाद से रूबरू हुए थे. जाने-माने निर्माता-निर्देशक बीआर चोपड़ा के बेटे होने की वजह से रवि को सिनेमा की समझ काफी आसानी से हो गई थी. हालांकि, उन्होंने मुकाम अपने दम पर हासिल किया. बर्थ एनिवर्सरी स्पेशल में हम आपको रवि चोपड़ा की जिंदगी के चंद पन्नों से रूबरू करा रहे हैं.
महाभारत ने दिलाई थी शोहरत
गौरतलब है कि रवि चोपड़ा फिल्म इंडस्ट्री के दिग्गज निर्देशकों में शुमार रहे. उन्होंने अपने करियर के दौरान कई शानदार फिल्में बनाईं. हालांकि, उन्हें शोहरत की बुलंदियों पर मशहूर धार्मिक सीरियल ‘महाभारत’ ने पहुंचाया, जिसके चलते लोग उनके मुरीद हो गए. उन्होंने इस सीरियल का निर्देशन किया था.
ऐसा रहा रवि चोपड़ा का करियर
बता दें कि रवि चोपड़ा ने सिनेमा की दुनिया में अपने करियर की शुरुआत पिता बीआर चोपड़ा की छाया तले की थी. उन्होंने बीआर चोपड़ा की फिल्मों दास्तान और धुंध में बतौर असिस्टेंट काम किया. इसके अलावा चाचा यश चोपड़ा के साथ भी वह बतौर असिस्टेंट नजर आए. रवि ने अपने दम पर भी फिल्में बनाई और बतौर निर्देशक उनके करियर की शुरुआत साल 1975 के दौरान फिल्म जमीर से हुई. यह फिल्म उनके फैमिली बैनर बी आर फिल्म्स के तहत बनाई गई थी.
बुरी तरह फ्लॉप हुआ था रवि का यह प्रोजेक्ट
आपको जानकर हैरानी होगी कि रवि चोपड़ा ने अपने जमाने में कई ऐसे प्रयोग किए, जिन्हें देखकर लोगों ने दांतों तले उंगलियां दबा लीं. दरअसल, उन्होंने मल्टी स्टारर फिल्म ‘द बर्निंग ट्रेन’ का निर्देशन किया. उस जमाने में यह फिल्म सुपरफ्लॉप रही, लेकिन इसे आज कल्ट क्लासिक माना जाता है. बता दें कि इस फिल्म में 52 चर्चित कलाकारों ने काम किया था, लेकिन आम लोगों को यह फिल्म पसंद नहीं आई और सिर्फ दो ही दिन बाद यह सिनेमाघरों से उतर गई थी. इसके अलावा रवि चोपड़ा ने मजदूर (1983), आज की आवाज (1984), दहलीज (1986), कल की आवाज (1992), भूतनाथ (2008) और भूतनाथ रिटर्न्स (2013) आदि फिल्में भी बनाईं. वहीं, बागबान की सफलता ने तो रवि चोपड़ा की कामयाबी में चार चांद लगा दिए.
फेफड़ों की बीमारी ने छीन ली जिंदगी
फिल्मों के साथ-साथ रवि चोपड़ा ने कई सीरियल्स का भी निर्देशन किया. रवि चोपड़ा को साल 2012 के दौरान फेफड़ों की गंभीर बीमारी होने की जानकारी मिली. काफी समय तक उनका इलाज चला, लेकिन साल 2014 के दौरान 12 नवंबर के दिन मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में उनका निधन हो गया.
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