एआईएमआईएम अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने उच्चतम न्यायालय से नागरिकता संशोधन अधिनियम के नियमों के क्रियान्वयन पर तब तक रोक लगाने का अनुरोध किया है जब तक शीर्ष अदालत नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए), 2019 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं का निस्तारण नहीं कर देती।
केंद्र ने संसद द्वारा इस अधिनियम को पारित करने के करीब चार साल बाद 11 मार्च को कानून के नियमों की अधिसूचना के साथ इसके कार्यान्वयन का मार्ग प्रशस्त कर दिया था।इसके तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आए गैर-मुस्लिम प्रवासियों को भारत की नागरिकता दी जाएगी।नागरिकता संशोधन कानून के कुछ प्रावधानों की वैधता को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं में शामिल ओवैसी ने अब शीर्ष अदालत में आवेदन दायर कर कानून और 2024 में लागू नियमों के क्रियान्वयन पर याचिकाओं के निस्तारण तक रोक लगाने का अनुरोध किया है।
उन्होंने अदालत से यह निर्देश देने का भी अनुरोध किया है कि ”कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान नागरिकता अधिनियम, 1955 (क्योंकि यह नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 द्वारा संशोधित है) की धारा 6 बी के तहत प्रतिवादियों द्वारा नागरिकता का दर्जा देने की मांग करने वाले किसी भी आवेदन पर विचार या कार्रवाई नहीं की जाए।”