मारुति सुजूकी इंडिया के कार्यकारी अधिकारी (कॉर्पोरेट मामले) राहुल भारती ने बताया कि अगर गुजरात के हंसलपुर संयंत्र में रेल का बुनियादी ढांचा स्थापित नहीं किया गया होता तो उसे क्षमता संबंधी बाधा का सामना करना पड़ता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हंसलपुर संयंत्र में भारत की पहली इन-प्लांट ऑटोमोबाइल रेलवे साइडिंग का उद्घाटन किया। इस साइडिंग की बदौलत मारुति रेलवे के जरिये सालाना 3,00,000 कारों की ढुलाई कर सकेगी। इस पूरी परियोजना की लागत 1,081 करोड़ रुपये है।
उन्होंने कहा कि ईमानदारी से कहें तो भले ही हमें इस परियोजना के कारण कुछ न बच रहा हो, लेकिन फिर भी हमें काफी खुशी होगी क्योंकि इससे हमें बड़ा पैमाना मिल रहा है। यह कारों की ढुलाई का बहुत ही सुरक्षित, कुशल और स्वच्छ तरीका है। अगर रेल का बुनियादी ढांचा नहीं होता तो हमें क्षमता संबंधी बाधा झेलनी पड़ती। वित्तीय बचत के बिना भी यह कारों के परिवहन का बेहतर तरीका है। रेलवे साइडिंग का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि केवल दो महीने पहले ही देश की सबसे बड़ी कार विनिर्माता कंपनी ने कहा था कि वह अपनी वार्षिक विनिर्माण क्षमता 7,50,000 से बढ़ाकर 10 लाख तक करने के लिए 3,200 करोड़ रुपये की लागत से हंसलपुर संयंत्र में नई उत्पादन लाइन स्थापित करेगी।
इस नई लाइन का परिचालन साल 2026-27 से शुरू होगा। यह पूछे जाने पर कि क्या सड़क के बजाय रेलवे के जरिये कार ढुलाई करने से मारुति को बचत होती है, तो भारती ने जवाब दिया कि यह बहुत चीजों पर निर्भर करता है। यह क्षेत्रों, ट्रेनों की समयसारणी आदि पर निर्भर करता है। अलबत्ता हां, कुछ बचत तो होती है। साल 2023-24 के पहले 11 महीने के दौरान मारुति ने रेलवे के जरिये 4,09,000 गाडिय़ों की ढुलाई की थी जबकि शेष गाडिय़ां सड़क मार्ग से भेजी गई थीं। नई लाइन के कारण इसमें काफी बढ़ोतरी होने की उम्मीद है। भारती ने कहा ‘एक रेक (ट्रेन) 270 से 300 कारें ले जाती है और इसलिए यह 40 ट्रकों का स्थान ले लेती है। इसलिए नई रेलवे साइडिंग के कारण लगभग 50,000 ट्रकों के फेरे कम हो जाएंगे जिससे हमें 3.5 करोड़ लीटर जीवाश्म ईंधन बचाने में मदद मिलेगी।