मणिपुर: जनजातीय निकाय के आह्वान पर दो जिलों के सरकारी कार्यालयों में कम उपस्थिति दर्ज की गई

मणिपुर सरकार की चेतावनी के बावजूद राज्य के चुराचांदपुर और फेरजावल जिलों के सरकार कार्यालयों में एक जनजातीय निकाय के आह्वान पर सोमवार को कर्मचारियों की उपस्थिति कम दर्ज की गई।इसके पहले राज्य सरकार ने चेतावनी दी थी कि यदि कर्मचारी अनधिकृत छुट्टी लेते हैं तो ‘काम नहीं, तो वेतन नहीं’ का नियम लागू किया जाएगा।

चुराचांदपुर स्थित एक संगठन, ‘इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम’ (आईटीएलएफ) ने जिले के सरकारी कर्मचारियों से आग्रह किया था कि वे एक पुलिसकर्मी के निलंबन को लेकर सोमवार से काम पर न आएं। इस निलंबित पुलिसकर्मी को कथित तौर पर एक वीडियो में हथियारबंद लोगों के साथ देखा गया था।

एक सूत्र ने कहा, ”कार्यालय वीरान दिखे। शायद ही कोई सरकारी कर्मचारी नजर आया। चुराचांदपुर और फेरजावल जिलों में लोक निर्माण विभाग, कृषि, मत्स्य पालन और वन विभाग के कार्यालय बंद रहे।” इन दोनों जिलों में ज्यादातर कुकी समुदाय के लोग रहते हैं।चुराचांदपुर जिले के एक अधिकारी ने कहा, ”कार्यालय पहुंचे कई कर्मचारियों ने वहां किसी अन्य कर्मचारी को नहीं देखा, तो वे भी लौट गए।”

उन्होंने कहा कि बाजार, स्कूल और निजी क्षेत्र के प्रतिष्ठान खुले रहे और उन पर कोई असर नहीं पड़ा। आईटीएलएफ ने हेड कांस्टेबल सियामलालपॉल के निलंबन को रद्द करने और पुलिस अधीक्षक शिवानंद सुर्वे और उपायुक्त धरुण कुमार को ‘तत्काल बदलने’ की मांग को लेकर यह आह्वान किया था।

इस आह्वान के जवाब में गृह विभाग के एक आदेश में कहा गया, ”सभी राज्य सरकार के कार्यालयों या संस्थानों द्वारा उन कर्मचारियों के खिलाफ ‘काम नहीं, तो वेतन नहीं’ नियम लागू किया जाएगा जो अधिकृत छुट्टी के बिना अपनी आधिकारिक ड्यूटी पर नहीं आते हैं।”अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मेइती समुदाय की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ आयोजित किए जाने के बाद पिछले साल मई से मणिपुर जातीय हिंसा से जूझ रहा है।

इस हिंसा में अब तक 180 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं।मणिपुर की आबादी में मेइती समुदाय की भागीदारी 53 फीसदी है जो मुख्य रूप से इंफाल घाटी में रहते हैं। नगा और कूकी जनजातीय समुदाय की राज्य की आबादी में हिस्सेदारी 40 फीसदी है जो पहाड़ी जिलों में रहते हैं।