हमास के युद्ध विराम के एलान ने अधिकतर विश्लेषकों को चौंका दिया है. इसके साथ ही आने वाले हफ़्तों में जो कुछ हो सकता था, उसे लेकर इसराइल की उम्मीदें भी ख़त्म हो गई हैं.
इसराइल अब तक यही सोच रहा था कि हमास युद्ध विराम के उस प्रस्ताव को कभी स्वीकार नहीं करेगा जिसे अमेरिका ने ‘असाधारण रूप से उदार’ बताया था.
सुबह की पहली किरण के उदय के साथ ही इसराइल ने जल्द शुरू होने वाली मिलिट्री कार्रवाई को देखते हुए फ़लस्तीनियों को रफ़ाह का पूर्वी इलाका छोड़ने की चेतावनी दे दी थी .
हालांकि अमेरिकियों ने रफ़ाह में ऐसे किसी ग्राउंड ऑपरेशन का विरोध किया है जिससे आम लोगों की ज़िंदगी पर जोख़िम आए.
इसराइल के रक्षा मंत्री योएव गैलंट ने अपने अमेरिकी समकक्ष को स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि उनके पास कोई रास्ता नहीं रह गया है क्योंकि हमास ने अस्थाई युद्ध विराम और बंधकों की रिहाई के लिए दिए गए हरेक प्रस्ताव को रद्द कर दिया था.
लेकिन अमेरिका, मिस्र और क़तर की ओर से मध्यस्थता कर रहे वार्ताकारों ने युद्ध विराम पर ज़ोर देना जारी रखा हुआ था.
नेतन्याहू की बढ़ी मुश्किलें
अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसी सीआईए के प्रमुख वीलियम बर्न्स ने दोहा में क़तर के प्रधानमंत्री के साथ दिन का अधिकतर समय बैठकों में गुजारा.
दोहा में ही हमास का राजनीतिक नेतृत्व अपना ऑफ़िस चलाता है.
शाम होते ही हमास ने ये एलान किया कि वो युद्ध विराम के प्रस्ताव को स्वीकार कर लेगा. फ़लस्तीनी सूत्रों ने ये भी संकेत दिया है कि हमास दीर्घकालीन युद्ध विराम के लिए भी तैयार हो सकता है.
प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने इस एलान पर अपनी पहली सार्वजनिक प्रतिक्रिया में कहा कि हमास “इसराइल की मांगों को पूरा करने में अभी बहुत पीछे हैं.”
इसके बावजूद इसराइल ने हमास के एलान पर चर्चा के लिए एक प्रतिनिधिमंडल भेजा है.
प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू एक राजनीतिक उलझन में फंस गए हैं. उनकी गठबंधन सरकार यहूदी राष्ट्रवादियों के समर्थन पर टिकी हुई है.
यहूदी राष्ट्रवादियों की मांग है कि इसराइल रफ़ाह पर पूरी तरह नियंत्रित हासिल कर ले और अगर ऐसा नहीं होता है तो नेतन्याहू सरकार की गिराई जा सकती है.
अब युद्धविराम के एलान का मतलब ये है कि रफ़ाह पर कोई हमला नहीं हो पाएगा.
जब ये सब कुछ चल रहा है तो लगभग उसी समय इसराइली बंधकों के परिजन और समर्थक विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, प्रमुख सड़कों को जाम कर रहे हैं.
उनकी मांग है कि इसराइल बंधकों की घर वापसी के लिए इसराइल इस समझौते को स्वीकार कर ले.
क्या चाहते हैं अमेरिकी?
अमेरिकी भी समझौता चाहते हैं. इसराइल की सेना ने बड़ी संख्या में फ़लस्तीनी नागरिकों की जान ली है.
ऐसे में इसराइल के प्रति राष्ट्रपति जो बाइडन का समर्थन उन्हें चुनावी साल में घरेलू मोर्चे पर राजनीतिक तौर पर बहुत महंगा पड़ रहा है.
हमास के इस फ़ैसले की वजह से प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू पर राजीनितक दबाव बढ़ गया है.
अगर राष्ट्रपति बाइडन उन पर युद्धविराम समझौते को स्वीकार करने के लिए दबाव डालते हैं तो बिन्यामिन नेतन्याहू को अपनी सरकार और अमेरिकी राष्ट्रपति के समर्थन में से एक को चुनना पड़ेगा.
सात अक्टूबर को हमास के हमले के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति ने इसराइल को महत्वपूर्ण समर्थन दिया था.
इन हालात में युद्धविराम का ये भी मतलब निकाला जाएगा कि इसराइल ‘संपूर्ण जीत’ हासिल नहीं कर पाया है.
प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू इसराइल को ये ‘संपूर्ण जीत’ दिलाने का वादा करते रहे हैं.
इसराइल और हमास के बीच अभी बातचीत के और दौर बाक़ी हैं और दोनों ही पक्षों को आने वाले वक़्त में मुश्किल फ़ैसले लेने पड़ सकते हैं.
यह भी पढ़ें:-