मध्यप्रदेश के रतलाम जिले की कुल पांच विधानसभा सीटों पर मुख्य मुकाबला भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस के बीच ही है, लेकिन बागियों की उपस्थिति ने मुकाबला रोचक बना दिया है। रतलाम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा भाजपा और कांग्रेस के प्रमुख नेता भी चुनाव प्रचार के लिए आ चुके हैं।
चुनाव प्रचार अभियान चरम पर पहुंचने के बीच कांग्रेस और भाजपा दोनों ही प्रमुख दलों के प्रत्याशी मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं। जिले की पांच में से चार सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबले की तस्वीर उभरकर सामने आ रही है और इन चारों ही सीटों पर तीसरे यानी “बागी” प्रत्याशियों की मौजूदगी कांग्रेस के लिए चुनौती बनती नजर आ रही है।
पांच विधानसभा सीटों में से रतलाम और जावरा सामान्य सीटें है, जबकि सैलाना और रतलाम ग्रामीण सीटें अनुसूचित जनजाति (अजजा) के लिए सुरक्षित हैं। एक अन्य आलोट विधानसभा सीट अनुसूचित जाति (अजा) के लिए सुरक्षित है।
कुल पांच विधानसभा सीटों पर वैसे तो कुल चालीस प्रत्याशी मैदान में भाग्य आजमाने के लिए उतरे हैं, लेकिन इनमें से भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों के अलावा इक्के दुक्के ही ऐसे हैं, जो अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में सक्षम है। अन्य पार्टियों की बात की जाए, तो बहुजन समाजपार्टी ने पांचों सीटों पर प्रत्याशी उतारे है, लेकिन उनका यहां कोई ज्यादा असर नहीं दिखायी दे रहा है। इसी तरह समाजवादी पार्टी ने भी रतलाम सिटी में अपनी प्रत्याशी को उतारा है, लेकिन वह भी महत्वहीन है।
जिले में कुल लगभग 11 लाख एक हजार सात सौ मतदाता अपने मताधिकार का उपयोग कर सकेंगे। इनमें महिला मतदाताओं की संख्या 5,50,894 और पुरुष मतदाता 5,50,811 हैं। जिले में सर्वाधिक मतदाता जावरा सीट पर है। जबकि रतलाम सिटी, सैलाना और जावरा ऐसी विधानसभा सीटें है, जहां महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों से अधिक है।
रतलाम सिटी विधानसभा सीट पर यूं तो कुल 8 प्रत्याशी मैदान में है, लेकिन यहां मुख्य मुकाबला भाजपा के वर्तमान विधायक चैतन्य काश्यप और कांग्रेस के पारस सकलेचा के बीच है। रतलाम सिटी को आमतौर पर भाजपा का गढ माना जाता रहा है। पूर्व गृह मंत्री हिम्मत कोठारी यहां से कई बार विधायक का चुनाव जीते हैं। पिछले दो कार्यकाल से चैतन्य काश्यप यहां जीत रहे हैं।
पिछले दो विधानसभा चुनावों के आंकडों पर नजर डाली जाए, तो चैतन्य काश्यप ने पहली बार 2013 में अपनी निकटतम कांग्र्रेस प्रत्याशी अदिती दवेसर को 40
हजार से अधिक मतों से हराया था और चुनाव में खडे अन्य 12 निर्दलीय प्रत्याशियों के साथ कांग्रेस प्रत्याशी की भी जमानत जब्त हो गई थी। पिछले विधानसभा चुनाव यानी 2018 में चैतन्य काश्यप ने अपनी स्थिति को और मजबूत करते हुए कांग्रेस प्रत्याशी प्रेमलता दवे को 43 हजार से अधिक मतों से पराजित किया था। इस बार कांग्रेस ने पारस सकलेचा को प्रत्याशी बनाया है।
पारस सकलेचा ने वर्ष 2008 के विधानसभा चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में तत्कालीन गृह मंत्री हिम्मत कोठारी को करीब तीस हजार मतों से पराजित किया था और इसी वजह से वे चर्चाओं में आ गए थे। लेकिन बाद में हिम्मत कोठारी की चुनाव याचिका पर सुनवाई के बाद उच्च न्यायालय ने सकलेचा का चुनाव निरस्त कर दिया था।
पारस सकलेचा पर आरोप था कि उन्होंने आधारहीन झूठे आरोप लगाकर चुनाव में जीत हासिल की थी। उच्च न्यायालय ने इन आरोपों को सही माना और पारस सकलेचा की विधायकी चली गई थी। दूसरी तरफ विधायक चैतन्य काश्यप की छवि विकास कराने की रही है। उनके पिछले दो कार्यकाल के दौरान मेडीकल कालेज और नमकीन क्लस्टर जैसी उपलब्धियां शहर को मिलीं। यहां चुनाव का मुख्य मुद्दा विकास ही नजर आ रहा है।
जिले की दूसरी सामान्य सीट जावरा में रोचक मुकाबला हो रहा है। यहां से वर्तमान विधायक डा. राजेन्द्र पाण्डेय फिर से भाजपा प्रत्याशी है, जबकि कांग्रेस ने आलोट निवासी वीरेन्द्र सिंह सोलंकी को अपना प्रत्याशी बनाया है। जावरा में पिछले तीन विधानसभा चुनावों में भाजपा के डा. राजेन्द्र पाण्डेय ही जीतते रहे हैं और इस बार वे चौथी बार मैदान में उतरे हैैं।
दूसरी ओर कांग्रेस ने पहले हिम्मत सिंह श्रीमाल को अपना प्रत्याशी घोषित किया था और बाद में बदलकर वीरेन्द्र सिंह को अपना प्रत्याशी बनाया। दूसरी ओर करणी सेना के नेता जीवन सिंह शेरपुर भी निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में मैदान में है। जीवन सिंह ने भी कांग्रेस से टिकट की मांग की थी, लेकिन टिकट नहीं मिला। कांग्रेस प्रत्याशी के बाहरी होने का मुद्दा भी उसके लिए परेशानी पैदा करने वाला है।
जावरा विधानसभा सीट पर पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया के खास रहे महेन्द्र सिंह कालूखेडा विधायक चुने जाते रहे हैं। जावरा विधानसभा क्षेत्र को सिंधिया समर्थकों का गढ माना जाता रहा है। सिंधिया के कांग्रेस छोडकर भाजपा में चले जाने से जावरा कांग्रेस के कई महत्वपूर्ण नेता अब भाजपा में जा चुके हैं। चुनाव में विकास का मुद्दा होने के साथ साथ कांग्रेस में बाहरी उम्मीदवार होने का मुद्दा भी उठाया जा रहा है। अब देखना है कि मौजूदा हालातों में जनता किसको अपना प्रतिनिधि चुनती है।
पिछले दो चुनावों के आकड़ें देखें, तो 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के डॉ राजेन्द्र पाण्डेय ने कांग्रेस के मो. युसूफ कडपा पर 29 हजार से अधिक मतों सेजीत दर्ज की थी, लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव यानी 2018 में उन्होने कांग्रेस प्रत्याशी के के सिंह कालूखेडा को मात्र 511 मतों से पराजित किया था। उस चुनाव में भाजपा के एक बागी श्यामबिहारी ने लगभग 23 हजार मत हासिल किए थे। लेकिन इस बार के के सिंह कालूखेडा कांग्रेस छोडकर भाजपा में आ चुके है और भाजपा का कोई बागी मैदान में नहीं है।
अनुसूचित जनजाति (अजजा) के लिए सुरक्षित रतलाम ग्रामीण सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला है। भाजपा की ओर से पूर्व विधायक मथुरालाल डामर प्रत्याशी है, तो कांग्रेस ने जनपद पंचायत के पूर्व सीईओ लक्ष्मण सिंह डिण्डौर को अपना प्रत्याशी बनाया है। जयस की ओर से डा. अभय ओहरी निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में मैदान में है। इस सीट पर कुल पांच प्रत्याशी हैं, लेकिन मुख्य मुकाबला त्रिकोणीय है।
भाजपा ने पिछले विधायक दिलीप मकवाना का टिकट काटकर पूर्व विधायक मथुरालाल को टिकट दिया है। इस वजह से दिलीप मकवाना के प्रति उपजी नाराजगी को पार्टी ने थामने का प्रयास किया है। पिछले दो चुनाव के आंकड़े देखें, तो वर्ष 2013 में इस सीट पर भाजपा के मथुरालाल डामर ने कांग्रेस की लक्ष्मीदेवी खराडी को 26,926 वोटों से हराया था। वर्ष 2018 में भाजपा ने मथुरालाल का टिकट काट कर दिलीप मकवाना को टिकट दिया था और दिलीप मकवाना ने कांग्रेस के थावरलाल भूरिया को 5,605 वोटों से हराया था।
सैलाना, जिले की दूसरी सीट है, जो अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित है। यहां कांग्रेस के हर्षविजय गेहलोत विधायक हैं। भाजपा ने उनके सामने पूर्व विधायक संगीता चारेल को टिकट दिया है। सैलाना सीट ऐसी सीट है, जहां महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों से अधिक है। यहां कुल 2,10,430 मतदाता हैं,
जिनमें पुरुषों की संख्या 1,04,115 है, जबकि महिला मतदाताओं की संख्या 1,06,315 है। यहां भाजपा कांग्रेस के अलावा 8 प्रत्याशी और मैदान में है। इस प्रकार कुल दस प्रत्याशी किस्मत आजमा रहे हैैं। मुकाबले को त्रिकोणीय मुकाबला जयस संस्थापक कमलेश्वर डोडीयार ने बनाया है।
सैलाना क्षेत्र में आदिवासियों से जुड़े संगठन जयस का खासा प्रभाव माना जाता है। पिछले जिला पंचायत चुनाव में सैलाना विधानसभा क्षेत्र के चार वार्डोँ में जयस के प्रत्याशियों ने भाजपा और कांग्रेस दोनों को बुरी तरह पराजित किया था। जयस संस्थापक कमलेश्वर डोडीयार का आदिवासी युवाओं में जबर्दस्त प्रभाव है। जयस प्रत्याशी की मौजूदगी कांग्रेस के लिए बडा खतरा मानी जा रही है।
दूसरी ओर भाजपा को अपने संगठन तंत्र पर भरोसा है। पिछले दो चुनावों के आंकडों को देखें, तो वर्ष 2013 में यहां भाजपा की संगीता चारेल ने कांग्रेस के हर्षविजय गेहलोत को2079 वोटों से हराया था। जबकि वर्ष 2018 में कांग्रेस के हर्षविजय ने अपनी हार का बदला भाजपा के नारायण मईडा से लिया था और उन्होंने 28,498 मतों की जबर्दस्त जीत हासिल की थी।
जिले की आलोट सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित है। यहां कांग्रेस ने विधायक मनोज चावला को दोबारा मैदान में उतारा है, तो भाजपा ने पूर्व सांसद डा. चिंतामणि मालवीय पर दांव लगाया है। कांग्रेस के बडे नेता रहे पूर्व सांसद और पूर्व विधायक प्रेमचन्द गुड्डू यहां निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में मैदान में हैं और यही कांग्रेस के लिए बड़ा खतरा है।
आलोट में कुल नौ प्रत्याशी अपना भाग्य आजमा रहे हैैं। आलोट में कांग्रेस विधायक मनोज चावला के कार्यकाल को लेकर आम मतदाताओं में कथित नाराजगी भी परेशानी का कारण बन सकती है। इसके अलावा पूर्व सांसद प्रेमचन्द गुडु के मैदान में होने से कांग्रेस की संभावनाओं पर भी सबकी नजरें हैं।
गुड्डू पूर्व में एक बार आलोट से विधायक रह चुके हैं। पिछले दो चुनावों को देखें, तो वर्ष 2013 में यहां भाजपा के जितेन्द्र गेहलोत ने कांग्रेस के अजीत प्रेमचन्द गुड्डू को 7973 मतों से पराजित किया था। लेकिन वर्ष 2018 के चुनाव में भाजपा के जितेन्द्र गेहलोत कांग्रेस के मनोज चावला से 5448 मतों से पराजित हो गए थे।