उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि बिलकीस बानो मामले में समय से पहले रिहाई के लिए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाने वाले एक दोषी के साथ गुजरात सरकार की मिलीभगत थी ।
न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि उसे समझ नहीं आ रहा कि गुजरात सरकार ने 13 मई, 2022 के उस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल क्यों नहीं की जिसमें गुजरात सरकार को एक कैदी की समय पूर्व रिहाई की याचिका पर राज्य की 9 जुलाई, 1992 की नीति के अनुरूप विचार करने का निर्देश दिया गया था।
गुजरात सरकार ने 1992 में माफी की नई नीति जारी की थी जिसके तहत जेल परामर्श बोर्ड की अनुकूल राय पर उन दोषियों की याचिकाओं पर विचार किया जा सकता है जिन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई गई हो और जो कम से कम 14 साल कारावास की सजा काट चुके हों।
पीठ ने कहा, ”इस अदालत के 13 मई, 2022 के आदेश का लाभ उठाते हुए अन्य दोषियों ने भी माफी के लिए आवेदन दाखिल किए और गुजरात सरकार ने माफी आदेश जारी कर दिया। गुजरात की संलिप्तता थी और उसने इस मामले में प्रतिवादी संख्या 3 (दोषी राधेश्याम शाह) के साथ मिलकर काम किया। गुजरात द्वारा सत्ता का उपयोग राज्य द्वारा सत्ता को हड़पने के समान था।”शीर्ष अदालत ने अपनी एक अन्य पीठ के 13 मई, 2022 के आदेश को भी निष्प्रभावी कर दिया।