पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के वकील ने आठ फरवरी के आम चुनाव से पहले दो निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ने के लिए खान के नामांकन पत्रों को खारिज किए जाने के खिलाफ सुनवाई में भारत की अदालत के एक फैसले का उल्लेख किया। वकील ने अदालत को बताया कि भारतीय अदालत नैतिक आचरण में कदाचार के मामलों को कब वित्तीय भ्रष्टाचार के रूप में वर्णित करती है।
‘डॉन’ अखबार की खबर के मुताबिक पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के संस्थापक खान का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील उजैर भंडारी ने यह तुलना तब की जब लाहौर उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ ने मंगलवार को खान के नामांकन पत्रों की अस्वीकृति के संबंध में दो याचिकाओं पर सुनवाई की। खबर में कहा गया है कि उच्च न्यायालय ने मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। कई मामलों का सामना कर रहे खान (71) जेल में बंद हैं।
पाकिस्तान निर्वाचन आयोग ने पंजाब प्रांत के लाहौर (एनए-122) और मियांवाली (एनए-89) निर्वाचन क्षेत्रों से खान के नामांकन पत्रों को खारिज कर दिया था। निर्वाचन आयोग ने तोशाखाना भ्रष्टाचार मामले में दोषी ठहराए जाने के आधार पर खान के नामांकन पत्र को खारिज कर दिया था। एनए-122 से उनका नामांकन पत्र इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि प्रस्तावक निर्वाचन क्षेत्र का मतदाता नहीं है।तोशाखाना मामले में खान पर नियमों का उल्लंघन करके राष्ट्रीय खजाने से महंगे वाहन लेने का आरोप है। विदेशी नेताओं द्वारा पाकिस्तानी शीर्ष नेताओं को उनकी यात्राओं के दौरान दिए गए सभी उपहार तोशाखाने में रखे जाते हैं।
‘डॉन’ के मुताबिक भंडारी ने तर्क दिया कि नैतिक कदाचार के आरोप में दोषसिद्धि अयोग्यता की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आती है। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता की सजा को भ्रष्टाचार या अवैध संपत्ति जमा करने के लिए सजा के बराबर नहीं माना जा सकता। उन्होंने कहा कि भारत की एक अदालत ने वित्तीय भ्रष्टाचार से जुड़े अपराध की तुलना में नैतिक कदाचार के अपराध को निचले स्तर पर सूचीबद्ध किया है।
पीठ ने हालांकि कहा कि पाकिस्तान में नैतिकता के मानक अन्य क्षेत्रों से अलग हैं। भंडारी ने दलील दी कि निर्वाचन अधिकारी के पास नैतिक कदाचार की सजा के आधार पर आदेश पारित करने का कोई अधिकार नहीं था। उन्होंने कहा कि इस्लामाबाद उच्च न्यायालय पहले ही याचिकाकर्ता की सजा निलंबित कर चुका है।निर्वाचन आयोग के एक वकील ने दलील दी कि याचिकाकर्ता की दोषसिद्धि अब भी लागू है और उन्हें उच्च न्यायालय द्वारा बरी नहीं किया गया था।