बीते सप्ताह देश के तेल-तिलहन बाजारों में कारोबार का मिला-जुला रुख रहा। एक ओर जहां मूंगफली और बिनौला तेल कीमतों में सुधार दर्ज हुआ, वहीं सरसों एवं सोयाबीन तेल-तिलहन, कच्चा पामतेल (सीपीओ) और पामोलीन तेल कीमतें गिरावट दर्शाती बंद हुईं।सूत्रों ने कहा कि बीते सप्ताह सहकारी संस्था नेफेड ने सरसों की बिकवाली करने के मकसद से निविदा मंगाई थी जिसके बाद सरसों तेल-तिलहन के भाव टूटने लगे। हालांकि, बाद में कमजोर बोलियों को देखते हुए नेफेड ने बिक्री गतिविधि को रोक दिया लेकिन इस स्थिति ने सरसों तेल-तिलहन के दाम को प्रभावित किया।
वैसे देखें तो खुदरा में सरसों का भाव 110-115 रुपये लीटर से अधिक नहीं होना चाहिये, पर यह तेल 140-150 रुपये लीटर के भाव बिक रहा है। सरसों तिलहन का बाजार भाव अब भी भारी दबाव में है और इसका दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से सात-आठ प्रतिशत नीचे लगाया जा रहा है।सूत्रों ने कहा कि आयातित सोयाबीन तेल बंदरगाहों पर लागत से लगभग सात प्रतिशत नीचे बेचा जा रहा है। कांडला बंदरगाह पर पाम, पामोलीन और सोयाबीन तेल के लदे जहाज खड़े हैं और जिस रफ्तार से अत्यधिक आयात हो रहा है, उसके मुकाबले तेल लदे जहाजों के खाली करने की रफ्तार कम है क्योंकि मांग के मुकाबले आयात जरूरत से ज्यादा है।
बैंकों का ऋण साख पत्र चलाते रहने के लिए आयातक घाटे में अपना माल बेच रहे हैं जिसमें विदेशी मुद्रा का नुकसान हो रहा है।मूंगफली के बढ़िया माल की कमी की वजह से इसके तेल-तिलहन के दामों में सुधार दिखा। आयातित सस्ते खाद्य तेलों के मुकाबले वैसे मूंगफली तेल का दाम लगभग दोगुना है लेकिन अच्छी गुणवत्ता वाले स्टॉक की कमी की वजह से इसमें सुधार है।उन्होंने कहा कि कांडला बंदरगाह पर सूरजमुखी तेल का आयात कम होने की वजह से बिनौला तेल कीमतों में भी सुधार आया। दूसरी ओर आयातकों द्वारा लागत से कम दाम पर बिक्री के कारण सीपीओ और पामोलीन तेल में गिरावट है।
सूत्रों ने कहा कि खाद्य तेल से कहीं ज्यादा अधिक खपत वाले दूध और दुग्ध उत्पाद, खुदरा मुद्रास्फीति को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं और देशी तेल-तिलहन की पेराई कम होने से खल की कमी होने के साथ इसके दाम काफी बढ़े हैं जिससे दूध कीमतों में निरंतर इजाफा देखने को मिला है।बाजार सूत्रों ने कहा कि सरकार के साथ-साथ तेल संगठनों को देश में खाद्य तेलों के हो रहे बेछूट आयात और घाटे में यानी बेपड़ता बिकवाली का संज्ञान लेना चाहिये। इसके अलावा देशी तेल मिलों की समस्या और तिलहन किसानों के माल न खपने की शिकायत के साथ-साथ उपभोक्ताओं को खुदरा में ऊंचे दाम पर खाद्य तेल मिलने जैसे मुद्दे पर ध्यान देना होगा।
पिछले सप्ताहांत के मुकाबले बीते सप्ताह सरसों दाने का थोक भाव 125 रुपये घटकर 5,475-5,525 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। सरसों दादरी तेल का भाव 350 रुपये घटकर 10,000 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। सरसों पक्की और कच्ची घानी तेल का भाव क्रमश: 50-50 रुपये की हानि दर्शाता क्रमश: 1,710-1,805 रुपये और 1,710-1,820 रुपये टिन (15 किलो) पर बंद हुआ।समीक्षाधीन सप्ताह में सोयाबीन दाने और लूज का भाव क्रमश: 135 रुपये और 130 रुपये की गिरावट के साथ क्रमश: 4,970-5,065 रुपये प्रति क्विंटल और 4,720-4,835 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।
सोयाबीन दिल्ली, सोयाबीन इंदौर और सोयाबीन डीगम तेल के दाम क्रमश: 250 रुपये, 300 रुपये और 200 रुपये की गिरावट के साथ क्रमश: 9,550 रुपये, 9,450 रुपये और 7,900 रुपये रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुए।समीक्षाधीन सप्ताह में अच्छी गुणवत्ता के माल की कमी की वजह से मूंगफली तिलहन, मूंगफली गुजरात और मूंगफली साल्वेंट रिफाइंड के भाव भी क्रमश: 125 रुपये, 305 रुपये और 35 रुपये सुधरकर क्रमश: 7,565-7,615 रुपये, 18,225 रुपये और 2,665-2,950 रुपये प्रति टिन पर बंद हुए।
आयात लागत से कम दाम में बंदरगाहों पर बिकवाली होने के कारण समीक्षाधीन सप्ताह के दौरान कच्चे पाम तेल (सीपीओ) का भाव 325 रुपये की हानि के साथ 7,600 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। पामोलीन दिल्ली का भाव 305 रुपये घटकर 8,850 रुपये प्रति क्विंटल तथा पामोलीन एक्स कांडला का भाव 275 रुपये की हानि दर्शाता 8,000 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।सूरजमुखी तेल का आयात कम होने से बिनौला तेल का भाव 25 रुपये के सुधार के साथ 8,500 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।