महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) भुगतान के लिए आधार-आधारित प्रणाली कथित तौर पर अनिवार्य होने के बीच कांग्रेस ने सोमवार को कहा कि मोदी सरकार को सबसे कमजोर भारतीयों को उनके सामाजिक कल्याण लाभों से वंचित करने के लिए “प्रौद्योगिकी”, विशेष रूप से आधार को हथियार बनाना बंद करना चाहिए।विपक्षी दल ने इसकी निंदा भी की और आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ‘‘मनरेगा के लिए सर्वविदित तिरस्कार ऐसे प्रयोगों में तब्दील हो गया है
जिसमें लोगों को बाहर करने के लिए प्रौद्योगिकी को एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है।’’कांग्रेस महासचिव एवं पार्टी के संचार विभाग के प्रभारी जयराम रमेश ने कहा कि मनरेगा के भुगतान को आधार आधारित भुगतान प्रणाली (एबीपीएस) के माध्यम से ‘मैनडेट’ करने के लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय (एमओआरडी) द्वारा निर्धारित समय सीमा का पांचवां विस्तार 31 दिसंबर, 2023 को समाप्त हो गया। रमेश ने कहा, ‘‘कुल 25.69 करोड़ मनरेगा श्रमिक हैं, जिनमें से 14.33 करोड़ को सक्रिय श्रमिक माना जाता है।
27 दिसंबर तक की स्थिति के अनुसार, कुल पंजीकृत श्रमिकों (8.9 करोड़) में से 34.8 प्रतिशत और सक्रिय श्रमिक (1.8 करोड़) में से 12.7 प्रतिशत अभी भी एबीपीएस के लिए अयोग्य हैं।’’ उन्होंने कहा कि मनरेगा मजदूरी भुगतान के लिए एबीपीएस का उपयोग करने में श्रमिकों, पेशेवरों और शोधकर्ताओं द्वारा कई चुनौतियां उजागर किये जाने के बावजूद, मोदी सरकार ने “प्रौद्योगिकी के साथ विनाशकारी प्रयोग” जारी रखा है।
उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘यह प्रधानमंत्री का अत्यंत गरीब और हाशिए पर रहने वाले करोड़ों भारतीयों को बुनियादी आय अर्जन से बाहर करने का नए साल का खतरनाक तोहफा है।” रमेश ने कहा कि एमओआरडी द्वारा 30 अगस्त, 2023 को जारी एक बयान में कुछ संदिग्ध दावे किए गए थे जैसे कि जॉब कार्ड इस आधार पर नहीं हटाए जाएंगे कि श्रमिक एपीबीएस के लिए पात्र नहीं है और यह कि कुछ “परामर्श” में विभिन्न “हितधारकों” ने एबीपीएस को भुगतान के लिए सर्वोत्तम तरीका पाया है।
रमेश ने कहा कि इसमें यह भी दावा किया गया है कि एबीपीएस श्रमिकों को समय पर भुगतान दिलाने में मदद करता है और लेनदेन अस्वीकृति से बचाता है। उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘पहली बात, अप्रैल 2022 के बाद से, चिंताजनक रूप से 7.6 करोड़ पंजीकृत श्रमिकों को प्रणाली से हटा दिया गया।
चालू वित्तीय वर्ष में नौ महीने में 1.9 करोड़ पंजीकृत श्रमिकों को व्यवस्था से हटा दिया गया था। हटाए गए श्रमिकों के जमीनी सत्यापन से पता चला है कि ऐसे श्रमिकों की बड़ी संख्या हैं जिनका नाम गलत तरीके से हटाया गया, यह मोदी सरकार की आधार प्रमाणीकरण और एबीपीएस को लागू करने की जल्दबाजी का परिणाम है।’’ रमेश ने कहा कि मंत्रालय को स्पष्ट करना चाहिए कि ये “हितधारक” कौन थे और ये परामर्श कब किया गया था।
उन्होंने दावा किया, ‘‘वास्तव में, मोदी सरकार ने एबीपीएस के कार्यान्वयन और अन्य तकनीकी हस्तक्षेपों पर कई प्रतिनिधिमंडलों की चिंताओं को अनसुना किया है।” उन्होंने कहा, ‘‘भुगतान दक्षता में एबीपीएस के साथ वृद्धि के संबंध में एमओआरडी के दावे, जो अप्रमाणित हैं, को लिबटेक इंडिया वर्किंग पेपर द्वारा पूरी तरह से खारिज कर दिया गया है।
अध्ययन में यह प्रदर्शित करने के लिए 3.2 करोड़ भुगतान लेनदेन का विश्लेषण किया गया है कि केंद्र सरकार द्वारा खाता और आधार आधारित भुगतान में लगने वाले समय में सांख्यिकीय रूप से कोई महत्वपूर्ण अंतर नहीं है।’’ उन्होंने कहा कि ‘वर्किंग पेपर’ यह भी दर्शाता है कि एबीपीएस और खाता-आधारित भुगतान के बीच अस्वीकृति दरों में अंतर सांख्यिकीय रूप से नगण्य है।
रमेश ने आरोप लगाया, ‘‘मनरेगा के प्रति प्रधानमंत्री का सर्वविदित तिरस्कार ऐसे कई प्रयोगों में तब्दील हो गया है जिन्हें वंचित करने के लिए प्रौद्योगिकी को हथियार के रूप में इस्तेमाल करने के लिए तैयार किया गया है, जैसे डिजिटल उपस्थिति (एनएमएमएस), एबीपीएस, ड्रोन निगरानी और एनएमएमएस में चेहरे की पहचान के प्रस्तावित एकीकरण।’’
उन्होंने दावा किया कि करोड़ों भारतीयों पर इन प्रयोगों को शुरू करने से पहले कोई उचित परामर्श या वैज्ञानिक परीक्षण नहीं किया गया। रमेश ने अपने बयान में कहा, ‘‘कांग्रेस 30 अगस्त, 2023 की अपनी मांग दोहराती है कि मोदी सरकार को सबसे कमजोर भारतीयों को उनके सामाजिक कल्याण लाभों से वंचित करने के लिए प्रौद्योगिकी, विशेष रूप से आधार को हथियार बनाना बंद करना चाहिए, विलंबित वेतन भुगतान जारी करना चाहिए और पारदर्शिता में सुधार के लिए ओपन मस्टर रोल और सोशल ऑडिट लागू करना चाहिए।’’