मुंबई उच्च न्यायालय की औरंगाबाद पीठ ने यौन अपराधों से जुड़े गंभीर मामलों में जैविक एवं अजैविक साक्ष्यों के संग्रहण और संरक्षण के लिए निर्धारित मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) का अनुपालन नहीं किये जाने को लेकर नाराजगी प्रकट की है।न्यायमूर्ति विभा कंकनवाड़ी और न्यायमूर्ति अभय वाघवासे की खंडपीठ ने मंगलवार को अपने फैसले में कहा कि पुलिस मशीनरी और अपराध विज्ञान विशेषज्ञों ने जैविक एवं अजैविक साक्ष्यों के संग्रहण और उन्हें नष्ट होने से बचाने के लिए बनायी गयी मानक संचालन प्रक्रिया के अनुपालन के प्रति ‘घोर उपेक्षा’ दिखायी है।
खंडपीठ ने कहा, ”इससे चिकित्सा विशेषज्ञों, पुलिस मशीनरी जैसे संबंधित पक्षों का बहुत ही गैर संवेदनशील रवैया झलकता है।”इसी के साथ उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र के परभनी जिले की विशेष अदालत के आदेश को खारिज कर दिया। विशेष अदालत ने 21 वर्षीय एक व्यक्ति को छह साल की लड़की के साथ कथित रूप से बलात्कार करने का दोषी ठहराया था।उच्च न्यायालय ने आरोपी को सुनायी गयी उम्रकैद की सजा भी यह कहते हुए रद्द कर दी कि अभियोजनपक्ष तार्किक संदेह से परे जाकर उसके खिलाफ मामला साबित नहीं कर पाया,
इसलिए वह उसे संदेह का लाभ देने के लिए बाध्य है।उच्च न्यायालय ने कहा कि इस मामले में सबूतों का संग्रहण एवं सुरक्षित संरक्षण गंभीर संदेह के दायरे में आ गया है।उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘हम इस अवसर पर राज्य एवं अभियोजन पक्ष के संज्ञान में लाना चाहते हैं कि पुलिस, चिकित्सा विशेषज्ञ, अपराध विज्ञान विशेषज्ञ और यहां तक अभियोजक जैसे सभी पक्षों को सबूतों के उपयुक्त संग्रहण और उसे संभालकर रखने के प्रति संवेदनशील रहने की जरूरत है ताकि सबूत नष्ट होने उसकी गुणवत्ता खराब होने की आशंका न रहे।”
अदालत ने निर्देश दिया कि राज्य सरकार सभी संबंधित पक्षों के लिए समय-समय पर संवेदनशीलता से जुड़े कार्यक्रम आयोजित करे।अभियोजन के अनुसार नंवबर, 2018 में जब पीड़िता अपने घर लौट रही थी, तब आरोपी उसे अपने साथ नजदीक के एक वीरान भवन में ले गया और वहां उसने उसके साथ कथित रूप से बलात्कार किया।
पीड़िता के पिता ने इस मामले में पुलिस में प्राथमिकी दर्ज कराई जिसकी जांच के बाद पुलिस ने युवक को गिरफ्तार किया।युवक ने अपनी अपील में दावा किया कि उसे मामले में फंसाया गया है। उन्होंने कहा कि लड़की ने कथित अपराधी की अस्पष्ट पहचान दी थी और उसे केवल संदेह के आधार पर गिरफ्तार किया गया था।उसने दावा किया कि मामले में साक्ष्य एकत्र करते समय चिकित्सा विशेषज्ञों, पुलिस तंत्र और फोरेंसिक विशेषज्ञों की ओर से चूक हुई जिससे मामला संदिग्ध हो गया।