मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में प्रचार अभियान अब अपने चरम पर पहुंच गया है और खंडवा जिले में चारों विधानसभा क्षेत्रों खंडवा, पंधाना, मान्धाता और हरसूद में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अपना कब्जा बरकरार रखने के लिए संघर्ष करती हुयी दिख रही है। कांग्रेस भी भाजपा के इस गढ़ में सेंध लगाने के प्रयास में जुटी है।
किसी समय यह निमाड़ का पूर्वी अंचल कांग्रेस का गढ़ रहा करता था। लेकिन बीते दो-तीन दशक में हालात इसके ठीक उलट हो गए हैं। चारों विधानसभा क्षेत्रों में वैसे तो सभी जगह दो से ज़्यादा प्रत्याशी हैं, लेकिन यहाँ सीधा मुक़ाबला दोनों प्रमुख दल कांग्रेस और भाजपा के बीच ही है।
जिला मुख्यालय खंडवा विधानसभा क्षेत्र की सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित है, जहां पर मुख्य मुक़ाबला भाजपा की श्रीमती कंचन मुकेश तनवे और कांग्रेस के कुन्दन मालवीय के बीच ही है, हालाकि बसपा सहित चार और प्रत्याशी मैदान में हैं। लेकिन वे परिणाम प्रभावित करने की स्थिति में नहीं दिखते हैं।
पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा के देवेन्द्र वर्मा ने कांग्रेस प्रत्याशी कुन्दन मालवीय को 19,137 मतों के बड़े अंतर से पराजित किया था। लगातार तीन बार से विधायक चुने जाने के बावज़ूद भाजपा ने यहां अपने मौजूदा विधायक देवेन्द्र वर्मा का टिकट काटकर जिला पंचायत अध्यक्ष श्रीमती कंचन मुकेश तन्वे को प्रत्याशी बनाया है, जबकि कांग्रेस ने पिछले चुनाव में बड़े अंतर से पराजय के बावज़ूद कुन्दन मालवीय को पुनः मौका दिया है।
खंडवा का चुनावी इतिहास देखें, तो 1952 से लेकर 2018 तक के कुल 15 विधानसभा चुनाव में यहां सिर्फ 6 बार कांग्रेस, जबकि 9 बार भाजपा और पूर्ववर्ती पार्टी जनसंघ चुनाव जीतती रही है। आजादी के बाद के आरंभिक वर्षों में यहाँ कांग्रेस सतत जीतती रही, लेकिन उसकी जीत 1990 के बाद थम गई। वर्ष 1990 से लेकर अब तक 7 चुनाव में यहाँ भाजपा का एकछत्र कब्ज़ा बरक़रार है।
जिले की एक अन्य सीट हरसूद से भाजपा नेता एवं राज्य के मंत्री विजय शाह वर्ष 1990 से सतत 33 वर्षों से चुनाव जीतते आये हैं और इस बार भी भाजपा ने उन्हें मौका दिया है। पिछले विधानसभा चुनाव में श्री शाह ने कांग्रेस के प्रत्याशी सुखराम साल्वे को 18,949 मतों के बड़े अंतर से पराजित किया था। इस बार ये जोड़ी फिर आमने-सामने है। विजय शाह भाजपा के प्रमुख आदिवासी नेताओं में से एक हैं। वे प्रदेश के विभिन्न मंत्रालयों में कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं। इस समय वे प्रदेश के वन मंत्री हैं।
अनुसूचित जनजाति (अजजा) के लिए सुरक्षित हरसूद विधानसभा आदिवासी बहुल पिछड़ा क्षेत्र है, जहां कुपोषण एक गंभीर समस्या है। वर्ष 1957 से लेकर 2018 तक के कुल 14 विधानसभा चुनाव में यहाँ सिर्फ 4 बार कांग्रेस, जबकि 9 बार भाजपा या पूर्ववर्ती पार्टी जनसंघ चुनाव जीतती रही है। एक बार यहाँ अन्य पार्टी ने भी जीत दर्ज की है। आरंभिक वर्षों में यहाँ कांग्रेस सतत जीतती रही, लेकिन उसकी जीत 1990 के बाद थम गई। 1990 से लेकर अब तक 7 चुनाव में यहाँ भाजपा का एकछत्र कब्ज़ा बरक़रार है। इस बार चुनाव में बसपा उम्मीदवार सहित कुल पांच प्रत्याशी मैदान में है लेकिन सीधा मुकाबला भाजपा के शाह और कांग्रेस के साल्वे के बीच ही है।
पंधाना विधानसभा क्षेत्र से पिछले चुनाव में भाजपा के राम दांगोरे ने कांग्रेस की छाया मोरे को 23,750 मतों के बड़े अंतर से पराजित किया था। तब कांग्रेस की बागी प्रत्याशी रुपाली बारे ने 25,456 वोट हासिल किये थे। इस चुनाव में महत्वपूर्ण बात यह है कि भाजपा ने अपने वर्तमान विधायक राम दांगोरे का टिकट काटकर हाल ही में कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुयीं छाया मोरे को अपना प्रत्याशी बनाया है। कांग्रेस ने भी पिछले चुनाव में बागी रही रुपाली बारे को अपना प्रत्याशी बनाया है। पंधाना के चुनावी मैदान में भी बसपा उम्मीदवार सहित 5 प्रत्याशी भाग्य आज़मा रहे हैं लेकिन मुख्य मुक़ाबला कांग्रेस की रुपाली और भाजपा की छाया मोरे के बीच ही माना जा रहा है। मज़ेदार बात यह है कि यहाँ से एक निर्दलीय महिला प्रत्याशी भी है, जिसका भी नाम छाया मोरे ही है।
पंधाना विधानसभा क्षेत्र को भाजपा के गढ़ के रूप में देखा जाता है। यहाँ 1962 में विधानससभा क्षेत्र के अस्तित्व में आने के बाद अब तक हुए कुल 13 चुनाव में भाजपा (पूर्व में जनसंघ) ने 10 चुनाव जीते है, जबकि कांग्रेस यहाँ सिर्फ 3 बार ही जीत सकी है। यह सीट 1962 से लेकर 2008 तक अनुसूचित जाति (SC) के लिए आरक्षित रही, जबकि 2008 के बाद से यह अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षित है।
इसके अलावा मान्धाता विधानसभा क्षेत्र खंडवा जिले की एकमात्र सामान्य सीट पर सर्वाधिक 12 प्रत्याशी मैदान में हैं। लेकिन मुख्य मुक़ाबला भाजपा के नारायण पटेल (सिंधिया गुट) और कांग्रेस के उत्तमपाल सिंह के बीच में ही है। वर्ष 2020 के उपचुनाव में मान्धाता में यही जोड़ी आमने -सामने थी, जिसमें भाजपा के नारायण पटेल ने कांग्रेस के उत्तमपाल सिंह को 22 हजार 129 मतों के बड़े अंतर से पराजित किया था। जबकि वर्ष 2018 के मुख्य चुनाव में नारायण पटेल ने कांग्रेस के टिकट से चुनाव जीता था, तब वे मात्र 1200 मतों के मामूली अंतर से चुनाव जीतकर आये थे।
मान्धाता विधानसभा क्षेत्र को मूलतः भाजपा के गढ़ के रूप में ही देखा जाता है। सन 1962 से 2020 तक एक उपचुनाव सहित कुल 14 विधानसभा चुनाव में यहाँ भाजपा 8 बार जीती, तो कांग्रेस सिर्फ 5 बार, जबकि एक बार यहाँ से निर्दलीय विधायक 1962 के चुनाव में चुने गए थे। कांग्रेस प्रत्याशी उत्तमपाल सिंह के पिता ठाकुर राजनारायण सिंह यहाँ से तीन बार विधायक रहे हैं और हाल ही के लोकसभा उपचुनाव में वे कांग्रेस के प्रत्याशी थे। मूल रूप से यह मालगुज़ारी का क्षेत्र होने से यहाँ की राजनीति में राजपूतों का वर्चस्व माना जात है, लेकिन यहाँ गुर्जर मतदाता भी निर्णायक स्थिति में हैं।
इस अंचल में चुनाव प्रचार अभियान चरम पर पहुंच गया है और 17 नवंबर को मतदान के साथ ही सभी प्रत्याशियों की किस्मत इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) में बंद हो जाएगी। अपेक्षाकृत शांत दिखायी दे रहे मतदाताओं की राय का खुलासा तीन दिसंबर को मतगणना के साथ हो जाएगा।