मुंबई उच्च न्यायालय की औरंगाबाद पीठ ने शिवसेना (यूबीटी) के प्रमुख उद्धव ठाकरे के खिलाफ निरर्थक याचिका दायर करने पर नांदेड़ के एक व्यक्ति पर दो लाख रुपये का जुर्माना लगाया है और उसे यह राशि ‘डिमांड ड्राफ्ट’ के रूप में महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री को व्यक्तिगत रूप से सौंपने का निर्देश दिया है।
दर्शनशास्त्र में डॉक्टरेट होने का दावा करने वाले और बंजारा समुदाय से संबंध रखने वाले मोहन चव्हाण ने दलील दी थी कि एक समारोह के दौरान उसके महंत द्वारा दी गई विभूति को न लगाकर ठाकरे ने उनकी धार्मिक भावनाओं को आहत किया है।
न्यायमूर्ति एस जी मेहरे की एकल पीठ ने 29 अगस्त के आदेश में कहा कि कानून की थोड़ी सी जानकारी रखने वाला व्यक्ति भी याचिका को पहली बार देखकर ही बता देगा कि यह ‘‘कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग या प्रसिद्ध और सेलिब्रिटी बनने के लिए न्यायिक प्रणाली का इस्तेमाल करने’’ के अलावा और कुछ नहीं है।
अदालत ने कहा, ‘‘ऐसी याचिकाएं समाज के सम्मानित सदस्यों की छवि को खराब करती हैं। अकसर ऐसी याचिकाएं गलत इरादे से दायर की जाती हैं।’’
इसने कहा कि ठाकरे के खिलाफ लगाए गए आरोपों का मूल रूप से कोई आधार नहीं है।
पीठ ने चव्हाण को याचिका वापस लेने की अनुमति देते हुए कहा कि यह कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग करने पर जुर्माना लगाने के लिए एक उचित मामला है।
अदालत ने चव्हाण पर दो लाख रुपये का जुर्माना लगाया जिसे याचिकाकर्ता को तीन सप्ताह के भीतर ठाकरे को देना होगा। अदालत ने चेतावनी दी कि यदि यह राशि नहीं दी गई तो कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
इसने कहा, ‘‘याचिकाकर्ता (चव्हाण) की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव बालासाहेब ठाकरे के नाम से डीडी (डिमांड ड्राफ्ट) व्यक्तिगत रूप से उनके घर भेजा जाना चाहिए और इसे उनके हाथों में या उनके द्वारा निर्देशित व्यक्ति को सौंपा जाना चाहिए।’’
अपनी याचिका में चव्हाण ने दावा किया कि उसके महंत एक समारोह के लिए ठाकरे के आवास पर गए थे और इस दौरान शिवसेना नेता को प्रसाद के रूप में मिठाई के साथ-साथ विभूति भी दी गई थी।
चव्हाण ने याचिका में कहा कि मिठाई और विभूति स्वीकार करने के बाद ठाकरे ने पवित्र भस्म को अपने माथे पर लगाने के बजाय उसे अपने पास खड़े एक अन्य व्यक्ति को दे दिया था। उसने कहा कि इस कृत्य से उसकी धार्मिक भावनाएं आहत हुई हैं।
चव्हाण ने नांदेड़ में मजिस्ट्रेट की अदालत में ठाकरे के खिलाफ एक निजी शिकायत दर्ज कराई थी, जिसे खारिज कर दिया गया था। इसके बाद उसने सत्र न्यायालय में अपील की थी। सत्र न्यायालय द्वारा भी याचिका खारिज किए जाने के बाद चव्हाण ने उच्च न्यायालय का रुख किया था।
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