न्यायालय ने हल्के मोटर वाहन ड्राइविंग लाइसेंस के मामले पर सुनवाई बहाल करने का फैसला किया

उच्चतम न्यायालय ने इस कानूनी सवाल पर सुनवाई फिर से शुरू करने का बुधवार को फैसला किया कि क्या हल्के मोटर वाहन के लिए ड्राइविंग लाइसेंस रखने वाला व्यक्ति 7,500 किलोग्राम तक के वजन वाले ऐसे परिवहन वाहन को चला सकता है, जिस पर कोई सामान नहीं लदा हो।

केंद्र की ओर से न्यायालय में पेश अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा कि हालांकि मोटर वाहन (एमवी) अधिनियम 1988 में संशोधन के लिए परामर्श की प्रक्रिया ‘‘लगभग पूरा हो चुकी है’’ लेकिन प्रस्तावित संशोधनों को अभी संसद के समक्ष पेश किया जाना बाकी है। इसके बाद, प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने यह फैसला सुनाया।

शीर्ष विधि अधिकारी ने कहा कि संशोधित विधेयक को शीतकालीन सत्र में संसद के समक्ष पेश किया जा सकता है। उन्होंने पीठ को सुझाव दिया कि या तो संसद द्वारा इसे मंजूरी दिए जाने तक सुनवाई स्थगित कर दी जाए या मामले को आगे बढ़ाया जाए।

इस पीठ में न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय, न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा, न्यायमूर्ति पंकज मिथल और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल रहे।

पीठ ने कहा कि चूंकि इस मामले पर पहले ही कुछ समय से सुनवाई जारी है, इसलिए मोटर वाहन अधिनियम में संशोधनों को संसद द्वारा मंजूरी दिए जाने की प्रतीक्षा किए बिना ही सुनवाई आगे बढ़ाई जाएगी।

इस कानूनी प्रश्न ने उन मामलों में बीमा कंपनियों द्वारा दावों के भुगतान से जुड़े विभिन्न विवादों को जन्म दिया है जिनमें हल्के वाहन चलाने का लाइसेंस रखने वाले व्यक्तियों के परिवहन वाहन चलाते समय दुर्घटनाएं हुई हैं।

इससे पहले, 16 अप्रैल को न्यायालय ने वेंकटरमणी द्वारा एक नोट प्रस्तुत करने के बाद मामले की सुनवाई को स्थगित कर दिया था। नोट में संकेत दिया गया था कि सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा किए गए परामर्श में मोटर वाहन अधिनियम, 1988 में संशोधन के प्रस्ताव प्राप्त हुए हैं और आम चुनाव के बाद नवगठित संसद के समक्ष इन्हें रखा जाएगा।

पीठ ने कहा था, ‘‘मंत्रालय ने अपने 15 अप्रैल, 2024 के पत्र के माध्यम से कानून में प्रस्तावित संशोधन का ब्योरा रिकॉर्ड पर रखा है।’’

संविधान पीठ ने कहा था कि सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय का रुख जानना आवश्यक होगा, क्योंकि यह तर्क दिया गया था कि मुकुंद देवांगन बनाम ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड के मामले में शीर्ष अदालत के 2017 के फैसले को केंद्र ने स्वीकार कर लिया था और नियमों में संशोधन किया गया था।

मुकुंद देवांगन मामले में, शीर्ष अदालत की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने माना था कि परिवहन वाहन, जिसका कुल वजन 7,500 किलोग्राम से अधिक नहीं है, को एलएमवी (हल्के मोटर वाहन) की परिभाषा से बाहर नहीं रखा गया है।

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