पूर्वोत्तर में हाथियों के 11 गलियारों में कृत्रित मेधा आधारित निगरानी तंत्र की शुरुआत से वहां ट्रेन की टक्कर से हाथियों की मौत के मामलों को रोकने में काफी मदद मिली है और अब पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे इसे पूरे क्षेत्र में शुरू करने की योजना बना रहा है। एक अधिकारी ने यह जानकारी दी। घुसपैठ का पता लगाने वाली प्रणाली (आईडीएस) को पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे (एनएफआर) की ओर से दिसंबर 2022 में हाथियों के 11 गलियारों में लगाया गया था।
अलीपुरद्वार मंडल में पांच और लुमडिंग मंडल में छह उपकरण लगाए गए थे। एनएफआर के अनुसार, दिसंबर 2022 में इसकी शुरुआत से इस साल जुलाई तक आठ माह में आईडीएस ने 9,768 यानी रोजाना औसतन 41 चेतावनी संदेश दिये। एनएफआर के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी सब्यसाची डे ने कहा, ‘‘जब भी कोई हाथी रेलवे लाइन पर कदम रखता है तो यह प्रणाली ट्रेन नियंत्रक, स्टेशन मास्टर, ट्रेन के लोको पायलट और अन्य उन संबद्ध पक्षों को आगाह कर देती है जो इस खतरे से बचने के लिए एहतियाती कदम उठाते हैं।’’
उन्होंने यह भी बताया कि प्रायोगिक परियोजना को लगभग छह करोड़ रुपये की लागत से शुरू किया गया था। डे ने बताया कि प्रणाली की शुरुआत के बाद से अब तक इन 11 गलियारों में ट्रेन-हाथी की टक्कर होने की कोई घटना नहीं हुई है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, देश में हर साल ट्रेन की टक्कर से औसतन 20 हाथियों की मौत हो जाती है और इनमें से अधिकतर घटनाएं पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे में होती हैं। अधिकारियों ने कहा कि आईडीएस की सफलता से ऐसी घटनाओं को पूरी तरह रोकने की उम्मीद जगी है।
उन्होंने बताया कि रेलवे की ओर से दूरसंचार और सिग्नलिंग के उद्देश्यों से पटरियों के नीचे बिछाए गए ऑप्टिकल फाइबर केबल (ओएफसी) को ही आईडीएस के कार्यान्वयन के लिए इस्तेमाल में लिया गया है। ओएफसी में लगा यह उपकरण, हाथी के रेल पटरी पर आते ही कंपन का पता लगाता है और वास्तविक समय में मंडल नियंत्रण कक्ष तथा एक मोबाइल एप्लिकेशन को चेतावनी भेजता है। यह प्रणाली ओएफसी से पांच मीटर की दूरी तक घूम रहे हाथियों का पता लगाने में सक्षम है।
डे ने बताया कि पूर्वोत्तर क्षेत्र में हाथियों के ऐसे 11 गलियारे हैं और आईडीएस की 100 प्रतिशत सफलता को देखते हुए क्षेत्रीय रेलवे ने इसे अन्य गलियारों पर भी शुरू करने का फैसला किया है और रेल मंत्रालय ने इसके लिए 77 करोड़ रुपये मंजूर किए हैं। यह प्रणाली एनएफआर के तत्कालीन महाप्रबंधक अंशुल गुप्ता की ओर से भारत में लगाई गई थी। उन्हें इस तकनीक का 13 साल पहले पता चला जब वह लंदन की यात्रा पर थे।
मार्च 2023 में सेवानिवृत्त हो चुके गुप्ता ने कहा, ‘‘मैंने विभिन्न रेलवे मंडलों में इसे दो बार प्रयोग किया, एक बार 2011 और फिर 2016 में । लेकिन इसका सफल कार्यान्वयन दिसंबर 2022 में हुआ जब हमने इस परियोजना को हाथियों के 11 गलियारों में शुरू किया। ’’ डे ने बताया कि हाथियों की जान बचाने के लिए इस प्रणाली की मदद से पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे को हाल ही में ‘माइक्रो प्रोजेक्ट ऑफ द ईयर’ के लिए पीएमआई दक्षिण एशिया पुरस्कार मिला और यह पहली बार है कि रेल मंत्रालय के तहत किसी जोनल रेलवे ने 2009 में अपनी स्थापना के बाद से यह पुरस्कार जीता है।