नेपाल : मतपत्र में ‘नो वोट’ का विकल्प, 50 प्रतिशत नो वोट आने पर रद्द होगा चुनाव

नेपाल में निर्वाचन आयोग की तरफ से चुनाव कानून को लेकर बडे फेरबदल करने का प्रस्ताव रखा गया है। इन प्रस्तावों में सबसे महत्वपूर्ण मतपत्र में नो वोट का विकल्प दिया जाना है। किसी भी क्षेत्र में 50 प्रतिशत से अधिक ‘नो वोट’ आने पर चुनाव को रद्द करने तक का प्रावधान रखा गया है।

 

नेपाल के निर्वाचन आयोग के प्रमुख निर्वाचन आयुक्त दिनेश थपलिया ने राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को बुलाकर निर्वाचन से संबंधी कानूनों में फेरबदल के प्रस्ताव के बारे में बताया। सोमवार को काठमांडू में निर्वाचन आयोग के मुख्यालय में आयोजित इस कार्यक्रम में प्रमुख निर्वाचन आयुक्त ने कानून में प्रस्तावित फेरबदल को लेकर सभी राजनीतिक दलों से राय मांगी है।

 

कार्यक्रम में थपलिया ने कहा कि भारत सहित दुनिया के कई देशों में इस तरह की व्यवस्था है। लोकतंत्र में समय पर चुनाव होने और चुनावों में आम मतदाता को सभी विकल्प का अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए नेपाल में भी यह प्रस्ताव लाया गया है। उन्होंने कहा कि देश में नया संविधान जारी करते समय ही ‘नो वोट’ का विकल्प रखने को लेकर बार-बार बहस की गई थी, लेकिन राजनीतिक कारणों से यह संभव नहीं हो पाया। थपलिया ने कहा कि एक बार फिर से चुनाव से जुड़े नियमों को बदलने के लिए प्रस्ताव लाया गया है।

 

नो वोट के अलावा देश में सही समय पर चुनाव हो, किसी भी बहाने से चुनाव को टालने का प्रयास ना किया जाए और चुनाव की तारीख तय करने का अधिकार निर्वाचन आयोग को मिले, इसके लिए भी नए कानून का प्रस्ताव किया गया है। प्रमुख निर्वाचन आयुक्त ने राजनीतिक दल के प्रतिनिधियों को बताया कि नए प्रस्तावित कानून में स्थानीय निकाय, प्रदेश सभा और संघीय संसद के लिए चुनाव चार वर्ष 11 महीने के बाद आने वाले पहले रविवार को हर हाल में मतदान संपन्न कराने की बात उल्लेख है।

नेपाल में निर्वाचन की तारीख तय करने का अधिकार अब तक नेपाल सरकार के पास ही है। कैबिनेट की बैठक से चुनाव की तारीखों का ऐलान किया जाता है और निर्वाचन आयोग सिर्फ इसे संपन्न कराने का काम करता है। इस प्रावधान को लेकर राजनीतिक दलों में ही मतभेद है। सत्ता में रहने वाले दल अपनी सुविधा के मुताबिक तारीख तय करते हैं। नेपाल के संविधान में सरकार को एक और विशेषाधिकार दिया गया है कि आपातकाल सी अवस्था में चुनाव को नियत समय से छह महीने तक के लिए टाला जा सकता है। निर्वाचन आयोग की तरफ से प्रस्तावित नए कानून में सरकार के इस विशेषाधिकार का उपयोग आयोग को देने की बात कही गई है।

 

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