आज के दौर में इंटरनेट हर किसी की जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुका है। काम हो या पढ़ाई, एंटरटेनमेंट हो या बैंकिंग – हर चीज इंटरनेट पर टिकी है। इसी जरूरत को पूरा करने के लिए लोग अलग-अलग मोबाइल डेटा या ब्रॉडबैंड प्लान का इस्तेमाल करते हैं।
लेकिन अब इंटरनेट की दुनिया में एक नया नाम जुड़ गया है – सैटेलाइट इंटरनेट। आपने इसका नाम शायद सुना होगा, लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये क्या होता है और बाकी इंटरनेट सेवाओं से कैसे अलग है?
आइए, आसान भाषा में समझते हैं कि सैटेलाइट इंटरनेट क्या है, कैसे काम करता है और भारत में कब तक आ सकता है।
सैटेलाइट इंटरनेट क्या है?
जैसा कि नाम से ही साफ है, सैटेलाइट इंटरनेट स्पेस में मौजूद सैटेलाइट से सीधा इंटरनेट सिग्नल यूजर तक पहुंचाता है। इसमें न तो फाइबर केबल की जरूरत होती है और न ही मोबाइल टावर की।
सैटेलाइट इंटरनेट के लिए एक सैटेलाइट डिश और एक खास राउटर की जरूरत होती है, जो सिग्नल को पकड़कर आपके डिवाइस तक पहुंचाता है।
ब्रॉडबैंड और मोबाइल इंटरनेट से कैसे अलग है सैटेलाइट इंटरनेट?
सुविधा ब्रॉडबैंड मोबाइल इंटरनेट सैटेलाइट इंटरनेट
कनेक्टिविटी केबल के जरिए मोबाइल टावर के जरिए सैटेलाइट के जरिए
जरूरत फाइबर या तार नेटवर्क कवरेज केवल डिश और राउटर
कवरेज शहरों में बेहतर क्षेत्र अनुसार कहीं भी, हर जगह
स्पीड तेज़ सीमित स्थिर लेकिन महंगा
सैटेलाइट इंटरनेट कहां काम आता है?
जहां टावर नहीं हैं या नेटवर्क कमजोर है (जैसे दूरदराज के गांव या पहाड़ी क्षेत्र)
आपदा की स्थिति में जब बाकी नेटवर्क बंद हो जाते हैं
सेना, रिसर्च या ट्रेवलिंग में जहां इंटरनेट का कोई और विकल्प नहीं होता
भारत में सैटेलाइट इंटरनेट कब आएगा?
फिलहाल भारत में सैटेलाइट इंटरनेट शुरू नहीं हुआ है। लेकिन एलन मस्क की कंपनी Starlink, OneWeb और Amazon’s Project Kuiper जैसी कंपनियां जल्द ही इसे भारत में लॉन्च करने की तैयारी में हैं।
बांग्लादेश में Starlink ने यह सेवा शुरू कर दी है, जहां इसका मासिक खर्च करीब ₹4,200 है और एक बार की डिश किट की कीमत लगभग ₹33,000।
क्या भारत में यह सेवा किफायती होगी?
शुरुआती तौर पर शायद नहीं। क्योंकि:
सैटेलाइट डिश और राउटर की कीमत ₹40,000 से ₹1 लाख तक हो सकती है।
मासिक इंटरनेट प्लान का खर्चा ₹5,000 से ₹15,000 तक हो सकता है।
ये कीमतें आम ब्रॉडबैंड और मोबाइल डेटा से काफी ज्यादा हैं।
किनके लिए फायदेमंद है सैटेलाइट इंटरनेट?
ऐसे लोग जो ग्रामीण या दूरदराज इलाकों में रहते हैं
जहां कोई नेटवर्क या ब्रॉडबैंड सुविधा नहीं है
सेना, वैज्ञानिक रिसर्च, या जंगलों में काम करने वाले लोग
हालांकि इसका खर्च आम आदमी की जेब पर भारी पड़ सकता है, लेकिन जरूरतमंद इलाकों के लिए यह इंटरनेट की दुनिया में क्रांति ला सकता है।
यह भी पढ़ें:
क्या डायबिटीज में खा सकते हैं चीकू? जानिए शुगर मरीजों के लिए यह फल कितना सुरक्षित है