नेपाल में केपी शर्मा ओली की सरकार को लेकर एक बड़ा सियासी संकट पैदा हो गया है। उनके नेतृत्व वाली सीपीएन यूएमएल पार्टी में अब बड़ी बगावत की स्थिति बन गई है। शिक्षा मंत्री बिद्या देवी भट्टराई ने इस्तीफा दे दिया है, और उनका कहना है कि प्रधानमंत्री ओली उनकी मदद नहीं कर रहे थे। भट्टराई का आरोप है कि पीएम के तानाशाही रवैये और शिक्षकों के आंदोलन से निपटने में मदद नहीं मिलने की वजह से उन्होंने यह फैसला लिया है।
बिद्या भट्टराई का इस्तीफा क्यों है झटका?
नेपाली अखबार कांतिपुर के अनुसार, ओली के तानाशाही रवैये से परेशान होकर भट्टराई ने इस्तीफा दिया है। उनका कहना है कि शिक्षा से जुड़े महत्वपूर्ण मसलों पर उनकी राय को नजरअंदाज किया जा रहा था, और ऐसे में पद पर बने रहने का कोई नैतिक आधार नहीं था।
बिद्या देवी भट्टराई का इस्तीफा ओली के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है क्योंकि वह पार्टी में एक मजबूत नेता मानी जाती हैं। उनके पति पोखरा के कास्की से सांसद रहे हैं और खुद बिद्या भी वहीं से चुनी गई हैं।
नेपाल में सियासी समीकरण
नेपाल में सत्ता संघर्ष अब तेज हो गया है। केपी शर्मा ओली को 2024 में समझौते के तहत पीएम की कुर्सी मिली थी, लेकिन अब नेपाली कांग्रेस की कोशिश है कि प्रधानमंत्री की कुर्सी खुद के पास रखी जाए। इस प्रयास में ओली के कट्टर दुश्मन पुष्प कमल प्रचंड भी शामिल हैं, जिन्होंने यह कहा है कि अगर कांग्रेस सरकार बनाती है तो माओवादी केंद्र बिना शर्त समर्थन देगा।
नेपाली कांग्रेस ने 30 अप्रैल को एक हाईलेवल मीटिंग बुलाई है, जिसमें सरकार गठन को लेकर फैसला हो सकता है। इस दौरान, पार्टी के भीतर भी ओली के खिलाफ मोर्चेबंदी तेज हो गई है। पूर्व राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी भी ओली विरोधी गुट का नेतृत्व कर रही हैं।
नेपाल के संसद का गणित
नेपाल में सरकार बनाने के लिए प्रतिनिधि सभा के गणित को समझना जरूरी है। नेपाल के प्रतिनिधि सभा में कुल 275 सीटें हैं, जिसमें सरकार बनाने के लिए 138 सदस्य जरूरी हैं। नेपाली कांग्रेस के पास 88 सीटें हैं, जबकि सीपीएन यूएमएल के पास 79 सीटें हैं। इसके अलावा, प्रचंड की माओवादी केंद्र के पास 32 सीटें हैं और माधव नेपाल के पास 10 सीटें हैं।
इस सियासी उथल-पुथल के बीच, आरएसपी पार्टी के रवि लमिछाने की पार्टी के पास भी 21 सांसद हैं। उपेंद्र यादव की पार्टी भी नेपाली कांग्रेस के समर्थन में रहती है, और इसके पास 7 सीटें हैं। इस तरह, नेपाल की सियासत में अब कई गठबंधन और समीकरण बन सकते हैं।
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