राज्यसभा में नीट को समाप्त करने संबंधी गैर सरकारी संकल्प का सत्ता पक्ष ने किया विरोध

राज्यसभा में शुक्रवार को राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (नीट) और राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी (एनटीए) को समाप्त करने के प्रावधान वाले एक गैर सरकारी संकल्प पर, सरकार एवं सत्ता पक्ष के सदस्यों ने सदन में चर्चा कराये जाने का यह कहते हुए विरोध किया कि जब इस मामले में उच्चतम न्यायालय का निर्णय आ चुका है तो इस पर चर्चा करना उचित नहीं होगा।

शुक्रवार होने के कारण उच्च सदन में दोपहर दो बजे जब गैर सरकारी कामकाज शुरू हुआ तो द्रमुक के एम मोहम्मद अब्दुल्ला ने आसन की अनुमति से शिक्षा को समवर्ती सूची से हटाकर राज्य सूची में डालने के प्रावधान वाले गैर सरकारी संकल्प को चर्चा के लिए पेश किया। इसी संकल्प में नीट-यूजी और एनटीए को समाप्त करने का प्रावधान है।

जब द्रमुक सदस्य इस गैर सरकारी संकल्प को चर्चा के लिए रख रहे थे तब शिक्षा राज्य मंत्री जयंत चौधरी ने इसका विरोध करते हुए कहा कि नीट परीक्षा के बारे में उच्चतम न्यायालय का निर्णय भी आ चुका है।

चौधरी ने कहा कि सरकार ने भी इस मामले पर गौर किया और कई विशेषज्ञों वाली एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन किया है। उन्होंने कहा कि यह समिति पूरी परीक्षा प्रणाली तथा राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी (एनटीए) के कामकाज पर अध्ययन कर अपनी सिफारिशें देगी। उन्होंने कहा कि इस परिस्थिति में यदि सदन एनटीए और नीट परीक्षा को समाप्त करने के बारे में चर्चा करता है तो यह उच्चतम न्यायालय के निर्णय की भावना के विरूद्ध होगा। उन्होंने द्रमुक सदस्य से उनका प्रस्ताव वापस लेने का अनुरोध किया।

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के जॉन ब्रिटास ने कहा कि नीट परीक्षा उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर नहीं शुरू हुई थी बल्कि केंद्र सरकार के प्रस्ताव पर सर्वोच्च न्यायालय ने सहमति व्यक्त की थी। उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय के निर्णय का बहाना बनाकर सरकार को, सदस्यों के निजी विधेयक सदन में लाने के अधिकार को सीमित करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

भाजपा के घनश्याम तिवाड़ी ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर भारत सरकार ने नीट परीक्षा शुरू करवायी थी। उन्होंने कहा कि अब जबकि सरकार ने एक समिति बना दी है तो इस पर सदन में चर्चा करना उचित नहीं है। उन्होंने इस संकल्प को चर्चा के लिए पेश करने के मुद्दे का फैसला सदन में मत विभाजन के जरिये कराने की मांग की

संसदीय कार्य मंत्री किरेन रीजीजू ने शिक्षा राज्य मंत्री चौधरी और भाजपा सदस्य तिवाड़ी की बातों का समर्थन करते हुए कहा कि इसको लेकर सदन में मत विभाजन कराना उपयुक्त होगा। उन्होंने कहा ‘‘हम विधायिका और न्यायपालिका एक दूसरे को चुनौती नहीं देते, बल्कि परस्पर एक दूसरे का सम्मान करते हैं।’’

कांग्रेस के शक्ति सिंह गोहिल ने कहा कि यह मामला अदालत में विचाराधीन नहीं है क्योंकि उच्चतम न्यायालय का निर्णय आ गया है। उन्होंने कहा कि जब सदन के सभापति ने इसे पेश करने को अपनी अनुमति दे दी है तो किसी सदस्य को उसके अधिकारों के प्रयोग से कैसे रोका जा सकता है?

माकपा के वी के शिवदासान ने कहा कि सदन को नीट परीक्षा के बारे में चर्चा करने का अधिकार है तथा सरकार को किसी सदस्य को उसके अधिकार से वंचित नहीं करना चाहिए।

आम आदमी पार्टी के राघव चड्ढा ने कहा कि जब सभापति ने इस संकल्प को चर्चा के लिए अनुमति दी है तो इस पर सदन में चर्चा अवश्य करायी जानी चाहिए।

द्रमुक के तिरूचि शिवा ने कहा कि सदन की यह परंपरा रही है कि जब किसी गैर सरकारी विधेयक या संकल्प पर चर्चा होती है तो मंत्री उसके जवाब में उसे वापस लेने का अनुरोध सदस्य से करते हैं, चर्चा शुरू होने से पहले से नहीं। उन्होंने कहा कि इस संकल्प पर चर्चा नहीं होने देने का मतलब है सदस्य के विशेषाधिकार का हनन।

इसके बाद उप सभापति हरिवंश ने द्रमुक सदस्य अब्दुल्ला से उनके संकल्प को चर्चा के लिए रखते हुए उसके बारे में संक्षेप में बताने को कहा।

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