बांग्लादेश में संकट गहराया: यूनुस की चालाकी बनी गले की फांस, सेना ने संभाली कमान

बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस की विदेश नीति और सत्ता पर पकड़ बनाए रखने की कोशिशें अब उनके खिलाफ जाती दिख रही हैं। चीन और पाकिस्तान से रिश्ते मजबूत करने के साथ-साथ अमेरिका से गुप्त समर्थन के आरोपों ने उन्हें संदेह के घेरे में ला खड़ा किया है। अब बांग्लादेश की सेना ने हालात को देखते हुए ऐसा कदम उठाया है जिससे यूनुस की स्थिति डगमगा सकती है।

विदेशी समीकरणों से उपजा शक
यूनुस ने सत्ता में आते ही चीन और पाकिस्तान से संबंध गहरे किए, जिससे भारत समेत कई पड़ोसी देशों की चिंता बढ़ गई। वहीं, विश्लेषकों का मानना है कि उनके पीछे अमेरिका का भी समर्थन है। इन कूटनीतिक चालों से यह संदेश गया कि यूनुस बांग्लादेश पर स्थायी नियंत्रण चाहते हैं।

चुनाव की तारीख अभी तक तय नहीं
यूनुस की सबसे बड़ी आलोचना यह रही है कि उन्होंने लंबे समय तक चुनाव की घोषणा नहीं की। और जब की, तब भी अब तक निर्वाचन की स्पष्ट तिथि सामने नहीं आई। इससे जनता में असंतोष और अविश्वास दोनों बढ़ते जा रहे हैं।

सेना की चेतावनी – और हस्तक्षेप का संकेत
बांग्लादेश की सेना के जनसंपर्क विभाग ISPR ने हाल ही में एक सख्त बयान जारी किया:

“कोई भी ऐसा कदम जो जनहित के खिलाफ हो या सेना की छवि को नुकसान पहुंचाए, स्वीकार नहीं किया जाएगा।”

यह साफ इशारा है कि सेना अब मूकदर्शक नहीं रहेगी। देश में बिगड़ती कानून व्यवस्था को देखते हुए सेना ने स्थिति पर नियंत्रण लेने का निर्णय किया है – जो यूनुस के लिए खतरे की घंटी है।

सेना प्रमुख की बढ़ती ताकत
जनरल वकर-उज-जमान ने हाल ही में अमेरिका की यात्रा कर वहां के सुरक्षा अधिकारियों से मुलाकात की। इससे स्पष्ट है कि बांग्लादेश की सेना भी अपनी अंतरराष्ट्रीय स्थिति मजबूत करने की दिशा में काम कर रही है।

क्या फिर होगा तख्तापलट?
देश की राजनीतिक अस्थिरता, जनता की नाराज़गी, और सेना की सक्रियता इन सबने मिलकर बांग्लादेश को एक बार फिर तख्तापलट की कगार पर खड़ा कर दिया है।
शेख हसीना के सत्ता से बाहर होने के बाद यूनुस ने कमान संभाली, लेकिन अब वे भी सत्ता को स्थायी रूप से थामे रखने के प्रयास में जनता और सेना दोनों का समर्थन खोते नजर आ रहे हैं।

निष्कर्ष
बांग्लादेश इस समय तीन दिशाओं में खिंचता हुआ देश बन गया है — यूनुस की महत्वाकांक्षी विदेश नीति, जनता की हताशा और सेना की बढ़ती सक्रियता। आने वाले हफ्तों में यह स्पष्ट हो जाएगा कि देश में लोकतंत्र बचेगा, या फिर इतिहास खुद को दोहराएगा।

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