16 वर्ष से कम उम्र की रेप पीड़िता के आरोपी को नहीं मिलेगी अग्रिम जमानत

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अपने एक अहम आदेश में कहा है कि दुराचार के उन मामलों में जहां पीड़िता की उम्र 16 वर्ष से कम है, अभियुक्त की अग्रिम जमानत याचिका पोषणीय नहीं है। न्यायालय ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 438 में वर्ष 2018 में जोड़ी गई नई उपधारा को उद्धत करते हुए यह आदेश दिया है।

यह आदेश न्यायमूर्ति करुणेश सिंह पवार की एकल पीठ ने छोटी नाम की अभियुक्त की अग्रिम जमानत याचिका पर पारित किया। गोण्डा जनपद के नवाबगंज थाने के उक्त मामले में अभियुक्ता पर 16 वर्ष से कम की पीड़िता के साथ हुए दुराचार की साजिश में शामिल होने का आरोप है। अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान राज्य सरकार के अधिवक्ता ने दलील दी कि अग्रिम जमानत की धारा 438 में वर्ष 2018 में उप धारा 4 जोड़ते हुए, आईपीसी की धारा 376(3), 376 एबी, 376 डीए और 376 डीबी में अग्रिम जमानत के दायरे से बाहर कर दिया गया है लिहाजा उक्त अपराध के मामलों में अग्रिम जमानत याचिका पोषणीय नहीं है। न्यायालय ने इस दलील को स्वीकार करते हुए, माना कि उक्त आपराधिक मामलों में अग्रिम जमानत पर विचार नहीं किया जा सकता। उक्त सभी धाराएं 16 वर्ष व 12 वर्ष से कम की बच्चियों के साथ दुराचार व सामूहिक दुराचार के अपराध से सम्बन्धित हैं।

इलाहाबाद हाईकोर्ट दे चुकी है इसके उलट निर्णय
हालांकि, इस आदेश के उलट 13 मई 2024 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव की एकल पीठ ने इसी प्रश्न पर पारित अपने निर्णय में कहा है कि उप धारा 4 में वर्णित आईपीसी की धाराओं में अग्रिम जमानत न दिये जाने का प्रावधान उत्तर प्रदेश में नहीं है। उक्त निर्णय में कहा गया है कि अग्रिम जमानत की धारा 438 को उत्तर प्रदेश में वर्ष 2019 में लागू किया गया जिसमें यूएपीए, एनडीपीएस, ऑफिसियल सिक्रेट एक्ट, गैंगस्टर व मृत्यु की सजा से दंडित अपराधों को अग्रिम जमानत के दायरे से बाहर रखा गया, न कि उप धारा 4 में वर्णित आईपीसी की धाराओं को। उक्त निर्णय के अनुसार संविधान के अनुच्छेद 254 के प्रावधानों के तहत राज्य संशोधन सेंट्रल एक्ट पर प्रभावी होगा।