इतिहास से खिलवाड़: ‘केसरी वीर’ ने दर्शकों की उम्मीदें तोड़ी

बड़े पर्दे पर इतिहास को जीवंत करना आसान काम नहीं होता। ‘छावा’ की सफलता के बाद अब हमीरजी गोहिल की जीवनी पर आधारित फिल्म ‘केसरी वीर’ रिलीज हो चुकी है। गुजरात में जननायक के रूप में पूजे जाने वाले हमीरजी गोहिल की कहानी देश के बाकी हिस्सों में ज्यादा जानी-पहचानी नहीं है। मात्र 16 साल की उम्र में मातृभूमि और धर्म की रक्षा के लिए अपनी जान न्योछावर करने वाले इस योद्धा की कहानी से उम्मीद थी कि फिल्म कुछ खास होगी, लेकिन निर्देशक प्रिंस धीमान और लीड कलाकार सूरज पंचोली व आकांक्षा शर्मा की वजह से ये उम्मीदें पूरी नहीं हो पाईं।

कहानी की झलक
फिल्म उस दौर की है जब तुगलक साम्राज्य के सूबेदार जफर खान गुजरात में मंदिरों को ध्वस्त कर रहा था और लोगों पर जबरन धर्म परिवर्तन का दबाव बना रहा था। हमीरजी गोहिल (सूरज पंचोली), जो अर्थिला गांव के युवा राजा थे, इन अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाते हैं। वे गुजरात के राजाओं को एकजुट कर विशाल तुगलक सेना के खिलाफ लड़ाई करते हैं। साथ में वेगड़ा भिल (सुनील शेट्टी) भी उनका समर्थन करता है। कैसे वे सोमनाथ मंदिर और हिंदू आस्था की रक्षा करते हैं, यह फिल्म की कहानी है।

फिल्म कैसी है?
हमीरजी की वीरता प्रेरणादायक है, लेकिन फिल्म देखने पर ऐसा लगता है कि निर्देशक ने इसे बड़ी फिल्मों जैसे ‘बाहुबली’ और ‘पद्मावत’ की नकल में बदल दिया है। कई दृश्य सीधे तौर पर इन फिल्मों से लिए गए लगते हैं, जो फिल्म की ओरिजिनालिटी को पूरी तरह खत्म कर देते हैं। बीच-बीच में अचानक बजने वाले गीत भी फिल्म की गंभीरता को कमजोर कर देते हैं।

सीरियल जैसा निर्देशन
फिल्म का निर्देशन प्रिंस धीमान ने किया है, जो मुख्यतः टीवी सीरियलों के लिए जाने जाते हैं। उनकी यह पहली बड़ी फिल्म कई जगह टीवी सीरियल जैसी लगती है। निर्देशक अपनी जिम्मेदारी निभाने में नाकाम रहे क्योंकि उन्होंने एक्टर्स से उचित अभिनय नहीं निकलवाया और कहानी को दमदार तरीके से पेश नहीं किया।

कमजोर अभिनय
सूरज पंचोली और आकांक्षा शर्मा की एक्टिंग बेहद फीकी है। उनके चेहरे पर भावों की कमी साफ नजर आती है। जबकि विवेक ओबेरॉय और सुनील शेट्टी ने अपनी भूमिकाएं ठीक से निभाईं, लेकिन फिल्म की कमजोरी को वे भी नहीं सुधार पाए।

देखें या न देखें?
13 साल पहले हमीरजी गोहिल पर एक गुजराती फिल्म बनी थी, जो बिना बड़े बजट और स्पेशल इफेक्ट्स के भी ज्यादा सच्ची और दमदार थी। वहीं ‘केसरी वीर’ में कई ऐतिहासिक तथ्य गलत दिखाए गए हैं, जैसे सोमनाथ मंदिर के पास की लड़ाई को जंगल में दिखाना। क्लाइमेक्स में मंदिर को मात्र एक झलक दिखाना भी निराशाजनक रहा।

निष्कर्ष
‘केसरी वीर’ एक महान योद्धा की कहानी को बड़े पर्दे पर पेश करने का सुनहरा मौका था, जो कमजोर निर्देशन, फीके अभिनय और इतिहास के साथ छेड़छाड़ के कारण खो गया। ऐतिहासिक फिल्में सच्चाई और सम्मान के साथ बनानी चाहिए, न कि केवल दर्शकों का ध्यान खींचने के लिए नकल और ड्रामे से। उम्मीद है कि भविष्य में फिल्म निर्माता इतिहास के प्रति ईमानदारी दिखाएंगे और हमें हमारे वीरों की सच्ची गाथाएं दिखाएंगे।

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