भारत-पाक तनाव के दौर में ताजिकिस्तान का छुपा किरदार, शहबाज के ‘शुक्रिया अभियान’ से खुल रही परतें

भारत-पाकिस्तान के बीच जब रिश्तों में जबरदस्त तनाव था और भारत ने पाकिस्तान में मौजूद आतंकी ठिकानों को एक-एक कर निशाना बनाना शुरू कर दिया था, तब कुछ देश पाकिस्तान के साथ खड़े हो गए थे। चीन, ईरान, तुर्किए और अज़रबैजान का नाम तो सब जानते हैं, लेकिन इस गुट में एक और देश शामिल था, जिसकी तरफ किसी ने ध्यान नहीं दिया — ताजिकिस्तान।

ताजिकिस्तान ने चुपचाप पाक की मदद की और अब धीरे-धीरे इसकी सच्चाई सामने आ रही है। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ इन दिनों उन सभी मुस्लिम देशों की यात्राओं पर हैं जिन्होंने भारत के खिलाफ पाक का साथ दिया था। वे पहले ईरान और तुर्किए जा चुके हैं, इस रिपोर्ट के लिखे जाने तक अज़रबैजान में मौजूद थे और अब ताजिकिस्तान के लिए रवाना हो चुके हैं।

कब और कैसे बढ़ी ताजिकिस्तान से नजदीकियां?
जब अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता मजबूत हुई, तब पाकिस्तान को अपनी पश्चिमी सीमा को लेकर चिंता सताने लगी। ऐसे में पाकिस्तान ने ताजिकिस्तान से संपर्क बढ़ाया, जो खुद तालिबान के विरोध में रहा है। आईएसआई और ताजिक सुरक्षा एजेंसियों के बीच बैठकें भी हुईं।

इसी दौरान, पाकिस्तान में पहलगाम हमले की साजिश रची जा रही थी और ताजिकिस्तान के साथ संपर्क और गहरे हो रहे थे। भारत ने जैसे ही हमले का जवाब देना शुरू किया, ताजिकिस्तान की भूमिका भी इस पूरे नेटवर्क में देखने को मिली।

इन देशों ने पाकिस्तान का दिया साथ
भारत ने पाकिस्तान के कई आतंकी अड्डों पर कड़ी कार्रवाई की और सिंधु जल संधि पर भी कठोर रुख अपनाया। जवाब में पाकिस्तान ने तुर्किए के ड्रोन से भारत पर हमला करने की कोशिश की, लेकिन भारतीय एयर डिफेंस सिस्टम ने सभी ड्रोन हवा में ही ढेर कर दिए। पाकिस्तान को कूटनीतिक और रणनीतिक समर्थन देने वालों में ईरान, अज़रबैजान और ताजिकिस्तान भी शामिल था।

शहबाज अब इन देशों को यात्रा कर “धन्यवाद” कह रहे हैं। लेकिन ये कूटनीतिक आभार असल में भारत विरोधी नेटवर्क को मजबूत करने की एक चाल नजर आ रही है।

दिखावटी जीत, लेकिन असल में गिड़गिड़ा रहा था पाकिस्तान
शहबाज शरीफ को लगता है कि वे भारत के खिलाफ कोई बड़ी जीत हासिल कर चुके हैं। लेकिन हकीकत ये है कि पाकिस्तान को भारत की जवाबी कार्रवाई के बाद सीजफायर के लिए गिड़गिड़ाना पड़ा। भारत और पाकिस्तान के डीजीएमओ स्तर की बातचीत के बाद ही संघर्षविराम लागू हुआ।

ईरान की हालिया यात्रा में भी शहबाज ने भारत से बातचीत की गुहार लगाई। लेकिन अब उनके इस ‘धन्यवाद यात्रा’ का असली मकसद सामने आ रहा है — भारत के खिलाफ बने गुट को स्थायी बनाना।

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