एलोपैथी में शायद ही कोई ऐसी दवाई होगी, जिसके साइड इफैक्ट न हों। ये साइड इफैक्ट दवाई के ऊपर लिखे भी रहते हैं। फिर भी डॉक्टर उन्हें लेने की सलाह देते हैं, बीमारी के समाधान के लिए हम उन्हें लेते भी हैं। उदाहरण के लिए डायबिटीज आज एक कॉमन बीमारी है। डॉक्टर इसके इलाज के लिए मेटफॉर्मिन लेने की सलाह देते हैं। इस मेटफॉर्मिन के गंभीर दुष्प्रभाव हो सकते हैं। जिनमें लैक्टिक एसिडोसिस शामिल है। इस जोखिम के बारे में मेटफॉर्मिन में एक बॉक्स्ड चेतावनी है – जिसे ब्लैक बॉक्स चेतावनी भी कहा जाता है। बॉक्स में बंद चेतावनी FDA द्वारा जारी की जाने वाली सबसे गंभीर चेतावनी है। लेकिन यह दुष्प्रभाव दुर्लभ है, इसलिए यह दवाई ली जाती है।
इसी प्रकार अनेक दर्द निवारक व रक्त पतला करने वाली दवाएं हैं, जिनके संभावित दुष्प्रभाव काफी गम्भीर हैं। इन दुष्प्रभावों में हल्की खुजली और दाने से लेकर जीवन-घातक एनाफिलेक्टिक प्रतिक्रिया तक शामिल हैं। फिर भी ये ली जाती हैं।
ऐसे में कोविशील्ड पर प्रश्नचिन्ह किसी षड्यंत्र का ही हिस्सा लगता है। कोविशील्ड वैक्सीन बनाने वाली कंपनी एस्ट्राजेनेका ने UK के कोर्ट में दिए गए बयान में माना है कि इस वैक्सीन से शरीर के किसी हिस्से में खून जमाने वाला ‘रेयर साइड इफेक्ट’ हो सकता है। रेयर कितना? एक लाख में कोई एक।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2020 में 28,579 लोगों की हृदयाघात से मौत हुई। 2021 में यह संख्या 28,413 थी, लेकिन 2022 में यह आंकड़ा बढ़कर 32,457 हो गया। यानि वर्ष 2021 की तुलना में 4044 अधिक लोग हृदयाघात के शिकार हुए। अब कोरोना महामारी का दौर याद करिए, जब दूसरी लहर में महामारी अपने चरम पर थी, प्रतिदिन हजारों लोग मर रहे थे। जीवन बचाने के लिए 1 अरब 70 करोड़ डोज भारत में लगाई गईं। कोरोना महामारी पहली बार फैली थी, कोविशील्ड भी नई नई थी। सरकार की इसके दुष्प्रभावों पर पूरी नजर थी। इसीलिए टीकाकरण के बाद टीका लगवाने वालों को आधे घंटे बिठाया जाता था और जाने के बाद फॉलो अप भी किया जाता था, यदि किसी को कोई परेशानी हुई तो एप पर इसकी जानकारी डाली गई। एप के अनुसार साइड इफैक्ट्स (हृदयाघात, थक्का जमना आदि) के 0.007 प्रतिशत मामले सामने आए, जो कि महामारी से मरने वालों की तुलना में नगण्य हैं।
लेकिन फिर भी जब हृदयाघात के मामले बढ़े, तब भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) ने देशभर में एक सर्वे किया। जिसकी रिपोर्ट आइसीएमआर के जर्नल में प्रकाशित हुई। सर्वे में यह बात सामने आई कि कोरोना से ठीक होने वाले लोगों को एक वर्ष तक हैवी वर्कआउट अचानक से नहीं करना चाहिए (ट्रेडमिल पर दौड़ना, देर तक नाचना, भारी वजन उठाना आदि)। ऐसे लोगों को हृदयाघात का खतरा अधिक है। साथ ही यह बात भी सामने आई कि कोरोना वैक्सीन से इसका कोई लेना देना नहीं है। इस सर्वे में एसएनएमएमसीएच धनबाद के चार चिकित्सक डा. ऋषभ कुमार राणा, डा.यूके ओझा, डा. रवि रंजन झा, डा. रवि भूषण शामिल थे। सर्वे के लिए देश भर से 18 से 45 वर्ष के लोगों के तीन हजार से अधिक सैंपल लिए गए। शोध में एसएनएमएमसीएच के प्राचार्य डा. ज्योति रंजन की अहम भूमिका रही।
सर्वे में शामिल डा. ऋषभ राणा ने कहा कि भारत में कोरोना टीकाकरण ने लोगों की जान बचाई है। टीकाकरण के बाद भी कोविड की लहर आई, लेकिन टीकाकरण ने इसे गंभीर नहीं होने दिया।
ऐसे में अब यदि प्रोपेगेंडा की बात करें तो हमें नहीं भूलना चाहिए कि भारत में चुनाव चल रहे हैं। और ये चुनाव राजनीतिक पार्टियों के बीच नहीं बल्कि उनके पीछे खड़ी शक्तियों के बीच लड़े जा रहे हैं। विदेशी, मजहबी और वामपंथी शक्तियां एक जुट हैं। वे अपने तरकश का कोई भी तीर बाकी नहीं रखना चाहतीं। अडानी, अम्बानी पर सरकार को घेरने के बाद बाबा रामदेव, एवरेस्ट व एमडीएच मसाले और अब कोविशील्ड के बहाने भारतीय कम्पनियां इनके निशाने पर हैं। लोगों के स्वास्थ्य के बहाने सरकार को घेरने के प्रयास हो रहे हैं। उल्लेखनीय है एस्ट्राज़ेनेका से लाइसेंस के बाद कोविशील्ड को भारत में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) द्वारा बनाया गया है।
आप नेता सौरभ भारद्वाज पूछ रहे हैं, “अब जब वैक्सीन बनाने वाली कंपनी ने स्वयं मान लिया है कि इससे कुछ मामलों में दिल का दौरा पड़ सकता है, तो अब केंद्र सरकार की क्या योजना है?”
सौरभ भारद्वाज के इस प्रश्न का उत्तर देते हुए सोशल मीडिया साइट x पर ताऊ रामफल लिखते हैं, “Congress के पास एकमात्र रास्ता बचा है लोगों को डराना और भ्रम फैलाना, कभी आरक्षण पर, कभी #Covishield पर।कोविशील्ड #AstraZenica वाली वैक्सीन सबसे ज़्यादा 180 देशों में लगी है, अकेले भारत में नहीं। #Unicef इसे सेफ़ बता चुका है। साइड इफ़ेक्ट तो बुखार की दवाई के भी पढ़ोगे उसके भी हैं।”
वहीं शलभ गर्ग लिखते हैं, “अगर कोरोना काल में भाजपा सरकार और मोदीजी पीएम नहीं होते तो भारत में सबसे ज्यादा मौतें होतीं। धन्यवाद नरेंद्र मोदीजी, जिन्होंने इतनी बड़ी त्रासदी को संभाला।”भारत सरकार से हमारी मांग है कि इस तरह के भ्रामक समाचार फैलाने वालों पर सख्ती से कार्यवाही हो। दंड वसूला जाए, ताकि वे दोबारा ऐसी हरकत करने से डरें।
डॉ. शुचि चौहान