एनसीएससी-एनसीबीसी में खाली पदों पर राहुल गांधी का सवाल – ‘कब होगी नियुक्ति

लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री वीरेंद्र कुमार को पत्र लिखकर राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (एनसीएससी) और राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) में रिक्तियों को जल्द भरने की मांग की। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार दलितों और पिछड़ों के हितों की अनदेखी कर रही है और संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर करने का प्रयास कर रही है।

जातिगत जनगणना की मांग तेज, लेकिन सरकार चुप?
राहुल गांधी ने कहा कि देशभर में जातिगत जनगणना की मांग तेज हो रही है, लेकिन सरकार इस मुद्दे पर चुप है और जानबूझकर सामाजिक न्याय से जुड़े संस्थानों को कमजोर कर रही है। उन्होंने लिखा, “पूरे देश में हजारों दलित और पिछड़े अपने हक के लिए संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन सरकार संवैधानिक संस्थाओं के अहम पदों को खाली रख रही है, जिससे उनकी दलित-पिछड़ा विरोधी मानसिकता साफ झलकती है।”

‘संवैधानिक संस्थाएं होंगी निष्क्रिय, अगर पद खाली रहे’
राहुल गांधी ने पत्र में लिखा कि एनसीएससी और एनसीबीसी के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति का संवैधानिक प्रावधान है। 7वें एनसीएससी के अध्यक्ष और दो सदस्यों की नियुक्ति 3 मार्च 2024 को हुई थी, लेकिन उपाध्यक्ष का पद पिछले एक साल से खाली है। उन्होंने सवाल किया कि जब आयोग का पूरा ढांचा ही अधूरा होगा, तो वह दलित-पिछड़ों की समस्याओं का समाधान कैसे करेगा?

दलितों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए आयोग की जरूरत
राहुल गांधी ने पत्र में कहा कि एनसीएससी का मुख्य कार्य दलितों के अधिकारों की रक्षा करना और उनके खिलाफ अत्याचारों को रोकना है। लेकिन अगर संस्थान के पद खाली रहेंगे, तो दलितों को न्याय कैसे मिलेगा?

‘एनसीबीसी को भी कमजोर किया जा रहा है’
उन्होंने आरोप लगाया कि एनसीबीसी में उपाध्यक्ष का पद पिछले तीन साल से खाली पड़ा है और यह आयोग केवल एक अध्यक्ष और एक सदस्य के साथ काम कर रहा है। “1993 में एनसीबीसी की स्थापना के बाद से इसमें कम से कम तीन सदस्य रहे हैं, लेकिन अब इसे कमजोर करने की कोशिश हो रही है।”

‘सरकार की मंशा दलितों और पिछड़ों के खिलाफ?’
राहुल गांधी ने कहा कि सामाजिक न्याय की अनदेखी करना और जातिगत जनगणना से कतराना सरकार की मंशा पर सवाल खड़े करता है। उन्होंने केंद्र सरकार से मांग की कि एनसीएससी और एनसीबीसी के रिक्त पदों को तुरंत भरा जाए, ताकि यह संस्थाएं अपने संवैधानिक दायित्वों को निभा सकें।

उन्होंने कहा, “देश के लिए समावेशी दृष्टिकोण के केंद्र में सामाजिक न्याय होना चाहिए। लेकिन मौजूदा सरकार जानबूझकर संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर कर रही है। यह दलित-पिछड़ा विरोधी मानसिकता का प्रमाण है।”

राहुल गांधी का यह पत्र राजनीतिक गलियारों में बड़ी बहस छेड़ सकता है, खासकर तब जब जातिगत जनगणना का मुद्दा पहले से चर्चा में है। अब देखना होगा कि सरकार इस पर क्या प्रतिक्रिया देती है।

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