बीते सप्ताह मूंगफली में सुधार, अन्य तेल-तिलहन में गिरावट

आम बजट से पहले देश में सूरजमुखी तेल सहित बाकी खाद्य तेलों का जरूरत से कहीं अधिक आयात होने की वजह से बीते सप्ताह देश के तेल-तिलहन बाजारों में अधिकांश तेल-तिलहनों के दाम में गिरावट रही। वहीं आपूर्ति की कमी के बीच उच्च आयवर्ग के उपभोक्ताओं की मांग निकलने की वजह से मूंगफली तेल-तिलहन के दाम मजबूती दर्शाते बंद हुए।

बाजार सूत्रों ने कहा कि देश के केंद्रीय बजट में खाद्य तेलों पर आयात शुल्क बढ़ाये जाने की उम्मीद में आयातकों ने सभी खाद्य तेलों का जरूरत से अधिक आयात किया जिसकी वजह से बाकी खाद्य तेल-तिलहनों पर पहले से ही दबाव बना हुआ है। इसके अलावा सप्ताह के दौरान सहकारी संस्था नाफेड द्वारा सरसों की बिक्री मौजूदा एमएसपी (5,640 रुपये प्रति क्विंटल) से कम दाम (लगभग 5,500 रुपये क्विंटल) पर करने की सूचना है। हालांकि, इससे पिछले वर्ष का एमएसपी 5,450 रुपये क्विंटल था। लेकिन ऐसी सूचना है कि गुजरात में सरसों 5,155 रुपये क्विंटल, असम में 5,203 रुपये क्विंटल और मध्य प्रदेश में 5,519-5,531 रुपये क्विंटल के भाव बेचा गया है। एमएसपी से कम दाम पर बिक्री करने से सरसों किसानों का मनोबल कमजोर होगा। इस बिक्री की खबर के बाद बाकी सभी तेल-तिलहन और दबाव में आ गये।

मूंगफली की आवक बाजार में काफी कम है और उच्च आयवर्ग के उपभोक्तओं की मांग निकलने से मूंगफली तेल-तिलहन के दाम में सुधार आया।

सूत्रों ने कहा कि सस्ते थोक दाम वाले सूरजमुखी तेल के अधिक आयात से सभी तेल-तिलहन कीमतों पर दबाव है। आम उपभोक्ताओं को देखें तो शायद उन्हें पता नहीं चलता कि सूरजमुखी तेल के थोक दाम 2022-23 के मई महीने के 200 रुपये लीटर (खुदरा दाम 225 रुपये लीटर) के मुकाबले मौजूदा वक्त में आधे से भी अधिक घटकर 80.50 रुपये लीटर (खुदरा दाम 140-170 रुपये लीटर) रह गए हैं जो 100-105 रुपये लीटर मिलना चाहिये। संभवत: उन्हें ऊंचे दाम में खाद्य तेल खाने की आदत लगी हुई है। उन्हें इस बात का अहसास नहीं है कि मौजूदा थोक दाम के हिसाब से उन्हें खुदरा बाजार में काफी सस्ते में यह तेल मिलना चाहिये। आमतौर पर ऐसे उपभोक्ताओं को लगता है कि पहले खुदरा बाजार में जो तेल उन्हें 225 रुपये लीटर के भाव मिल रहा था वह अब 140-170 रुपये के बीच के भाव पर मिल रहा है। लेकिन संबंधित विभाग को इस विसंगति पर ध्यान देना होगा।

उन्होंने कहा कि हमारे अधिकांश देशी तेल के भाव 125-130 रुपये लीटर के बीच बैठते हैं। सस्ते आयातित सूरजमुखी तेल के 80-81 रुपये लीटर के थोक भाव के आगे कोई देशी तेल-तिलहन नहीं खपेगा। सरकार को देशी तेल- तिलहन बाजार को विकसित करने के लिए इस विसंगति की ओर गंभीरता से ध्यान देना होगा। बिनौला की लगभग 90-95 प्रतिशत पेराई मिलें बंद हो चुकी हैं और इसकी कमी के बावजूद सस्ते सूरजमुखी के आगे बिनौला तेल के दाम टूट रहे हैं। यह चिंता का विषय है।

सूत्रों ने कहा कि सरकार को खुद तिलहन खरीद में भाग न लेकर देशी तेल-तिलहनों का बाजार विकसित करने पर ध्यान देना चाहिये कि तिलहन किसान सीधे तेल मिलों को अपनी उपज न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर बेच सकें। सरकार का काम सिर्फ यह सुनिश्चित करना हो कि किसानों को एमएसपी का भुगतान हो। देश में तेल-तिलहन की मांग को पूरा करने के लिए काफी मात्रा में खाद्य तेलों का आयात करना पड़ता है, इस स्थिति की वजह से यह उम्मीद की जाती है कि तिलहनों के खपने की बाजार स्थितियां हैं और इसके लिए सरकार को जरूरी बाहरी समर्थन देने की जरुरत है।

सूत्रों ने कहा कि कुछ निहित स्वार्थ के लोग अक्सर खाद्य तेलों की महंगाई का रोना रोते नजर आते हैं लेकिन ये लोग भूलकर भी दूध की महंगाई के बारे में कुछ नहीं बोलते जिसकी महंगाई का तेल-तिलहन उद्योग से गहरा रिश्ता है। खाद्य तेलों के दाम सस्ते होंगे तो इस नुकसान को खल के दाम से पूरा किये जाने की वजह से तेल खल के दाम महंगे होंगे। यही कारण है कि हाल के दिनों में दूध के दाम कई बार बढ़ाये जा चुके हैं।

सूत्रों ने कहा कि सरकार तिलहनों का एमएसपी हर साल बढ़ाती है पर ऐसे में खाद्य तेलों का दाम बांधकर रखना उचित नहीं है। खाद्य तेलों का दाम भी उसी अनुपात में बढ़ाया जाना चाहिये। सूत्रों ने कहा कि कुछ लोग खाद्य तेलों में मिश्रण की छूट होने का फायदा उठाकर सस्ते आयातित तेल का मिश्रण कर उसे देशी तेल के महंगे दाम पर बेच रहे हैं। उन्हें मौजूदा स्थिति से लाभ मिल रहा है।

सूत्रों ने कहा कि देश में दूध का कारोबार बढ़ने के साथ हर साल बिनौला खल की मांग लगभग 10 प्रतिशत बढ़ जाती है। लेकिन सरकारी आंकड़ों के अनुसार सरकार की एमएसपी पर कपास नरमा की खरीद करने की गारंटी के बावजूद कपास खेती का रकबा पिछले साल के 113.54 लाख हेक्टेयर मुकाबले 6.86 प्रतिशत घटकर 105.73 लाख हेक्टेयर रह जाना एक चिंता का विषय है। स्थिति को संभालने के लिए देशी तेल-तिलहनों का बाजार विकसित करने की ओर ध्यान देना होगा।

बीते सप्ताह सरसों दाने का थोक भाव 100 रुपये घटकर 5,850-5,900 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। सरसों दादरी तेल का भाव 75 रुपये घटकर 11,450 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। सरसों पक्की और कच्ची घानी तेल का भाव क्रमश: 20-20 रुपये की गिरावट के साथ क्रमश: 1,865-1,965 रुपये और 1,865-1,990 रुपये टिन (15 किलो) पर बंद हुआ।

समीक्षाधीन सप्ताह में सोयाबीन दाने और लूज का भाव क्रमश: 95-90 रुपये की गिरावट के साथ क्रमश: 4,475-4,495 रुपये प्रति क्विंटल और 4,285-4,410 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। इसी प्रकार सोयाबीन दिल्ली, सोयाबीन इंदौर और सोयाबीन डीगम के दाम क्रमश: 100 रुपये, 125 रुपये और 150 रुपये की गिरावट के साथ क्रमश: 10,200 रुपये, 9,950 रुपये तथा 8,500 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुए।

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