इरफान खान की आखिरी चिट्ठी: दर्द में भी जिंदा रहने की दास्तान

हृषिकेश मुखर्जी की फिल्म ‘आनंद’ में राजेश खन्ना का एक संवाद आज भी हमारे दिलों में बसा हुआ है —
“ज़िंदगी बड़ी होनी चाहिए बाबू मोशाय, लंबी नहीं…”
‘आनंद’ का यही फलसफा था — जीवन का मूल्य उसकी लंबाई में नहीं, बल्कि उसकी गहराई और योगदान में है।
हमारी फिल्म इंडस्ट्री में ऐसे बिरले कलाकार हुए हैं जिन्होंने इस दर्शन को सचमुच जीकर दिखाया। उनमें से एक थे इरफान खान।

🎭 इरफान खान: सादगी, गंभीरता और जीवन का जादू
अगर आज इरफान खान हमारे बीच होते तो वे 58 साल के होते।
उनकी संवेदनशीलता, अलग सोच और गहरी अदाकारी आज के फिल्मी माहौल में और भी ज्यादा जरूरी लगती है।
29 अप्रैल 2020 को जब उन्होंने हाई ग्रेड न्यूरोएंडोक्राइन कैंसर से जंग हारकर दुनिया को अलविदा कहा, तब उनकी उम्र महज 52 साल थी।
इलाज के लिए वह ब्रिटेन भी गए, लेकिन मुंबई लौटकर अपनी आखिरी फिल्म ‘अंग्रेजी मीडियम’ पूरी की। इस दौरान वे खुद भी जैसे ‘आनंद’ के किरदार की तरह एक आध्यात्मिक यात्रा पर निकल पड़े थे।

📝 इरफान की इमोशनल चिट्ठी: दर्द में भी जिंदगी का गीत
दुनिया ने इरफान के दर्द को पहली बार उनकी उस भावुक चिट्ठी के जरिये महसूस किया, जो उन्होंने 2018 में लंदन के अस्पताल से लिखी थी।
यह कोई औपचारिक पत्र नहीं था, बल्कि भावनाओं का समंदर था —
डर, उम्मीद, पीड़ा, जिज्ञासा और आस्था से भरा हुआ।

इरफान ने लिखा था:
“मैं हाईस्पीड ट्रेन में था… सपने थे, ख्वाहिशें थीं… अचानक टीसी ने आकर कहा — तुम्हारा स्टेशन आ गया है। लेकिन मेरा तो अभी सफर बाकी था।”

उन्होंने अस्पताल के बिस्तर से लिखा कि कैसे डर और दर्द के बीच भी वह खुद को मजबूत बनाए रखना चाहते थे।
लॉर्ड्स क्रिकेट स्टेडियम और अस्पताल के बीच खड़े होकर उन्होंने जिंदगी और मौत के बीच का वह महीन फर्क महसूस किया था।

🌌 आजादी का नया अर्थ
इरफान ने बीमारी के दौरान जाना कि असली आजादी क्या होती है —
अपने अस्तित्व को गहराई से महसूस करना, हर पल का स्वाद लेना, हर सांस को जादुई अनुभव की तरह देखना।
उनके शब्दों में —
“यूनिवर्स की विराटता पर मेरा भरोसा और गहरा हो गया। मैं अपने हर सेल के भीतर प्रवेश कर गया।”

उन्होंने अपने शुभचिंतकों का भी आभार जताया और लिखा कि उनकी दुआएं एक ताकत बनकर उनके शरीर में समा गईं थीं।

🎬 इरफान और शाहरुख: समान राहें, अलग मंजिलें
इरफान और शाहरुख खान ने लगभग एक ही दौर में अपने करियर की शुरुआत की थी।
दोनों ने एक-दूसरे के संघर्ष देखे।
शाहरुख ने जहां मुख्यधारा के ग्लैमर का रास्ता चुना, वहीं इरफान ने गहराई और सादगी की राह पकड़ी।
दोनों ने साथ में फिल्म ‘बिल्लू’ में काम भी किया।

🌍 बॉलीवुड से हॉलीवुड तक इरफान का सफर
इरफान का सफर केवल बॉलीवुड तक सीमित नहीं रहा।
1992 में धारावाहिक ‘चाणक्य’ से एक सेनापति के रूप में शुरू हुआ उनका सफर
‘अंग्रेजी मीडियम’ तक आया, जहां वह एक ऐसी बेटी के पिता बने जो सपनों को पूरा करने के लिए विदेश जाना चाहती थी।
उनकी कुछ यादगार फिल्मों में शामिल हैं:

द वारियर, मकबूल, हासिल, रोग, पान सिंह तोमर, हिंदी मीडियम, अंग्रेजी मीडियम (हिंदी फिल्में)

ए माइटी हार्ट, स्लमडॉग मिलियनेयर, लाइफ ऑफ पाई, द अमेजिंग स्पाइडर मैन (अंतरराष्ट्रीय फिल्में)

इरफान ने साबित किया कि असली कलाकार वो होता है जो सीमाओं से परे जाकर दिलों में जगह बनाता है।

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