मौसम में बदलाव के साथ ही सर्दी-जुकाम और अन्य बीमारियों की वजह से हमारी इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है। जो कई सारी दूसरे संक्रमण के साथ न्यूमोनिया की भी वजह बन सकता है। और पहले से कमजोर व्यक्तियों को इसके होने की संभावना ज्यादा रहती है। तो अगर आप स्वस्थ हैं तो हेल्थ को लेकर बेफ्रिक न रहें और अगर आप पहले से भी किसी बीमारी से पीड़ित हैं तो कोरोना और प्रदूषण भरे वातावरण में खास एतिहात बरतें।
कारण:
सांस के ज़रिए फेफड़ों तक पहुंचने वाले बैक्टीरिया, फंगस और वायरस इसके लिए मुख्य रूप से जि़म्मेदार होते हैं। खासतौर पर इन दिनों प्रदूषण की वजह से न्यूमोनिया के मामले तेज़ी से बढ़ रहे हैं। बदलते मौसम में वायरस की बढ़ती सक्रियता, लंबे समय तक रहने वाले सर्दी-ज़ुकाम, मिजिल्स और चिकनपॉक्स जैसी बीमारियों के बाद शरीर का इम्यून सिस्टम कमज़ोर पड़ जाता है और इससे भी व्यक्ति को न्यूमोनिया की समस्या हो सकता है। इसके अलावा एस्थमा, डायबिटीज़, टीबी, कैंसर और दिल के मरीज़ों को भी यह संक्रमण हो जाता है।
लक्षण:
तेज़ बुखार, खांसी के साथ ज्य़ादा कफ निकलना, कभी-कभी उसके साथ खून आना, सांस लेने में तकलीफ, दिल की धड़कन बढऩा, जी मिचलाना, लूज़ मोशन, भोजन में अरुचि, होंठों का नीला पड़ जाना, बहुत कमज़ोरी महसूस होना आदि इसके प्रमुख लक्षण हैं। गंभीर स्थिति में मरीज़ बेहोश भी हो सकता है। हालांकि इनमें से कुछ लक्षण मामूली सर्दी-ज़ुकाम में भी हो सकते हैं, लेकिन न्यूमोनिया का सबसे प्रमुख लक्षण है-बुखार के साथ बलगम वाली खांसी और सीने में हलका दर्द। डायबिटीज़ के मरीज़ों और बुज़ुर्गों का इम्यून सिस्टम सही ढंग से काम नहीं करता, इसलिए ऐसे लोगों को बिना बुखार या खांसी के भी न्यूमोनिया हो सकता है। ऐसी स्थिति में भोजन में अरुचि, चक्कर आना जैसे लक्षण नज़र आते हैं।
जांच एवं उपचार:
इस बीमारी का पता लगाने के लिए सबसे पहले खून और कफ की जांच की जाती है। इसके बाद लक्षणों और संक्रमण की वजहों को ध्यान में रखते हुए उपचार किया जाता है। बैक्टीरिया की वजह से होने वाली न्यूमोनिया के लिए एंटीबायोटिक दवाएं दी जाती हैं। ऐसे में उनका नियमित सेवन ज़रूरी है, अन्यथा दोबारा इन्फेक्शन हो सकता है। आमतौर पर बैक्टीरिया की वजह से होने वाला इन्फेक्शन 15 दिनों में ठीक हो जाता है, लेकिन वायरस की वजह से होने वाले इन्फेक्शन को दूर होने में अधिक समय लगता है। गंभीर स्थिति में मरीज़ को अस्पताल में भर्ती कराने की भी ज़रूरत पड़ सकती है। सांस की गति नियमित करने के लिए उसे ऑक्सीजन भी दिया जाता है। इसके अलावा सक्शन के ज़रिये छाती में जमा कफ को भी बाहर निकाला जाता है। इससे मरीज़ को बहुत जल्दी राहत मिलती है।
बचाव:
इस समस्या से बचाव के लिए 2 साल से छोटी उम्र के बच्चों और 65 साल से अधिक उम्र के लोगों को PCV-15 नामक टीका लगवाना चाहिए। जिन लोगों का इम्यून सिस्टम कमज़ोर हो, उन्हें भी डॉक्टर की सलाह पर यह टीका लगवा लेना चाहिए। डॉक्टर द्वारा बताई गई एंटीबायोटिक दवाओं का कोर्स बीच में अधूरा न छोड़ें, इससे दोबारा सर्दी-ज़ुकाम और बुखार जैसी समस्याएं हो सकती हैं।