देश में सात साल पहले लागू माल एवं सेवा कर से नियमों का अनुपालन आसान हुआ है। साथ ही, कर संग्रह बढ़ने के साथ राज्यों के राजस्व में भी वृद्धि हुई है। हालांकि, फर्जी चालान और धोखे से पंजीकरण की घटनाएं करदाताओं के लिए अब भी बड़ी चुनौती बनी है।
जीएसटी देश में एक जुलाई, 2017 को लागू हुआ था। इसमें 17 करों व 13 उपकरों को समाहित कर प्रणाली को सरल बनाया गया। जीएसटी के तहत पंजीकरण के लिए कारोबार की सीमा वस्तुओं के लिए 40 लाख रुपये और सेवाओं के लिए 20 लाख रुपये तय की गई। वैट के तहत यह सीमा औसतन पांच लाख रुपये से ऊपर थी। जीएसटी प्रणाली ने राज्यों में 495 अलग-अलग प्रस्तुतियों (चालान, फॉर्म, घोषणाएं आदि) को भी घटाकर सिर्फ 12 कर दिया है। खास बात है कि जीएसटी अपीलीय न्यायाधिकरण की स्थापना से कारोबारियों के लिए विवाद समाधान प्रक्रिया आसान हुई है और इसमें तेजी आई है।
जरूरी वस्तुएं सस्ती, बचत में इजाफा
जीएसटी के बाद कई जरूरी वस्तुओं पर कर दरें पहले की तुलना में घटी हैं। इससे आम लोगों पर न सिर्फ कर का बोझ घटा है बल्कि बचत बढ़ाने में भी मदद मिली है। हेयर ऑयल और साबुन जैसी आम वस्तुओं पर कर की दर को 28 फीसदी से घटाकर 18 फीसदी किया गया। बिजली उपकरणों पर अब कर की दर 12 फीसदी है, जो जीएसटी से पहले 31.5 फीसदी लगता था। बिना ब्रांड वाले खाद्य पदार्थ, कुछ जीवन रक्षक दवाएं, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, सैनिटरी नैपकिन, श्रवण यंत्र के पुर्जे और कृषि सेवाओं आदि पर जीएसटी नहीं लगता है।
कर के रूप में बढ़ी सरकार की कमाई, पंजीकरण में भी बढ़ोतरी
औसत मासिक राजस्व 2017-18 में करीब 90,000 करोड़ रुपये था, जो 2024-25 में बढ़कर 1.90 लाख करोड़ हो गया है। आंकड़ों के अनुसार, जीएसटी ने कर उछाल को 0.72 (जीएसटी से पहले) से बढ़ाकर 1.22 (2018-23) कर दिया है। मुआवजा खत्म होने के बावजूद राज्यों का कर उछाल 1.15 पर बना हुआ है। जीएसटी के बिना वित्त वर्ष 2018-19 से 2023-24 तक राज्यों का राजस्व 37.5 लाख करोड़ होता था। जीएसटी के बाद यह 46.56 लाख करोड़ रुपये है। सात वर्षों में पंजीकृत करदाताओं की संख्या 2017 के 65 लाख से बढ़कर 1.46 करोड़ पहुंच गई है। 2023 में 1.98 लाख करोड़ रुपये से अधिक की कर चोरी का पता लगाया गया। 140 लोगों को गिरफ्तार किया गया।