उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि स्वापक औषधि एवं मन:प्रभावी पदार्थ (एनडीपीएस) अधिनियम के तहत दर्ज किसी मामले में अग्रिम जमानत देना एक ‘‘बहुत गंभीर” मुद्दा है।
न्यायमूर्ति बी. आर. गवई की अध्यक्षता वाली और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार तथा न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन की सदस्यता वाली पीठ पश्चिम बंगाल में एनडीपीएस अधिनियम के प्रावधानों के तहत दर्ज एक मामले में नियमित जमानत देने की आरोपी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
पीठ ने पश्चिम बंगाल सरकार को यह बताने का निर्देश दिया कि क्या वह एक मामले में चार आरोपियों को दी गई अग्रिम जमानत रद्द करने के लिए आवेदन दायर करने पर विचार कर रही है।
पीठ ने आरोपी की जमानत याचिका पर पश्चिम बंगाल को नोटिस जारी किया तथा सुनवाई चार सप्ताह के लिए स्थगित कर दी।
याचिकाकर्ता के वकील ने पीठ को बताया कि मामले के छह आरोपियों में से चार को गिरफ्तारी पूर्व जमानत दी गई है, जबकि उनमें से एक नियमित जमानत पर है।
पीठ ने आश्चर्य जताते हुए कहा, “एनडीपीएस मामले में अग्रिम जमानत?”
पीठ ने कहा, “एनडीपीएस मामले में अग्रिम जमानत के बारे में कभी नहीं सुना गया है।”
अदालत ने कहा, “हम (याचिका पर) नोटिस जारी कर सकते हैं और राज्य को सह-आरोपी को दी गई अग्रिम जमानत रद्द करने के लिए आवेदन दायर करने का निर्देश दे सकते हैं।”
शीर्ष अदालत ने कहा, “एनडीपीएस मामले में अग्रिम जमानत देना बहुत गंभीर मुद्दा है। इसलिए हम राज्य को यह विचार करने का निर्देश देते हैं कि क्या वह सह-आरोपी को दी गई अग्रिम जमानत रद्द करने के लिए आवेदन दायर करने के बारे में सोच रहा है।”
याचिका में आरोपी ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के इस साल जुलाई के आदेश को चुनौती दी है। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने अक्टूबर 2023 में दर्ज मामले में नियमित जमानत के अनुरोध संबंधी याचिका खारिज कर दी थी।
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