नदियों का अस्तित्व खतरे में! बांग्लादेश में बढ़ते अतिक्रमण और शहरीकरण से जलस्रोत संकट में

बांग्लादेश में जल संकट गंभीर रूप लेता जा रहा है। हाल ही में एक स्टडी में यह खुलासा हुआ कि देश में 1,156 में से 79 नदियां या तो पूरी तरह सूख चुकी हैं या सूखने की कगार पर हैं। इससे न केवल खेती और मछली पकड़ने जैसी पारंपरिक आजीविकाएं प्रभावित हो रही हैं, बल्कि पर्यावरण और वन्यजीवन का संतुलन भी बिगड़ रहा है।

रिवर एंड डेल्टा रिसर्च सेंटर (आरडीआरसी) द्वारा किए गए इस अध्ययन में जनवरी 2023 से दिसंबर 2024 तक के सरकारी आंकड़ों, विभिन्न शोध पत्रों और समाचार रिपोर्टों का विश्लेषण किया गया।

अतिक्रमण और शहरीकरण ने बिगाड़ी स्थिति
अध्ययन में पाया गया कि सूख रही नदियों का एक बड़ा कारण गाद जमाव (सिल्टेशन), अतिक्रमण और तेजी से बढ़ता शहरीकरण है। कई जगहों पर तो नदियों का बड़ा हिस्सा पूरी तरह गायब हो चुका है।

स्टडी के अनुसार, 79 में से 25 नदियां खुलना डिवीजन, 19 राजशाही, 14 रंगपुर, 6 चटगांव, 5 मैमनसिंह, 4 ढाका और 3-3 बरिशाल व सिलहट डिवीजन में हैं।
खासतौर पर खुलना, सतखीरा, राजशाही और कुश्तिया जैसे क्षेत्रों में यह संकट ज्यादा गहरा है, क्योंकि शहरीकरण के कारण जल प्रवाह बाधित हो गया है।

बांध बने संकट का कारण!
स्टडी में यह भी कहा गया कि बांधों के कारण नदियों के प्रवाह में बाधा आई है, जिससे लोगों को मछली पकड़ने, खेती करने और जलमार्ग से व्यापार करने में परेशानी हो रही है।

कई नदियों में पानी की उपलब्धता अप्रत्याशित हो गई है, जिससे उन पर निर्भर समुदायों को जीविका के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।

वन्यजीवों और पारिस्थितिकी तंत्र पर असर
नदियों के सूखने से सिर्फ इंसान ही नहीं, बल्कि वन्यजीव भी प्रभावित हो रहे हैं। इसका असर पूरे पर्यावरण पर पड़ रहा है और प्राकृतिक संतुलन बुरी तरह बिगड़ रहा है।

पर्यावरण विशेषज्ञ सईदा रिजवाना हसन का कहना है कि हर नदी के सूखने के पीछे अलग-अलग कारण होते हैं। कुछ नदियां प्राकृतिक कारणों से सूखती हैं, जबकि कुछ पर मानवीय गतिविधियों का सीधा असर पड़ता है। उन्होंने कहा कि सरकार को सभी नदियों के पुनर्जीवन के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।

क्या हो सकते हैं समाधान?
अतिक्रमण पर सख्ती: सरकार को अवैध निर्माण रोकने और नदियों के किनारे अतिक्रमण हटाने के लिए कड़े कदम उठाने होंगे।
बांधों का पुनर्मूल्यांकन: यह देखा जाना चाहिए कि कौन से बांध जल प्रवाह को बुरी तरह प्रभावित कर रहे हैं और जरूरी सुधार किए जाएं।
सस्टेनेबल प्लानिंग: नदियों के किनारे शहरीकरण और औद्योगीकरण को संतुलित करने के लिए सख्त नीतियां बनाई जाएं।
वृक्षारोपण और संरक्षण: नदियों के किनारों पर ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाए जाएं और जलस्तर बनाए रखने के लिए जल संरक्षण योजनाओं को बढ़ावा दिया जाए।
निष्कर्ष:
बांग्लादेश में नदियों के सूखने से लाखों लोगों की आजीविका, खेती, व्यापार और पर्यावरण पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है। अगर समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में यह संकट और भी गहरा सकता है। सरकार और समाज को मिलकर इन जलस्रोतों को बचाने की दिशा में ठोस प्रयास करने होंगे, ताकि आने वाली पीढ़ियों के लिए पानी की उपलब्धता बनी रहे।

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