प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन दिनों अमेरिका दौरे पर हैं, जहां उनकी मुलाकात पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से होगी। इस बीच, भारत की नजर पाकिस्तान पर भी बनी हुई है, क्योंकि तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन अपने विदेश दौरे के अंतिम चरण में पाकिस्तान पहुंचे हैं। इससे पहले वे मलेशिया और इंडोनेशिया का दौरा कर चुके हैं। एर्दोगन की यह यात्रा अंकारा और इस्लामाबाद के बीच मजबूत होते द्विपक्षीय संबंधों का संकेत देती है, जिसके भू-राजनीतिक निहितार्थ भारत के लिए महत्वपूर्ण हैं।
तुर्की-पाकिस्तान के बढ़ते रक्षा संबंध
तुर्की और पाकिस्तान पिछले कुछ वर्षों में कई क्षेत्रों में सहयोग बढ़ा चुके हैं। हाल ही में पाकिस्तान ने तुर्की से नौसैनिक जहाज खरीदने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। इसके अलावा, दोनों देशों ने जनवरी में पूर्वी भूमध्य सागर में एक संयुक्त नौसैनिक अभ्यास भी किया, जो उनके बढ़ते सैन्य तालमेल को दर्शाता है।
तुर्की पाकिस्तान की सैन्य क्षमताओं को मजबूत करने में अहम भूमिका निभा रहा है। यह सहयोग नौसेना जहाज निर्माण, ड्रोन तकनीक और हथियारों की आपूर्ति तक फैला हुआ है। दोनों देशों के बीच आतंकवाद-रोधी सहयोग पर भी नया फोकस दिखा है। हाल ही में इस्लामाबाद में पाकिस्तान-तुर्की काउंटर टेररिज्म कंसल्टेशन का दूसरा दौर आयोजित हुआ, जिसमें टेरर फंडिंग, कट्टरपंथ रोकथाम और ऑनलाइन उग्रवाद से निपटने जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई।
भारत के लिए क्या मायने रखता है यह समीकरण?
भारत के लिए चिंता की बात यह है कि पाकिस्तान लंबे समय से भारत विरोधी आतंकी समूहों को शरण देता रहा है। ऐसे में, अगर तुर्की का पाकिस्तान के काउंटर टेररिज्म मैकेनिज्म में सकारात्मक योगदान होता है, तो यह भारत के लिए लाभदायक होगा। लेकिन यदि यह सहयोग उन तत्वों को समर्थन देने के लिए होता है, जिन्हें भारत अपने लिए खतरा मानता है, तो इससे क्षेत्रीय तनाव बढ़ सकता है।
इसके अलावा, तुर्की की विदेश नीति में हालिया बदलाव भी भारत के लिए महत्वपूर्ण हैं। एर्दोगन पहले संयुक्त राष्ट्र महासभा में कश्मीर मुद्दा उठाते रहे हैं, लेकिन 2024 के उनके संबोधन में इस विषय का जिक्र नहीं था। यह बदलाव भारत और तुर्की के बीच कूटनीतिक समीकरण में नई संभावनाएं पैदा कर सकता है।
तुर्की की ब्रिक्स में एंट्री और भारत की रणनीति
तुर्की अब ब्रिक्स में शामिल होने की कोशिश कर रहा है, जिससे भारत को अवसर और चुनौतियां दोनों मिल सकती हैं। तुर्की के नाटो सदस्य होने और चीन के साथ उसके गहरे संबंधों के कारण ब्रिक्स में जटिलताएं बढ़ सकती हैं। भारत इस पर बारीकी से नजर रखेगा कि तुर्की अपनी स्थिति को कैसे संतुलित करता है और क्या वह कश्मीर जैसे मुद्दों पर पाकिस्तान का समर्थन जारी रखता है।
भारत ने पहले भी तुर्की की पाकिस्तान समर्थक नीतियों का जवाब दिया है। भारत ने आर्मेनिया, साइप्रस और ग्रीस जैसे तुर्की के विरोधी देशों के साथ अपने संबंध मजबूत किए हैं। एर्दोगन की पाकिस्तान यात्रा केवल एक सामान्य राजनयिक दौरा नहीं है, बल्कि यह दोनों देशों के गहरे रक्षा संबंधों को और पुख्ता करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। यही वजह है कि भारत इस घटनाक्रम पर बारीकी से नजर रखेगा।
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