दुनिया भर में अस्थमा के 262 मिलियन मरीज हैं, और यह बीमारी अमेरिका से लेकर भारत और दक्षिण अफ्रीका तक फैल चुकी है। दशकों पुरानी इस बीमारी का आज तक कोई स्थायी इलाज नहीं है। जैसे डायबिटीज को कंट्रोल किया जा सकता है लेकिन पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता, उसी तरह अस्थमा भी केवल नियंत्रित किया जाता है। अगर किसी को एक बार अस्थमा हो जाए, तो वह ताउम्र इसका मरीज रहता है। उम्र बढ़ने के साथ यह बीमारी गंभीर होती जाती है, और कुछ मामलों में यह मौत का कारण भी बन सकती है। इसलिए अस्थमा के बारे में जानना और उसे सही समय पर पहचानना बहुत जरूरी है।
अस्थमा की बीमारी क्यों नहीं ठीक हो सकती?
अस्थमा एक गंभीर बीमारी है, जिसमें कई प्रकार के सेल्स, प्रोटीन और हार्मोन शामिल होते हैं। यह बीमारी बच्चों में ज्यादा देखी जाती है, लेकिन बुजुर्गों में भी यह हो सकती है। अस्थमा के कई प्रकार होते हैं, जैसे एलर्जिक अस्थमा और नॉन-एलर्जिक अस्थमा, जिनके लिए अलग-अलग ट्रीटमेंट की आवश्यकता होती है। एलर्जी के कारण होने वाले अस्थमा के लिए कोई ऐसी दवा नहीं है जो इसे पूरी तरह से खत्म कर सके।
इलाज नहीं, लेकिन कंट्रोल करना संभव है
डॉक्टर बताते हैं कि अस्थमा का कोई स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन इसे आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है। इसके लिए इनहेलर्स, कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स और इम्यूनोथेरेपी जैसी दवाएं उपयोगी होती हैं। इनहेलर्स सांस की नलियों में सूजन को कम करके अस्थमा के लक्षणों को नियंत्रित करते हैं। इम्यूनोथेरेपी से इम्यून सिस्टम को मजबूत किया जाता है, जिससे मरीज इस बीमारी से बेहतर तरीके से लड़ सकता है। हालांकि, इन दवाओं का भी एक सीमा है, और अस्थमा की शुरुआत में इसका सही इलाज करना बहुत महत्वपूर्ण है।
अस्थमा की शुरुआत में पहचान कैसे करें?
अस्थमा की शुरुआत के लक्षणों को पहचानना बहुत जरूरी है। अगर आपको बार-बार खांसी आती है, सांस लेने में कठिनाई होती है, खांसी के साथ घरघराहट होती है या फिर सीने में जकड़न महसूस होती है, तो ये अस्थमा के शुरुआती लक्षण हो सकते हैं। अगर आपको इनमें से कोई भी लक्षण महसूस हो, तो तुरंत डॉक्टर से सलाह लें। डॉक्टर फेफड़ों की जांच और रक्त परीक्षण के जरिए अस्थमा की पहचान कर सकते हैं। सही समय पर इलाज कराने से इस बीमारी को आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है।
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