चीन को अक्सर दुनिया में साजिशों का जाल बुनने वाला और फरेब का सुलतान माना जाता है, लेकिन इस बार उसके बारे में एक और बात चर्चा में है। नेपाल में चल रहे राजशाही समर्थक विरोध प्रदर्शनों के बीच चीन का नाम भी लिया जा रहा है। माना जा रहा है कि नेपाल में जो सियासी संकट बढ़ रहा है, उसकी अप्रत्यक्ष भूमिका चीन की हो सकती है। नेपाल में राजशाही की वापसी की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, जिनमें हिंसा भी हुई है, और इस घटनाक्रम के बाद नेपाल की सरकार की चिंता और बढ़ गई है।
नेपाल के सड़कों पर राजशाही समर्थक प्रदर्शन कर रहे हैं, नारे लगा रहे हैं और आंदोलन जारी रखने की धमकी दे रहे हैं। ये प्रदर्शनकारियों नेपाल के पूर्व नरेश ज्ञानेंद्र शाह के समर्थक हैं, जो राजशाही की बहाली की मांग कर रहे हैं। इस मुद्दे पर नेपाल सरकार और राजशाही समर्थकों के बीच संघर्ष जारी है। एक तरफ नेपाल सरकार प्रदर्शनकारियों से शांति बनाए रखने की अपील कर रही है, तो दूसरी ओर पूर्व नरेश के समर्थक अपनी मांगों पर अड़े हुए हैं।
नेपाल में स्थिति अभी स्थिर नहीं है और शुक्रवार को हुई हिंसा के बाद सवाल उठने लगे हैं कि नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता क्यों बढ़ रही है? क्या इसका कारण चीन की भूमिका है?
चीन का विस्तारवाद और नेपाल में अस्थिरता
इतिहास गवाह है कि चीन जहां-जहां भी गया, वहां बड़े संकट पैदा हुए। नेपाल को ही लें, जहां पिछले 17 वर्षों से लोकतंत्र है, लेकिन चीन ने अपने राजनीतिक सिद्धांतों को नेपाल में घुसपैठ करने के लिए लगातार बढ़ावा दिया है। यही कारण है कि नेपाल में लोकतंत्र के स्तंभ हिलते जा रहे हैं। चीन का एक ही मकसद है – विस्तारवाद। वह हर देश में दखल देकर वहां के राजनीतिक हालात अस्थिर करने की कोशिश करता है।
नेपाल में लोकतंत्र और राजशाही के बीच बढ़ता विरोध-प्रदर्शन चीन की घुट्टी का परिणाम है। चीन के राजनीतिक सिद्धांत का असर नेपाल में अब साफ दिखने लगा है, जिससे राजशाही और लोकतंत्र के समर्थक आमने-सामने आ गए हैं।
नेपाल में बढ़ता संकट और चीन की भूमिका
नेपाल की दोनों कम्युनिस्ट पार्टियां अब जनता का भरोसा खो चुकी हैं। इसका फायदा नेपाली कांग्रेस और राजशाही समर्थक पार्टी को मिला है। ये पार्टियां नेपाल में संविधानिक राजशाही और हिंदू राष्ट्र की वापसी चाहती हैं, जो चीन को बिलकुल भी मंजूर नहीं है। चीन कभी नहीं चाहेगा कि नेपाल में कम्युनिस्ट पार्टियां कमजोर हों और सत्ता उसके हाथ से निकल जाए।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीन ने पिछले कुछ सालों में नेपाल की दोनों कम्युनिस्ट पार्टियों को एक करने की पूरी कोशिश की है, लेकिन इसके बावजूद केपी शर्मा ओली और पुष्प कमलदहल प्रचंड के बीच कोई समझौता नहीं हो पाया। चीन अब भी नेपाल में अपनी पॉलीटिकल पकड़ को मजबूत करने की कोशिश कर रहा है, ताकि नेपाल में अपने हितों को साध सके।
क्या नेपाल में संकट बढ़ेगा?
नेपाल में बढ़ती सियासी अस्थिरता और प्रदर्शन यह सवाल उठाते हैं कि कहीं चीन की बढ़ती घुसपैठ ने नेपाल के राजनीतिक माहौल को अस्थिर तो नहीं किया है। आने वाले समय में नेपाल में इस संकट की और गहराई हो सकती है, और यह सब तब होगा जब चीन का विस्तारवाद और संगठन नेपाल के राजनीतिक हालात को नियंत्रित करने की कोशिश करेगा।
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