बांग्लादेश से दोस्ती बढ़ाने के लिए चीन ने उठाया कदम

पाकिस्तान, चीन, जैसे पड़ोसी प्रतिद्वंद्वियों से घिरे भारत की चिंताएं बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन से अब और बढ़ गई है. 4 अगस्त से पहले बांग्लादेश भारत का करीबी और विश्वसनीय दोस्त हुआ करता था लेकिन प्रधानमंत्री शेख हसीना के तख्तापलट के बाद पूरी बाजी पलट गई है. अब चीन बांग्लादेश की नई सरकार और प्रभावशाली इस्लामिक दलों के साथ भी अपनी दोस्ती बढ़ाने में जुट गया है जो भारत के लिए खतरे का संकेत है.

सोमवार को चीनी राजदूत याओ वेन ढाका के मोघबाजार स्थित जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश (जेआईबी) के कार्यालय पहुंचे और इसकी प्रशंसा की. उन्होंने कहा कि जमात-ए-इस्लामी एक सुसंगठित पार्टी है.

भारत विरोधी रुख अपनाने वाली जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश की सबसे बड़ी इस्लामिक पार्टी है और शेख हसीना सरकार ने इस पार्टी पर बैन लगा दिया था. अब बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने पार्टी पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया है और कहा है कि इसके आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने के कोई सबूत नहीं मिले हैं. 2010 में जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश (जेआईबी) के खिलाफ युद्ध अपराधों की जांच शुरू होने के बाद किसी चीनी राजदूत की जेआईबी पार्टी के साथ यह पहली राजनयिक मुलाकात है.

बांग्लादेश में अपना प्रभाव बढ़ाने की फिराक में चीन

चीन के शेख हसीना की पार्टी आवामी लीग के साथ गहरे संबंध थे और अब वो बांग्लादेश की अंतरिम सरकार और जमात-ए-इस्लामी जैसे राजनीतिक दलों के साथ भागेदारी बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. चीन सत्ता में राजनीतिक दल की परवाह किए बिना बांग्लादेश में किसी भी तरह अपना प्रभाव बढ़ाने की फिराक में है.

भारत के लिए यह घटनाक्रम चिंताजनक है. बांग्लादेश का भूराजनीतिक महत्व, भारत से इसकी करीबी और दक्षिण एशियाई राजनीति में इसकी भूमिका को देखते हुए बांग्लादेश भारत के लिए बेहद अहम देश है. ऐसे में जमात-ए-इस्लामी जैसी पार्टी के साथ चीन का संबंध बढ़ाना बांग्लादेश के साथ मजबूत और स्थिर संबंध बनाने की भारत की कोशिशों को कमजोर कर सकता है. ऐसा इसलिए भी क्योंकि जमात-ए-इस्लामी पार्टी ऐतिहासिक रूप से बांग्लादेश में भारत के प्रभाव से चिढ़ती रही है.

हालांकि, जमात-ए-इस्लामी के मुखिया शफीकुर रहमान ने समाचार एजेंसी पीटीआई से बात करते हुए कहा है कि वो भारत के साथ स्थिर संबंध चाहते हैं. लेकिन उन्होंने यह भी कह दिया कि भारत को बांग्लादेश के अंदरूनी मामलों में दखल देने से बचना चाहिए. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जहां जमात भारत-बांग्लादेश के बीच मजबूत संबंधों का समर्थन करता है, वहीं बांग्लादेश को भी “अतीत के बोझ” को पीछे छोड़कर अमेरिका, चीन और पाकिस्तान जैसे देशों के साथ मजबूत और संतुलित रिश्ते बनाए रखने के लिए काम करना चाहिए.