केंद्र ने उच्चतम न्यायालय में ‘तीन तलाक’ पर 2019 के कानून का बचाव किया

‘तीन तलाक’ को अपराध बनाने वाले 2019 के कानून का बचाव करते हुए केंद्र ने उच्चतम न्यायालय से कहा है कि यह प्रथा विवाह की सामाजिक संस्था के लिए ”घातक” है।

कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं के जवाब में दाखिल हलफनामे में केंद्र सरकार ने कहा है कि शीर्ष अदालत द्वारा 2017 में इस प्रथा को खारिज करने के बावजूद, यह समुदाय के सदस्यों के बीच ”इस प्रथा से तलाक की संख्या को कम करने में पर्याप्त निवारक के रूप में काम नहीं कर पाया है।”

इसमें कहा गया, ”संसद ने अपने विवेक से, तीन तलाक से पीड़ित विवाहित मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए उक्त कानून पारित किया।”

हलफनामे में कहा गया, ”यह कानून विवाहित मुस्लिम महिलाओं के लिए लैंगिक न्याय और लैंगिक समानता के व्यापक संवैधानिक लक्ष्यों को सुनिश्चित करने में मदद करता है तथा गैर-भेदभाव और सशक्तीकरण के उनके मौलिक अधिकारों की रक्षा करने में मदद करता है।”

उच्चतम न्यायालय ने 22 अगस्त 2017 को एक बार में कहकर दिए जाने वाले तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दा) को असंवैधानिक घोषित कर दिया था। उच्चतम न्यायालय 23 अगस्त 2019 को मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019 की वैधता का परीक्षण करने के लिए सहमत हो गया।

कानून का उल्लंघन करने पर तीन साल तक की कैद हो सकती है। दो मुस्लिम संगठनों जमीयत उलमा-ए-हिंद और समस्त केरल जमीयतुल उलेमा ने अदालत से कानून को ”असंवैधानिक” घोषित करने का आग्रह किया है।

जमीयत ने अपनी याचिका में दावा किया कि ”एक विशेष धर्म में तलाक के तरीके को अपराध घोषित करना, जबकि अन्य धर्मों में विवाह और तलाक के विषय को केवल नागरिक कानून के दायरे में रखना, भेदभाव को जन्म देता है, जो अनुच्छेद 15 की भावना के अनुरूप नहीं है।”

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