दुनिया में इन दिनों वर्चस्व की लड़ाई जारी है। इस जंग में एक तरफ अमेरिका और दूसरे यूरोपीय देश हैं तो दूसरी ओर रूस और चीन। रूस और चीन ने पहली बार अमेरिका की सीमा तक अपने परमाणु बमवर्षक विमानों को भेजकर अपनी ताकत का एहसास भी कराया। इसके जवाब में अमेरिका ने भी अपने लड़ाकू विमानों को इन परमाणु बमवर्षकों के सामने खड़ा कर दिया। यह एक ऐसी घटना थी, जिसकी एक छोटी सी चिंगारी तुरंत तीसरा विश्व युद्ध शुरू कर देती। इसके लपेटे में वे देश भी आ जाते, जो दोनों पक्षों से दूर तटस्थ रुख अपनाए हुए हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी और कनाडाई लड़ाकू विमानों ने बुधवार देर रात दो रूसी टुपोलेव टीयू-95 और दो चीनी शीआन एच-6 बमवर्षकों का पता लगाया और उन्हें रोका। रूस और चीन के इन बमवर्षकों को सैटेलाइट और रडार के जरिए नॉर्थ अमेरिकन एयरोस्पेस डिफेंस कमांड (नोराड) ने पकड़ा था। इस दौरान अमेरिकी लड़ाकू विमानों का सामना रूसी एसयू-30 और एसयू-35 लड़ाकू विमानों से हुआ, जो बमवर्षकों को कवर प्रदान कर रहे थे। अमेरिका और कनाडा ने रूसी बमवर्षकों और लड़ाकू विमानों को रोकने के लिए एफ-35, एफ-16 और एफ-18 को भेजा था। इन तीनों लड़ाकू विमानों को अमेरिकी वायु सेना की रीढ़ माना जाता है।
अमेरिकी सीमा के बाहर गश्त लगाते रहे रूसी-चीनी विमान
नोराड ने कहा कि चारों बमवर्षक विमानों ने अमेरिका या कनाडा के हवाई क्षेत्र में प्रवेश नहीं किया, बल्कि अलास्का के हवाई रक्षा पहचान क्षेत्र के बाहर काम किया और उनसे कोई खतरा नहीं था। ADIZ अंतरराष्ट्रीय हवाई क्षेत्र में एक स्व-घोषित बफर जोन है, जिसमें देश संभावित सुरक्षा खतरों के लिए उड़ान की गतिविधियों की निगरानी करते हैं। रूस के रक्षा मंत्रालय ने कहा कि पांच घंटे की संयुक्त गश्त “संयुक्त कार्रवाई के नए क्षेत्र” में हुई। उन्होंने कहा कि विमानों ने “अंतरराष्ट्रीय कानूनी क़ानूनों के अनुसार सख्ती से काम किया” और “विदेशी देशों के हवाई क्षेत्र का उल्लंघन नहीं किया।”
चीन-रूस ने अमेरिका के पास क्यों भेजा विमान
गुरुवार को एक चीनी प्रवक्ता ने कहा कि गश्त का “मौजूदा अंतरराष्ट्रीय स्थिति से कोई लेना-देना नहीं है” और युद्धाभ्यास का उद्देश्य किसी तीसरे देश को निशाना बनाना नहीं था। चीनी-रूसी युद्धाभ्यास देशों के बढ़ते सैन्य सहयोग का एक और विस्तार दर्शाता है। वरिष्ठ अमेरिकी रक्षा अधिकारियों ने इस साल की शुरुआत में सांसदों को बताया था कि अमेरिकी सेना रूस और चीन की ओर अपनी ताकत में संशोधन कर रही है। पर्थ में कर्टिन विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय सुरक्षा और रणनीतिक अध्ययन के प्रोफेसर एलेक्सी मुराविएव ने फाइनेंशियल टाइम्स को बताया कि उड़ान अलास्का के पास एक कारण से थी। उन्होंने कहा कि यह युद्धाभ्यास “आर्कटिक क्षेत्र में अमेरिका पर दबाव बनाने के उनके प्रयासों का एक सिलसिला था।”