‘एक देश, एक चुनाव’: क्या है, कैसे लागू होगा, और क्या होंगे इसके फायदे?
भारत में एक साथ चुनाव कराने का विचार पिछले कुछ समय से चर्चा में है, जिसे ‘एक देश, एक चुनाव’ के नाम से जाना जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 के स्वतंत्रता दिवस पर पहली बार इस विचार को जनता के सामने रखा था। अब, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस विधेयक को मंजूरी दे दी है, जिससे इसके कानून बनने का रास्ता साफ हो गया है। इससे पहले, सितंबर 2023 में कोविंद समिति की रिपोर्ट को भी मंजूरी दी गई थी, जिसमें ‘एक देश, एक चुनाव’ के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन किया गया था। आइए, समझते हैं कि यह प्रस्ताव क्या है, इसके पीछे के कारण और इसे कैसे लागू किया जाएगा।
क्या है ‘एक देश, एक चुनाव’?
‘एक देश, एक चुनाव’ का मतलब है कि देशभर में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएं। फिलहाल, दोनों चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं, जिससे सरकारों और चुनाव आयोग पर खर्च का दबाव बढ़ता है। 1951 से 1967 तक भारत में एक साथ चुनाव होते थे, लेकिन बाद में राजनीतिक परिस्थितियों के कारण यह प्रथा बंद हो गई। कोविंद समिति की रिपोर्ट के मुताबिक, अब इसे फिर से शुरू करने का समय आ गया है।
इस विचार का समर्थन क्यों?
इसका समर्थन कई कारणों से किया जा रहा है:
आर्थिक बचत: एक साथ चुनाव होने से चुनावी खर्चों में भारी कमी आ सकती है। चुनाव आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, अलग-अलग चुनाव कराने पर बहुत सारा संसाधन और समय बर्बाद होता है।
सरकारों का बेहतर कार्यकाल: बार-बार चुनाव होने से सरकारी नीतियों के क्रियान्वयन में बाधा आती है। अगर चुनाव एक साथ होते हैं, तो सरकारें बिना किसी रुकावट के अपनी योजनाओं पर ध्यान केंद्रित कर सकती हैं।
संसाधनों की बेहतर उपयोगिता: सुरक्षा बलों, चुनाव कर्मियों और अन्य संसाधनों की आवश्यकता भी कम हो जाएगी, जिससे देशभर में विकास कार्य सुचारु रूप से चल सकते हैं।
चुनौती और संविधान संशोधन
इस विधेयक को लागू करने के लिए कई संवैधानिक संशोधन की जरूरत होगी। इसके तहत लोकसभा और राज्य विधानसभाओं की अवधि और चुनावी तारीखों में समन्वय की आवश्यकता होगी। संविधान के अनुच्छेद 83, 85, 172, 174 और 356 में संशोधन करना होगा ताकि यह प्रावधान लागू किया जा सके। राज्यों की सहमति भी एक बड़ी चुनौती होगी क्योंकि कई राज्य सरकारें अपने कार्यकाल को छोटा या लंबा करने के पक्ष में नहीं होंगी।
क्या कहती है कोविंद समिति?
कोविंद समिति ने सुझाव दिया है कि ‘एक देश, एक चुनाव’ को दो चरणों में लागू किया जाए। पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए जाएं, जबकि दूसरे चरण में स्थानीय निकाय (पंचायत और नगर पालिका) के चुनाव आयोजित किए जाएं। इससे चुनावी प्रक्रिया को सरल और संगठित किया जा सकेगा।
विपक्ष का रुख: जहां बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस प्रस्ताव के समर्थन में हैं, वहीं कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियां इसका विरोध कर रही हैं। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने इसे लोकतंत्र के लिए हानिकारक बताया है। उनका मानना है कि देश की विविधता को ध्यान में रखते हुए चुनावी प्रणाली में लचीलापन होना चाहिए।
‘एक देश, एक चुनाव’ एक क्रांतिकारी विचार है, जो भारतीय चुनावी प्रणाली में व्यापक बदलाव ला सकता है। इसके लागू होने से देश में चुनावी प्रक्रिया सुचारु और सस्ती हो जाएगी, लेकिन इसे लागू करना संवैधानिक और राजनीतिक दृष्टि से चुनौतीपूर्ण होगा। अब देखना यह है कि सरकार और विपक्ष कैसे इस मुद्दे पर आम सहमति बनाते हैं और यह कानून कब तक अस्तित्व में आता है।