उत्तर प्रदेश की सरकार ने पर्यावरण और गंगा के जल प्रदूषण से निपटने के लिए जिले के गंगा किनारे स्थित दो सौ गांवों में औषधीय पौधों की खेती कराने का फैसला किया है। औषधीय पौधे न केवल सेहत की सुरक्षा करेगें बल्कि प्रति वर्ष बरसात से होने वाले गंगा कटान व गंगा के जल को प्रदूषित होने से भी बचाएगें।
औषधीय पौधों की रोपाई वन विभाग की मदद से गंगा किनारे स्थित 108 गांवों के किसानों से कराएगा। यहीं नहीं इन किसानों को औषधीय पौधों की खेती करने के लिए शासन से 30 फीसदी धनराशि बतौर अनुदान मुहैया कराएगा। आगामी जुलाई माह में मिर्जापुर वन प्रभाग की तरफ से गंगा किनारे स्थित 108 गांवों के किसानों की लगभग साढ़े छह सौ हेक्टेयर भूमि में औषधीय पौधों की रोपाई की योजना तैयार की गयी है।
इनमें गांवों में वन विभाग की तरफ से 50-50 हेक्टेयर का क्लस्टर तैयार कराया जाएगा। प्रत्येक क्लस्टर में अलग-अलग औषधीय पौधों की रोपाई की जाएगी, ताकि इसका भविष्य में व्यवसायिक उपयोग भी किया जा सके। इससे किसानों की आय में वृद्धि के साथ ही बरसात से गंगा किनारे गांवों में होने वाले कटान को भी रोका जा सकेगा।
उप प्रभागीय वनाधिकारी पीके शुक्ला ने बताया कि गंगा किनारे स्थित 108 गांवों के किसानों को इस संबंध में प्रशिक्षण देने के साथ ही साथ क्लस्टर तैयार कराने की प्रक्रिया शुरू कर दी गयी है।
इन औषधीय पौधों की होगी रोपाई
गंगा किनारे वन विभाग की मदद से किसान खश, लेमनग्रास, ब्राह्मी, बछ, तुलसी, सर्पगंधा, जावाग्रास, रोजाग्रास, आंवला- हरड़, बेल आदि की पौधे रोपे जाएगें।
कहां-कहां होगा औषधीय पौधों के तत्वों का उपयोग
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के पादव एवं मृदा वैज्ञानिक का कहना है कि लेमनग्रास, रोजाग्रास, जावाग्रास और खश संगध पौधे है। इन पौधों से सुगंधित तेल प्राप्त होता। इस तेल का उपयोग मच्छरमारने वाले क्वायल के साथ ही सुगंधित साबुन, क्रीम व इत्र आदि बनाने के लिए उपयोग किया जाता है।
लोहा,शीशा और पारा के अवशोषण की है क्षमता
पादप व मृदा वैज्ञानिक की मानें तो लेमनग्रास, जावाग्रास और रोजाग्रास में भूमि में पाए जाने वाले तत्वों लोहा, शीशा और पारा के साथ ही वायु में मौजूद कार्बन डाई आक्साइड को भी अवशोषित करता है। इससे भूमि के साथ ही वायु प्रदूषण को दूर करने में सक्षम है। वहीं ब्राह्मी, बछ, तुलसी, सर्पगंधा, आंवला- हरड़, बेल आदि का उपयोग दवाएं बनाने के लिए उपयोग की जाती है।