पाकिस्तान की पोल खोलेंगे शशि थरूर, लेकिन कांग्रेस क्यों नाराज़

भारत सरकार ने सीमा पार आतंकवाद और ऑपरेशन सिंदूर को लेकर दुनिया को अपनी रणनीति और रुख बताने के लिए एक बड़ा कदम उठाया है। इसके तहत सात सर्वदलीय सांसदों के प्रतिनिधिमंडल (डेलिगेशन) बनाए गए हैं, जो अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान की साजिशों को बेनकाब करेंगे।

इन डेलिगेशन में कांग्रेस नेता शशि थरूर का नाम भी शामिल है, लेकिन उनके इस फैसले ने खुद कांग्रेस पार्टी के भीतर मतभेद खड़े कर दिए हैं।

🗣️ थरूर को लेकर कांग्रेस में बंटी राय
थरूर की विदेश यात्रा पर सहमति के बाद कांग्रेस की केरल इकाई ने इससे दूरी बना ली है। विधानसभा में विपक्ष के नेता वी. डी. सतीशन ने कहा कि यह निर्णय पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को लेना चाहिए। उन्होंने कहा:

“थरूर कांग्रेस कार्य समिति (CWC) के सदस्य हैं, और पार्टी आलाकमान जो भी निर्णय लेगा, वही अंतिम होगा।”

📢 “पार्टी की अनुमति से ही करें कोई अंतरराष्ट्रीय भूमिका” – कांग्रेस वरिष्ठ नेता
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तिरुवंचूर राधाकृष्णन ने भी साफ तौर पर कहा कि थरूर को किसी भी अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा बनने से पहले पार्टी की मंजूरी लेनी चाहिए। उन्होंने कहा:

“थरूर की दो भूमिकाएं हैं – एक अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त व्यक्ति के रूप में और दूसरी कांग्रेस सांसद के रूप में। उन्हें अपनी पार्टी के प्रति जवाबदेह रहना चाहिए।”

📝 सरकार ने नाम मांगे, कांग्रेस ने थरूर को नहीं चुना
इस विवाद की जड़ यह है कि केंद्र सरकार ने जब कांग्रेस से 4 नाम मांगे, तो पार्टी ने आनंद शर्मा, गौरव गोगोई, नासिर हुसैन और राजा बरार का नाम भेजा। थरूर का नाम पार्टी द्वारा औपचारिक रूप से नहीं भेजा गया था, लेकिन इसके बावजूद उन्हें केंद्रीय मंत्री किरेन रीजीजू की ओर से प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने का निमंत्रण मिला, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया।

🧭 थरूर का बचाव: “यह राजनीति नहीं, राष्ट्रहित है”
थरूर ने अपने निर्णय का बचाव करते हुए कहा कि:

“यह कोई राजनीतिक मामला नहीं है। मुझे देश का प्रतिनिधित्व करने के लिए बुलाया गया, न कि किसी पार्टी का। मेरा अनुभव अंतरराष्ट्रीय मंचों पर है, और मुझे लगा कि यह राष्ट्रहित में है।”

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह आमंत्रण प्रत्यक्ष रूप से केंद्रीय मंत्री की ओर से आया था, इसलिए उन्होंने सहमति दे दी।

📌 क्या यह थरूर की स्वतंत्र विदेश नीति है या पार्टी लाइन से हटने का संकेत?
थरूर की सहमति को कुछ विश्लेषक उनके ‘अलग राह’ पर चलने का संकेत मान रहे हैं, जबकि कुछ इसे राष्ट्रहित में लिया गया निर्णय बता रहे हैं। सवाल यह भी है कि क्या कांग्रेस आलाकमान इस कदम को मंजूरी देगा या इसे अनुशासनहीनता के रूप में देखेगा?

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